उत्तराखंड में हर साल मौसम लेकर आया कई मुसीबतें और चुनौतियां
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के लिए मानसून का मौसम हर साल कई मुसीबतें और चुनौतियां लेकर आता है। लेकिन, इस बार हो रही बारिश कुमाऊं और गढ़वाल दोनों ही क्षेत्रों के लिए किसी श्राप से कम साबित नहीं हो रही है। प्रदेश में हर तरफ से सिर्फ तबाही और जलप्रलय की ही तस्वीरें सामने आ रही हैं। पहाड़ों से भूस्खलन और पहाड़ी मलबा गिरने की खबरें आ रही हैं। मैदानी इलाकों में जलभराव और बाढ़ की तस्वीरें सामने आ रही हैं।
मैदानी इलाकों में सबसे ज्यादा अगर नुकसान कहीं हो रहा है तो वो हरिद्वार है। जहां जलप्रलय और बाढ़ जैसे हालात हैं। लेकिन, इसके लिए क्या सिर्फ प्रकृति की जिम्मेदारी है या फिर मानव द्वारा पहाड़ों पर हो रहा अंधाधुंध, अव्यवस्थित विकास और बिना मानकों के पहाड़ों पर घर बनाना, पहाड़ की क्षमता से अधिक होटलों की बड़ी-बड़ी बिल्डिंग बनाना, नदियों के किनारे घर बनाना या फिर अव्यवस्थित ड्रेनेज सिस्टम ही क्यों न हो। जिस तरह से उत्तराखंड के पहाड़ों में रेलवे टनल के निर्माण के लिए तय क्षमता से अधिक मात्रा में ब्लास्ट करने के लिए विस्फोटकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। उससे ये पहाड़ और कमजोर हो गए हैं।
इतना ही नहीं इसी साल जोशीमठ में भी भू-धंसाव और घरों में दरारें आने की घटना हुई है। अभी भी जोशीमठ में स्थिति सामान्य नहीं है। भारी बारिश के कारण जहां अलकनंदा नदी का जलस्तर बढ़ गया है, जिससे एक बार फिर पहाड़ के कटाव का खतरा बढ़ गया है। वहीं, पिथौरागढ़ में भी भारी बारिश से पहाड़ टूटकर गिर रहे हैं। अल्मोड़ा जिले से पहाड़ों के गिरने की खबरें आ रही हैं। प्रदेश में चारधाम यात्रा भी चल रही है, जिसके कारण यहां आने वाले लोगों की संख्या बढ़ी हुई है। सभी लोग सुरक्षित रहें, इसकी बड़ी चुनौती भी प्रदेश सरकार के सामने है। भारी बारिश के कारण गंगोत्री और यमुनोत्री हाईवे बंद पड़ा हुआ है तो उधर बारिश और भूस्खलन के कारण केदारनाथ यात्रा को भी रोका गया है।
बारिश के कारण बद्रीनाथ हाइवे बार-बार भूस्खलन होने से बंद हो रहा है। अभी मौसम विभाग ने बारिश का रेड और येलो अलर्ट जारी कर रखा है। जो फिलहाल 17 जुलाई तक है। साल 2013 में 16-17 जून को केदारनाथ धाम में चौराबाड़ी झील में बादल फटने से भारी मलबा और
विशाल बोल्डर ने तबाही ला दी थी। शांत केदार घाटी में अचानक मचे कोलाहल ने सबको चौंका दिया था। किसी ने सोचा नहीं था कि मंदाकिनी नदी विकराल रूप लेकर इस कदर तबाही मचा देगी। इस हादसे में दस हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे।
केदारनाथ आपदा में 11,091 से ज्यादा मवेशी बाढ़ में बहकर और मलबे में दबकर मर गए थे। 1,309 हेक्टेयर भूमि तबाह हो गई। इस आपदा में 2,141 भवन, 100 से ज्यादा बड़े और छोटे होटल, 9 नेशनल हाईवे, 2,385 सड़कें, 86 मोटर पुल, 172 बड़े-छोटे पुल भी बुरी तरह तबाह हो गए।
पर्यावरण विशेषज्ञों और जानकारों का मानना है कि केदारनाथ में साल 2013 में आई आपदा के दो कारण थे। आज भी जो स्थिति सामने है, उसके लिए भी यही दो कारण हैं। पहला मानसूनी हवा और दूसरा पश्चिमी विक्षोभ में होने वाला बदलाव। इन दोनों के चलते ही केदारनाथ में पानी से तबाही मची थी। यही दो कारण आज की आपदा के लिए जिम्मेदार हैं।
इस आपदा का कारण तेज बारिश, बाढ़ और भू-स्खलन को भी बताया जाता है। इस आपदा के पीछे मानवीय कारणों को भी दोषी ठहराया जाता है, पहाड़ों में जरूरत से ज्यादा निर्माण, बहुत अधिक संख्या में पर्यटकों की आवाजाही भी आपदा के कारण हैं। खनन, पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले पदार्थों की अधिकता से पारिस्थितिकी तंत्र को अधिक नुकसान हुआ है। जो अभी वर्तमान स्थिति का प्रमुख कारण है।
