Landslide in Gaurikund Uttarakhand: गौरीकुंड में भारी बारिश से तबाही - Mukhyadhara

Landslide in Gaurikund Uttarakhand: गौरीकुंड में भारी बारिश से तबाही

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Landslide in Gaurikund Uttarakhand: गौरीकुंड में भारी बारिश से तबाही

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

पिछले पचास वर्षों में, भूस्खलन और बाढ़ के कारण होने वाली आपदाएं दस गुना बढ़ गई हैं। इसके बावजूद कि वैश्विक डेटाबेस में भूस्खलन को काफी कम दर्ज किया गया है। दुनिया भर में, पहले से ही भूस्खलन से हर साल औसतन 4500 लोग मारे जाते हैं। भविष्य में दो बढ़ते रुझानों-जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण के कारण भूस्खलन का खतरा और भी बढ़ना तय है। 80 फीसदी से अधिक घातक भूस्खलन उष्णकटिबंधीय इलाकों में होते हैं, जो मुख्य रूप से चक्रवात और मॉनसून के दौरान भारी वर्षा से उत्पन्न होते हैं।

कई उष्णकटिबंधीय देशों, विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में शहरीकरण की बढ़ती गति, अधिक लोगों को भूस्खलन के रास्ते में धकेल देगी।

सिविल इंजीनियर और पांडुलिपि के प्रमुख अध्ययनकर्ता डॉ. उगुर जतुर्क कहते हैं कि पहाड़ों में लोगों द्वारा किए जा रहे बदलावों के कारण उनके कमजोर होने के आसार बढ़ जाते हैं। घरों के लिए जगह बनाने के लिए पहाड़ों को काटे जाने से पहाड़ अधिक अस्थिर हो जाते है। जंगलों को साफ करने और खराब जल निकासी या लीक पाइप के माध्यम से पानी फैलने से भी भूस्खलन की आशंका अधिक होती है। तो क्या खनन और बुनियादी ढांचे जैसे सड़कों का निर्माण से भी भूस्खलन होता है।

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ऐतिहासिक आंकड़ों में पाए गए सहसंबंधों के आधार पर वर्तमान भूस्खलन के खतरों के मूल्यांकन पुरे नहीं हैं जहां भूस्खलन के रिकॉर्ड सही नहीं हैं या गायब हैं। जैसा कि कई निम्न और मध्यम आय वाले देशों में आम है। रिमोट सेंसिंग, आंकड़े एकत्र करने और मॉडलिंग में प्रगति के कारण प्राकृतिक पर्यावरण, बदलते वर्षा पैटर्न और अनौपचारिक शहरीकरण के बीच परस्पर प्रभाव को बढ़ाना संभव है।

भगवान शिव के ग्यारहवें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ धाम का अंतिम पडाव स्थल है।रुद्रप्रयाग जिले के गौरीकुण्ड में भारी बारिश के चलतेभूस्खलन होने से भारी नुकसान की खबर आ रही है। इस घटना में कुछ दुकानें बहनें और दर्जन भर से ज्यादा लोगों के लापता होने की सूचना है। भूस्खलन होने के कारण 2 से 3 दुकानें बहने की सूचना है। साथ ही दर्जनभर से ज्यादा लोगों की लापता होने की संभावना जताई जा रही है।
जिसमें से कुछ नेपाली मूल के भी होने की आशंका है।

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पहाड़ों पर निरंतर हो रही बरसात के कारण पहाड़ दरक रहे हैं। इस वजह से आए दिन बरसात के मौसम में पहाड़ों पर इस प्रकार के हद से हो रहे हैं।

केदारघाटी में भारी बारिश से भूस्खलन, मलबे की चपेट में आई तीन दुकानें, 13 लोग लापता, केदारनाथ यात्रा रोकी गई

भारी बारिश से केदारनाथ धाम के मुख्य पड़ाव गौरीकुंड में पहाड़ी से मलबा गिरने से तीन दुकानें जमींदोज हो गईं। मलबे की चपेट में आकर 13 लोगों के लापता होने की सूचना मिल रही है। जिस वक्त ये हादसा हुआ उस समय लोग सो रहे थे। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले को देश में भूस्खलन से सबसे अधिक खतरा है।

भूस्खलन जोखिम के मामले में देश के 10 सबसे अधिक संवेदनशील जिलों में टिहरी दूसरे स्थान पर है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के राष्ट्रीय सुदूर संवेदी केंद्र (एनआरएससी) की हाल ही में जारी भूस्खलन मानचित्र रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है।

रिपोर्ट में भूस्खलन जोखिम विश्लेषण किया गया है। इसके अनुसार, सर्वाधिक भूस्खलन प्रभावित 147 जिलों में उत्तराखंड के सभी 13 जिले शामिल हैं। इनमें चमोली जिला भूस्खलन जोखिम के मामले में देश में 19वें स्थान पर है।

बता दें कि चमोली जिले का जोशीमठ शहर इन दिनों भूस्खलन के खतरे की चपेट में है। वैज्ञानिक इसकी तकनीकी जांच कर खतरे को भांप रहे हैं।

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बहरहाल उपग्रह से लिए गए चित्रों की रिपोर्ट बता रही है कि उत्तरकाशी देश में 21वें स्थान पर है। पौड़ी गढ़वाल की 23वीं और देहरादून जिले की 29वीं रैकिंग हैं। नीति निर्माताओं को भूस्खलन को समझने में बनाता है। साथ ही भूस्खलन के जानकारों को एक साथ लाने, तेजी से उन जगहों की पहचान करने के लिए नीतियां बनाई जाए, ताकि सबसे खराब स्थिति को रोका जा सके। देश में सबसे अधिक भूस्खलन घनत्व वाला जिला रुद्रप्रयाग है। यानी भूस्खलन से इस जिले को सबसे अधिक सामाजिक और आर्थिक क्षति होने का खतरा है उत्तराखंड पर 50 भूस्खलन क्षेत्रों का खतरा मंडरा रहा है। ये क्षेत्र छोटे से लेकर बेहद बड़े आकार के भी हैं। इसके साथ ही राज्य में ऐसे तमाम स्थान हैं, जहां पर नदियों की बाढ़ का खतरा सबसे अधिक है।

भूस्खलन के खतरे को कम करने के लिए सामुदायिक भूमि में वन क्षेत्र में वृद्धि जरूरी है। साथ ही शहरीकरण गतिविधियों जैसे बांधों या अन्य वाणिज्यिक परियोजनाओं का निर्माण कम करें। सड़क निर्माण और अधिक यातायात से लोगों की संख्या बढ़ती है जो सड़क किनारे स्थित स्थलों पर नए आर्थिक अवसर तलाशने की कोशिश करेंगे। ये स्थल भूस्खलन के लिहाज से अधिक संवेदनशील होते हैं क्योंकि निर्माण के कारण अक्सर वनस्पतियों को हटाया जाता है तथा ढलान अस्थिर हो जाते हैं। अगर भूमि का इस्तेमाल मौजूदा प्रवृत्ति के अनुसार बदलता रहता है तो हम भविष्य में भूस्खलन में वृद्धि देखेंगे। हमें इन प्रवृत्तियों का विश्लेषण करने की आवश्यकता है।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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