देहरादून/मुख्यधारा
उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस के कुछ कद्दावर नेताओं के बीच कुछ तो खिचड़ी पक रही है। अब दोनों ही दलों के वरिष्ठ नेता इसलिए हाथ-पैर ज्यादा मार रहे हैं कि कहीं इन नेताओं के बीच पक रही खिचड़ी, कहीं बिरयानी का रूप धारण न कर ले। ऐसे में इसकी काट समय रहते ढूंढने की भाजपा की ओर से कोशिशें तेज हो गई हैं।
दरअसल पिछले दिनों भाजपा के कैबिनेट मंत्री यशपाल और उनके विधायक पुत्र संजीव आर्य को नई दिल्ली में कांग्रेस ने शामिल कराने में सफलता पाई थी। तभी से भाजपा के कुछ और कद्दावर नेताओं (विधायकों और मंत्रियों) के कांग्रेस में जाने की चचाओं से उत्तराखंड के सियासी गलियारे गर्म हैं। इनमें सबसे अधिक चर्चा कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत व विधायक उमेश शर्मा काऊ को लेकर है। यही कारण रहा कि भाजपा हाईकमान से इन दोनों नेताओं को दिल्ली से बुलावा आ गया और वे राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर वापस देहरादून लौटे।
अभी उत्तराखंड भाजपा को थोड़ी राहत मिली ही थी कि आज मंत्री हरक सिंह के डिफेंस कालोनी स्थित आवास पर विधायक उमेश शर्मा, प्रीतम सिंह व ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी पहुंच गए। सूत्रों की मानें तो इस मुलाकात की तैयारी काफी दिनों से तैयारी चल रही थी। बताया गया कि आज की मीटिंग में सभी नेताओं ने एक घंटे तक बंद कमरे में चर्चा की। हालांकि चर्चा क्या हुई, इसका खुलासा नहीं किया गया। प्रीतम, हरक व काऊ व ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी की इस मुलाकात का एक छोटा सा वीडियो भी सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है। जिसमें नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह कहते हुए सुनाई दे रहे हैं कि हरक सिंह तो हमारे पुराने मित्र हैं और दल अलग-अलग होने से मित्र थोड़े न बदल जाएंगे।
इस मुलाकात ने प्रदेश के सियासी मैदान में भूचाल मचा दिया है। इससे जहां भारतीय जनता पार्टी की धड़कनें बढ़ गई हैं, वहीं प्रीतम सिंह इससे काफी खुश नजर आ रहे हैं और कह रहे हैं कि देखते रहे, आगे और क्या-क्या होता है।
वहीं दूसरी ओर हरीश रावत और हरक सिंह के बीच बीते काफी समय से इस कदर जुबानी जंग चल रही है कि हरीश रावत उन्हें उज्याडू़ बल्द के रूप में संबोधित कर रहे हैं, वहीं हरक सिंह उन्हें षडयंत्रकारी बता रहे हैं। हालांकि अब हरदा ने बागियों को लेकर थोड़ी सी ढील देने की बात कही है। उनके इस बयान के बाद आज की इस मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं।
बहरहाल, कहते हैं कि राजनीति में कोई अपना या पराया नहीं होता, ऐसे में प्रदेश की राजनीति में ये क्षत्रप क्या नया गुल खिलाते हैं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, किंतु इतना जरूर है कि उत्तराखंड की सियासत फिलवक्त गर्म है और भाजपाई इस कोशिश में जुट गए हैं कि इन नेताओं की आपस में पक रही खिचड़ी कहीं बिरयानी का रूप न ले बैठे। अब देखना यह है कि भाजपा इसका क्या तोड़ निकालती है!
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