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देश विदेश में मैती आन्दोलन (Maiti movement) बना प्रकृति संरक्षण की प्रेरणा: पद्मश्री कल्याण सिंह रावत

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देश विदेश में मैती आन्दोलन (Maiti movement) बना प्रकृति संरक्षण की प्रेरणा: पद्मश्री कल्याण सिंह रावत

  • G20 कार्यक्रमों की श्रेणी में देवभूमि उत्तराखंड यूनिवर्सिटी में कार्यक्रम आयोजित
  •  मैती आन्दोलन के अग्रदूत पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ने भी रखे विचार 
  • प्रो. एमपीएस बिष्ट, भूतपूर्व निदेशक, यूसैक ने भूगर्भीय हलचलों पर चर्चा की

देहरादून/मुख्यधारा

ग्लोबल वार्मिंग इस कदर हावी हो चुकी है कि मैती आन्दोलन आज पूरी दुनिया की ज़रुरत बन चुका है। मैती आन्दोलन के अग्रदूत पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ने देवभूमि उत्तराखंड यूनिवर्सिटी में G20 के मद्देनज़र आयोजित कार्यक्रम के दौरान जंगलों के संरक्षण और हिमालय के दोहन को रोकने पर बल दिया। वहीं, यूसैक देहरादून के पूर्व निदेशक एमपीएस बिष्ट ने हिमालय के बदलते रूप से छेड़छाड़ को खतरनाक बताया।

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भारत द्वारा G20 की अध्यक्षता किये जाने पर आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों की श्रेणी में मांडूवाला स्थित देवभूमि उत्तराखंड यूनिवर्सिटी में उत्तराखंड के पारंपरिक घर और पर्यावरण विषय पर एक दिवसीय सेमीनार का आयोजन किया गया, जिसमें लोकगायिका हेमा नेगी करासी द्वारा मांगल गीत प्रस्तुत करने के बाद कार्यक्रम का प्रारम्भ हुआ।

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मुख्य अतिथि पर्यावरणविद और मैती आन्दोलन के अग्रदूत पद्मश्री कल्याण सिंह रावत ने कहा कि सनातन धर्म में विभिन्न परम्पराओं और रीति रिवाजों में प्रकृति संरक्षण का सन्देश छुपा हुआ है। लेकिन, आज हम उस सन्देश को भूलकर धन लाभ हेतु प्रकृति का दोहन कर रहे हैं। इसलिए माँ बेटी के अटूट रिश्ते पर आधारित मैती आन्दोलन आज विश्व की ज़रुरत बन चुका है। शादी के बाद विदा होती बेटी द्वारा लगाए गए पेड़ की प्रासंगिकता को समझते हुए आज देश के कई राज्यों समेत विभिन्न देश मैती आन्दोलन से प्रेरित होकर शादी के समय पेड़ लगाने कि परम्परा को क़ानून बना रहे हैं।

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वहीं, भूगर्भ विशेषज्ञ व यूसैक देहरादून के पूर्व निदेशक एमपीएस बिष्ट ने उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में पृथ्वी के भूगर्भीय हलचल पर प्रकाश डालते हुए इसे खतरनाक बताया। उन्होंने कहा कि भूगर्भीय ऊर्जाओं का दबाव हिमालय की पहाड़ियों को कमज़ोर कर रहा है, जिस कारण भूस्खलन जैसी आपदाएं घट रही हैं| वहीं, जब हम पहाड़ों के साथ छेड़छाड़ करते हैं तब ये भयानक रूप लेकर जानमाल को हानि पहुंचाती हैं और परिणाम सब भुगतते हैं। ऋषि गंगा प्रोजेक्ट में हुयी तबाही का भी यही कारण था।

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इसके अलावा बीएआईएफ इंस्टिट्यूट के विशेषज्ञ डॉ. दिनेश प्रसाद रतूड़ी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि प्रकृति और पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए विकास कार्य करने चाहि। इसके अलावा हेमा नेगी करासी ने लोकसंस्कृति के प्रभाव पर अपने विचार रखे।

कार्यक्रम के दौरान पारंपरिक गांवों का एहसास कराती प्रदर्शनी भी आयोजित की गई, जिसमें पारंपरिक घर, घराट, पहाड़ी व्यंजन और पहाड़ी किचन सामग्रियों का प्रदर्शन किया गया। इस दौरान विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. डॉ. प्रीति कोठियाल ने कहा कि शिक्षक और अभिभावक मिलकर युवाओं को अपने पहाड़ों को संवारने के लिए प्रेरित कर सकते हैं ताकि वीरान ‘घोस्ट विलेजेज़’ को समृद्ध बनाया जा सके।

कार्यक्रम के दौरान उपकुलपति डॉ. आरके त्रिपाठी, डीन एकेडेमिक्स अफेयर्स डॉ. संदीप शर्मा, मुख्य सलाहकार डॉ. एके जायसवाल सहित अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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नंदा देवी पर्वत पर मिली करोड़ों साल पुरानी स्टारफिश

हिमालय के नंदा देवी पर्वत पर एक ऐसी स्टारफिश के अवशेष मिले हैं जो लगभग 46 करोड़ 50 लाख साल पुराने हैं, जो कि आश्चर्य का विषय है। देवभूमि उत्तराखंड यूनिवर्सिटी में आयोजित कार्यक्रम के दौरान भूगर्भ विशेषज्ञ प्रो. एमपीएस बिष्ट ने बताया कि कुछ समय पहले उन्होंने नंदा देवी पर्वत से एक ऐसी स्टारफिश के अवशेष को ढूंढ निकाला जो लगभग 46 करोड़ 50 लाख साल पुराना है। दरअसल, करोड़ों साल पहले इंडियन और ऑस्ट्रेलियाई टेक्टोनिक प्लेटों के एक दूसरे से टकराने के कारण इंडो-ऑस्ट्रेलियन टेक्टोनिक प्लेट का निर्माण हुआ। जिससे, जल और थल के जीव जंतु का एक दूसरे के क्षेत्र में विलय हो गया। स्टारफिश का हिमालय में पाया जाना भी उसी का परिणाम है।

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