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बाबा (Baba) की दर पर भक्तों का मेला

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बाबा (Baba) की दर पर भक्तों का मेला

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

देव भूमि उत्तराखंड अपनी विविधताओं के लिए जाना जाता हैं कैंची धाम कुमाऊँ की पहाड़ियों के गर्भ में स्थित एक प्रसिद्ध हनुमान मंदिर है। यह स्थान सुंदरता और आध्यात्मिकता का एक आदर्श संयोजन प्रदान करता है। पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ और साथ में बहने वाली एक नदी, कैंची धाम उन लोगों के लिए एक स्वर्ग है जो शांति और शांति चाहते हैं। मंदिर की स्थापना 1960 के दशक में एक स्थानीय और बहुत गहरे संत नीम करोली बाबा ने की थी। यह नीम करोली बाबा का एक आश्रम भी है, जिन्हें भगवान हनुमान का अवतार माना जाता है। भक्त आश्रम में भगवान हनुमान और नीम करोली बाबा की दिव्य उपस्थिति को महसूस करने का दावा करते हैं।आश्रम को अपना नाम उसके स्थान के अनुरूप मिलता है जो दो पहाड़ियों के रूप में कैंची जैसी (हिंदी भाषा में कैंची) आकार बनाता है, जिसके बीच में आश्रम स्थित है, एक दूसरे को काटते और पार करते हैं।

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नीम करोली बाबा ने वर्ष 1973 में समाधि ली थी और तब से उन्हें भगवान हनुमान का अवतार माना जाता है। कैंची धाम तब प्रसिद्ध हुआ जब वर्ष 1973 में एप्पल इंक के पूर्व सीईओ स्टीव जॉब्स ने मंदिर का दौरा किया। अपने करियर में एक तनावपूर्ण समय से गुज़रते हुए, जॉब्स एक ऐसी जगह की तलाश में भारत आए, जहाँ वे अपने सवालों के जवाब पा सकें और जीवन के अंतिम सत्य, निर्वाण और प्रज्ञा को प्राप्त कर सकें। जॉब्स ने आश्रम में ध्यान किया और वापस प्रबुद्ध हो गए। बाद में, फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने भी शांति और ज्ञान की खोज में कैंची धाम का दौरा किया। हर साल 15 जून को नीम करोली बाबा के जन्मदिन पर, आश्रम में एक मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें स्थानीय लोगों और पर्यटकों दोनों की भारी भीड़ रहती है।

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समुद्र तल से 1400 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, नैनीताल-अल्मोड़ा मार्ग पर स्थित यह आश्रम सुरम्य है और भारत के सबसे प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। आश्रम को शुरू में सोम्बरी महाराज और साधु प्रेमी बाबा के समर्पण के रूप में बनाया गया था, जो उस स्थान पर यज्ञ करते थे।नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में उनका जन्म 1900 के आसपास हुआ था। 17 वर्ष की उम्र में ही उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी। उनके पिता का नाम दुर्गा प्रसाद शर्मा था। ११ वर्ष की उम्र में ही बाबा का विवाह हो गया था। 1958 में बाबा ने अपने घर को त्याग दिया और पूरे उत्तर भारत में साधुओं की भांति विचरण करने लगे थे। उस दौरान लक्ष्मण दास, हांडी वाले बाबा और तिकोनिया वाले बाबा सहित वे कई नामों से जाने जाते थे। गुजरात के ववानिया मोरबी में तपस्या की तो वहां उन्हें तलईया बाबा के नाम से पुकारते लगे थे। कैंची धाम में शनिवार को भक्तों की खासी भीड़ रही। रविवार को भी यहां ऐसे ही हालात होने की संभावना है।शनिवार को सड़क से मंदिर तक लंबी लाइन में लगकर भक्तों ने बाबा के दर्शन किए। इस दौरान पुलिस बल भक्तों की सुविधा के लिए लगातार भीड़ को नियंत्रित करता है। प्रतिष्ठा दिवस के दिन 15 जून को कैंची धाम मेले में मालपुए का प्रसाद बांटा जाता है। मालपुए बनाने का काम 12 जून से शुरू हो जाता हैं। शुद्ध देशी घी से बने मालपुए बनाने के यहां अलग नियम हैं। और यह नियम किसी तप से कम नहीं है। प्रसाद बनाने में वही श्रद्धालु भाग ले सकता है जो व्रत लेकर आए और धोती, कुर्ता धारण कर उस अवधि में लगातार हनुमान चालीसा का पाठ कर रहा हो। महाप्रसाद मालपुआ अब भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआइ) से प्रमाणित होगा। खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (एफएसडीए) विभाग प्रमाणीकरण की पूरी प्रक्रिया अपनाने के बाद महाप्रसाद को प्रमाणित करेगा।

(लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं)

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