2013 की वो आपदा सरकार के लिए एक सबक थी। जिसके बाद दुबारा कभी ऐसी भयानक आपदा प्रदेश में न हो इसके लिए तमाम सरकारों ने कई योजनाएं बनाई। ऐसा नहीं है कि यहां जनता पर राज करने वाली दोनों ही सरकारों ने पहाड़ के विकास को कभी नजरअंदाज किया हो। अगर ऐसा होता तो आज उत्तराखंड में इतनी तेजी से विकास नहीं हो रहा होता। फिर चाहे वो विकास, ऑल वेदर रोड – जिसे अब चारधाम यात्रा मार्ग के नाम पर बदल दिया गया है, वो हो या फिर तेजी से नदियों के ऊपर ब्रिज बनाने का काम, ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलवे लाइन बिछाने का काम हो या फिर बद्रीनाथ धाम के पुनर्निर्माण की योजना। इन सभी के लिए वर्तमान की केंद्र और राज्य सरकार मिलकर काम कर रही है। पर्यटन को बढ़ाने के लिए भी सरकार लगातार काम कर रही है।
केदारनाथ मंदिर का जहां कायाकल्प हो रहा है तो बद्रीनाथ धाम के भी पुनर्निर्माण व कायाकल्प का काम चल रहा है। साथ ही ऋषिकेश में जल्द ही पर्यटकों को ग्लास ब्रिज की सौगात मिलने वाली है। हरिद्वार में हरि की पौडी में भी कॉरिडोर बनाने की योजना पर काम किया जा रहा है।
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दरअसल, हम आज ये बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि आज एक बार फिर 2013 की ही स्थिति प्रदेश में देखने को मिल रही है। खासतौर पर गढ़वाल मंडल में। उत्तराखंड साल 2000 में अस्तित्व में आया था। जो दो हिस्सों में बटा है पहला गढ़वाल मंडल और दूसरा कुमाऊं मंडल। अगर हम कुमाऊं की बात करें तो वहां जो पहाड़ हैं वो पत्थर के हैं। जिसे रॉक माउंटेन कहते हैं, जो काफी मजबूत होते हैं। यही कारण है कि कुमाऊं क्षेत्र में गढ़वाल मंडल की तुलना में बारिश के मौसम में कुछ कम नुकसान हुआ है। जबकि, भारी बारिश में गढ़वाल क्षेत्र में सबसे ज्यादा बाढ़, पहाड़ों का गिरना, भूस्खलन जैसी घटनाएं काफी घटती हैं। क्योंकि यहां के पहाड़ भूरभूरी रेत के हैं। जो बहुत कमजोर होते हैं। पर्यावरणविद् ने कहा कि चार धाम जाने के लिए सड़कें चौड़ी कर दी गई हैं। वहां हजारों गाड़ियां पहुंच रही हैं, जिससे हालात बिगड़ रहे हैं। गाड़ियां खड़ी करने के लिए पार्किंग तक नहीं हैं। इस वजह से सड़कों पर जाम लगा रहता है।
इसके अलावा पहाड़ों पर वीकेंड टूरिज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे हिमालय की इकोलॉजी को नुकसान पहुंच रहा है। दूसरा इसके बदले स्थानीय लोगों को कोई फायदा भी नहीं मिल रहा। कुछ गिने-चुने लोगों की लॉबी न केवल कमाई कर रही है, बल्कि, जब पर्यटकों की संख्या सीमित करने की बात होती है तो प्रशासन पर दबाव बनाकर इसका विरोध करती है। प्रशासन का कहना है कि प्रदेश में आपदा की स्थिति है। हम लगातार मॉनिटरिंग कर रहे हैं। साथ ही किसी भी आपदा की स्थिति से निपटने के लिए एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, आपदा प्रबंधन विभाग, आपदा कंट्रोल रूम, पुलिस, स्वास्थ्य विभाग आदि सभी को अलर्ट पर रहने के आदेश जारी कर दिए गए हैं। सभी जिलाधिकारी, उप जिलाधिकारी को अपने-अपने क्षेत्र में मॉनिटरिंग करने के आदेश जारी कर दिए गए हैं।
मुख्यमंत्री धामी ने भी चारधाम यात्रा में आ रहे यात्रियों से अपील की है कि वो मौसम को देखते हुए यात्रा के लिए आएं। लेकिन, सवाल अभी भी यही है कि क्या इसी तरह का विकास पहाड़ चाहता है। जिससे नदियों में बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है, कई पहाड़ी क्षेत्रों में भू-धंसाव, दरारें आना, पहाड़ों का कटाव, नदियों में बढ़ता अवैध खनन, चमोली में हाइड्रो पावर प्लांट के नाम पर ऋषिगंगा में 2016 में आई बाढ़ हो या जोशीमठ मेंएनटीपीसी के द्वारा बनाई जा रही टनल ही क्यों न हो?। ऐसा लगता है मानो विभाग एक और बड़ी अनहोनी के इंतजार में है।
(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )