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उद्यान माफिया के चंगुल में उत्तराखंड का चौबटिया गार्डन!

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उद्यान माफिया के चंगुल में उत्तराखंड का चौबटिया गार्डन!

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

चौबटिया गार्डन जिसका क्षेत्रफल 235 हैक्टेयर है की स्थापना 1860 में हुई लेकिन इसने विधिवत् बाग का रूप 1868 में लिया। मि० क्रो, के नेतृत्व में यहां पर सेब, नाशपाती, खुवानी ,प्लम चेरी, हैजैलनट आदि शीतोष्ण फल पौधों का रोपण किया गया। ब्रिटिश शासकों ने वर्ष 1932 में पर्वतीय क्षेत्रों में शीतोष्ण फलौ के उत्पादन सम्बन्धी ज्ञान  जैसे पौधों को लगाना, पौधों का प्रसारण , मृदा की जानकारी, खाद पानी देने, कटाई छंटाई, कीट व्याधियों से बचाव आदि के निराकरण हेतु चौबटिया उद्यान में पर्वतीय फल शोध केंद्र की  स्थापना की।

केन्द्र द्वारा अन्य पर्वतीय राज्यों हिमाचल प्रदेश, जम्बू काश्मीर, मणिपुर, सिक्किम तथा पड़ोसी देश भूटान, नैपाल, अफगानिस्तान को फल पौध रोपण सामग्री उपलब्ध कराई गई साथ ही इन राज्यों व प्रदेशौं के प्रसार कार्यकर्त्ताओं को प्रशिक्षण दिया जाता रहा। राज्य बनने पर आश जगी थी कि अपने राज्य की सरकारें पुरखौ के रखे राज्य में उद्यान विकास की आधारशिला को यहां के बागवानौ के हित में उन्नति के पथ पर आगे बढायेंगें  लेकिन आज उद्यान विकास की पुरखौती की रखी यही आधार शिला बन्द होने के कगार पर है।

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उद्यान विकास द्वारा ही इस पहाड़ी राज्य का आर्थिक विकास सम्भव था किन्तु बिडम्बना देखिये राज्य बने बाइस बर्षौं  में भी उद्यान विभाग को स्थाई निदेशक नहीं मिला राज्य बनने से अब तक 12 से अधिक कार्य वाहक निदेशक एक या दो बर्षौ के लिए बने जो अपना सेवा विस्तार बढ़ाने के चक्कर में हुक्मरानों को खुश करने में ही रहे, उसी का दुषपरिणाम है कि आज अधिकतर आलू फार्म, औद्यानिक फार्म, फल शोध केंद्र बन्द हो चुके हैं या बन्द होने के कगार पर है । भारत सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के कार्यान्वयन में पारदर्शिता नहीं दिखाई देती।

फर्जी उत्पादन के आंकड़ों के सहारे प्रगति आख्या दर्शाई जाती है।एक समय था जब उद्यान विभाग फल पौध, सब्जी बीज, आलू बीज के उत्पादन में आत्मनिर्भर ही नहीं बल्कि उच्च गुणवत्ता के सेब आड़ू प्लम खुवानी नाशपाती की फल पौध अन्य राज्यों को भी देता था वर्तमान में पहाड़ी जनपदों की पंजीकृत व्यक्तिगत नर्सरियों विभाग की उपेक्षा के कारण समाप्त हो रही है। सेब ग्राफ्ट बाधाने हेतु ऊंचे दामों पर सेब के बीजू पौधे भी राज्य की पंजीकृत व्यक्तिगत नर्सरियों की अनदेखी कर काश्मीर से मंगाये जा रहे हैं।

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राज्य में अधिकतर गतिविधियां बंद पड़ी है योजनाओं में अधिकतर निम्न स्तर के निवेश उच्च दामों में निजि कम्पनियों या दलालों के माध्यम से अन्य राज्यों से क्रय किए जा रहे हैं। उद्यान विकास द्वारा राज्य को आत्मनिर्भर बनाने का कोई प्रयास नहीं किया गया।अधिकारियों की फौज खड़ी कर दी गई है ज्यादातर अधिकारी व कर्मचारी देहरादून में बैठा दिये गये है उद्यान निदेशालय चौबटिया रानीखेत को एक अधिकारी चला रहा है।

भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त ने उत्तर प्रदेश में अपने मुख्यमंत्री के कार्य काल में पर्वतीय क्षेत्रों के विकास का सपना देखा व उसे वास्तविक रूप से धरातल पर उतारने के लिये  रानीखेत में सन् 1953 में माल रोड़ रानीखेत (अल्मोड़ा) में किराए के भवनों में उद्यान विभाग का  निदेशालय  फल उपयोग विभाग उत्तर प्रदेश रानीखेत की स्थापना की यह निदेशालय उत्तर प्रदेश सरकार का एक मात्र निदेशालय था जिसका मुख्यालय पर्वतीय क्षेत्र रानीखेत में स्थापित था।

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डाॅ० विक्टर साने इसके पहले निदेशक बने लम्बे समय तक समस्त उत्तर प्रदेश का उद्यान निदेशालय  रानीखेत रहा। राज्य बनने से पूर्व उद्यान निदेशालय, उद्यान भवन, चौबटिया रानीखेत से संचालित होता था  राज्य बनने के बाद धीरे धीरे सभी वरिष्ठ अधिकारियों के पद देहरादून सम्बन्ध कर दिए गए। निदेशालय को पूरी तरह सर्किट हाउस देहरादून सिफ्ट करने के प्रयास कार्यवाहक निदेशकों द्वारा समय समय पर किए जाते रहे हैं। उद्यान विभाग में भले ही उद्यान मंत्री ने अटैचमेंट पर चाबुक चलाने का काम किया है, लेकिन उत्तराखंड के कई ऐसे भी विभाग हैं, जिनमें अटैचमेंट का खेल अभी भी जारी है। जरूरत से ज्यादा अधिकारी और कर्मचारी देहरादून में निदेशालयों में तैनात हैं। ऐसे में देखना ये होगा कि क्या जिस तरीके से अटैचमेंट के खेल पर कैबिनेट मंत्री ने चाबुक चलाया है, क्या अन्य मंत्री और खुद मुख्यमंत्री भी उसी राह पर
चलते हुए कोई फैसला लेंगे।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार हाईकोर्ट में दीपक करगेती ने जनहित याचिका दायर की थी। जिसमें उन्होंने कहा है कि उद्यान विभाग में कई घोटाले हुए हैं। उद्यान विभाग में लाखों का घोटाला किया गया है, जिसमें फल और अन्य के पौधरोपण में गड़बडियां की गईं हैं। विभाग की ओर से एक ही दिन वर्क ऑर्डर जारी कर उसी दिन जम्मू-कश्मीर से पेड़ लाना दिखाया गया है, जिसका पेमेंट भी कर दिया गया। शीतकालीन सत्र में निलंबित उद्यान निदेशक की ओर से पहले एक नकली नर्सरी अनिका ट्रेडर्स को पूरे राज्य में करोड़ों की पौध खरीद का कार्य देकर बड़े घोटाले को अंजाम दिया।

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सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि उन्हें सरकार के निर्णय पर कुछ नहीं कहना है। यह आस्था 9 अगस्त को उच्च न्यायालय निर्णय से जुड़ी है।
उन्होंने कहा कि सरकार का मौन सम्पूर्ण भ्रष्टाचार का कारण रहा है। पिछ्ले डेढ़ वर्ष से सरकार ने किसानों की कोई सुध नहीं ली। यहां यह बताना उचित होगा कि हाल ही में डॉ. बवेजा के पूर्ववर्ती डॉ. बीर सिंह नेगी को छोड़कर, जिनका निदेशक, बागवानी के रूप में 6 वर्षों का परेशानी मुक्त और दोषरहित लंबा कार्यकाल रहा, किसी अन्य निदेशक का कार्यकाल परेशानी मुक्त नहीं रहा। दरअसल यह वही अधिकारी हैं जिनके खिलाफ कई बार शिकायतें भी आईं। जांच भी हुई, लेकिन जांच की फाइलें ठंडे बस्ते में चली गईं। विभाग के स्तर पर किसी कार्रवाई को अमल में नहीं लाया गया। कई बार सवाल उठाए गए कि क्या इतने आरोपों के बीच भी निदेशक उद्यान पर कार्रवाई ना होना किसी बड़े संरक्षण की ओर इशारा कर रहा है। ऐसे में मुख्यमंत्री ने जो एक्शन लिया, वह बाकी विभागों और मंत्रियों के लिए भी एक बड़ा सबक बन गया है।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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