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सेवा प्रदाता राज्य बनाने के लिए उत्तराखंड में अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट बेहद जरूरी : महाराज

admin
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  • सेवा क्षेत्र में कार्य किया जाना बेहद जरूरी हैं 
  • कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने राज्य कर सेवा संघ के अधिवेशन का किया शुभारंभ

 

देहरादून/मुख्यधारा 

प्रदेश के पर्यटन, लोक निर्माण, सिंचाई, धर्मस्व एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि वर्तमान कर प्रकृति के अन्तर्गत राज्य हेतु अधिकाधिक राजस्व अर्जन के लिए एकमात्र विकल्प सेवा क्षेत्र है जिनके माध्यम से राज्य में उपभोग को बढ़ावा दिया जा सकता है। इसीलिए उत्तराखंड में अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बेहद जरूरी है ताकि यह राज्य सेवा प्रदाता राज्य बन सके।

उक्त बात शुक्रवार को लाल तप्पड़, हरिद्वार देहरादून रोड पर स्थित एक रिसोर्ट में आयोजित राज्य कर सेवा संघ उत्तराखंड के दो दिवसीय सातवें द्विवार्षिक अधिवेशन को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए प्रदेश के कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने अपने संबोधन में कही।

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उन्होंने कहा कि लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को मूर्त रूप प्रदान करने के लिए वित्तीय संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता जरूरी है। इस महत्वपूर्ण उद्देश्य की प्राप्ति के परिप्रेक्ष्य में राज्य के कुल संग्रह में राज्य कर विभाग का योगदान लगभग 60 प्रतिशत है। जो कि विभाग की महत्ता को प्रदर्शित करता है। राज्य कर विभाग उत्तराखण्ड वर्तमान में विभिन्न कर व्यवस्थाओं का संचालन कर रहा है।

इसके अन्तर्गत उत्तराखण्ड माल एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 उत्तराखण्ड मूल्य वर्धित कर अधिनियम 2005 (शराब तथा 05 पेट्रोलियम उत्पाद), केन्द्रीय बिक्री कर अधिनियम 1956 (शराब तथा 05 पट्रोलियम उत्पाद), प्रवेश कर अधिनियम 2008, उत्तराचंल (उत्तर प्रदेश कराधान तथा भू-राजस्वविधि अधिनियम 1975 ), अनुकूलन आदेश उपांतरण 2002 एवं उत्तराखण्ड उपकर अधिनिय 2015 (शराब तथा पेट्रोल-डीजल) इन समस्त कर व्यवस्थाओं के अन्तर्गत वाणिज्य कर विभाग द्वारा उत्तराखण्ड माल एवं सेवा कर अधिनियम 2017 के अन्तर्गत पजीयन देना, उत्तराखण्ड मूल्य वर्धित कर अधिनियम 2005, केन्द्रीय बिक्री कर अधिनियम 1956, प्रवेश कर अधिनियम 2008, तथा उत्तराचंल (उत्तर प्रदेश कराधान तथा भू–राजस्वविधि अधिनियम 1975 ), अनुकूलन आदेश उपांतरण 2002 के अंतर्गत 01 जुलाई 2017 के पर्व के Legacy issues यथा कर निर्धारण तथा रिफण्ड इत्यादि कार्य किये जाते हैं।

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कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज ने कहा कि राज्य सेवा परीक्षा से 1956 में पहली बार आयोग से बिक्री कर अधिकारी चुने गये जिन्होनें 1958 में विभाग में कार्यभार ग्रहण किया। वर्ष 1995 में बिक्री कर का पुनर्नामकरण व्यापार कर के रूप में किया गया। 09 नवम्बर 2000 को राज्य के गठन के साथ ही राज्य का व्यापार कर विभाग पृथक हुआ। कालान्तर में मूल्य वर्धित कर प्रणाली लागू होने पर व्यापार कर विभाग 01 अक्टूबर 2005 से वाणिज्य कर विभाग में परिवर्तित हो गया। 01 जुलाई 2017 से सम्पूर्ण राष्ट्र में माल एवं सेवा कर प्रणाली के शुभारम्भ के साथ ही उत्तराखण्ड में भी माल एवं सेवा कर अधिनियम लागू हो गया। इस नवीन पद्धति के लागू होने पर विभाग को राज्य कर विभाग के रूप में नयी पहचान मिली है।

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महाराज ने कहा कि वर्तमान कर प्रकृति के अन्तर्गत राज्य हेतु अधिकाधिक राजस्व अर्जन के लिए एकमात्र विकल्प सेवा क्षेत्र जैसे होटल व्यवसाय, पर्यटन, स्वास्थ्य एवं सहायक सवाएं, शिक्षा क्षेत्र, मनोरंजन इत्यादि हैं, जिनके माध्यम से राज्य में उपभोग को बढ़ावा दिया जा सकता है। इसीलिए उत्तराखंड में अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बहुत जरूरी है ताकि यह राज्य सेवा प्रदाता राज्य बन सके। इस परिप्रेक्ष्य में विभाग की भी यही सोच है कि सेवा क्षेत्र में कार्य किये जाने की बेहद जरूरी हैं। सरंचनात्मक परिवर्तन होने के परिणामस्वरूप राजस्व में होने वाली क्षतिपूर्ति की मात्रा इतनी अधिक है कि सेवा क्षेत्रों से प्राप्त होने वाले राजस्व एवं अन्य निवारक उपायो के माध्यम से भी इसकी पूर्ति किया जाना अत्यधिक कठिन है।

इस अवसर पर सी.एस. सेमवाल सेवानिवृत्त अपर सचिव उत्तराखंड, विपिन चंद्र अपर आयुक्त विशेष वेतनमान राज्य कर, यशपाल सिंह अध्यक्ष राज्य कर सेवा संघ एवं जयदीप रावत महासचिव राज्य कर सेवा संघ आदि उपस्थित थे।

 

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