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बड़ी खबर: सिविल पुलिस, एसटीएफ व बॉम्ब-स्क्वॉड में तैनात कर्मियों को भी मिल सकता है जोखिम भत्ता (risk allowance), मानवाधिकार आयोग ने जारी किए आदेश

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बड़ी खबर: सिविल पुलिस, एसटीएफ व बॉम्ब-स्क्वॉड में तैनात कर्मियों को भी मिल सकता है जोखिम भत्ता (risk allowance), मानवाधिकार आयोग ने जारी किए आदेश

देहरादून/मुख्यधारा
राजभवन, सीएम आवास, एलआईयू, विजिलेंस में नियुक्त कर्मियों की भांति ही सिविल पुलिस, एसटीएफ, बॉम्ब-स्क्वॉड आदि में नियुक्त कर्मियों को भी जोखिम भत्ता मिलने की संभावना बढ़ गई है। इसके लिए देहरादून निवासी वरिष्ठ पत्रकार एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता भूपेंद्र कुमार ने मानवाधिकार आयोग में पैरवी की है। उन्होंने तर्क देते हुए कहा था कि इस तरह की ड्यूटी पर तैनात कर्मियों की जान भी हमेशा जोखिम में बनी रहती है। लिहाजा इन्हें भी जोखिम भत्ता (risk allowance) दिया जाना न्यायोचित है।
 बता दें कि उत्तराखंड पुलिस में राजभवन, सीएम आवास, एलआईयू, विजिलेंस आदि विभागों में नियुक्त कर्मियों को जोखिम भत्ता दिया जाता है, जबकि सिविल पुलिस, एसटीएफ, बॉम्ब-स्क्वॉड आदि में नियुक्त कर्मियों को जोखिम भत्ता नहीं दिया जाता है, जबकि इन ड्यूटी पर तैनात सिविल पुलिस, बॉम्ब-स्क्वॉड आदि में नियुक्त कर्मियों की जान जोखिम हमेशा में रहती है।
बम स्क्वॉड में तैनात पुलिसकर्मियों को सूचना मिलती है कि फलां स्थान पर बम रखा हुआ है या बम फटने की आशंका है तो तत्काल बम स्क्वॉड को वहां जाना पड़ता है और अपनी जान जोखिम में डाल कर ड्यूटी पर तैनात हो जाते हैं।
 तकरीबन सिविल पुलिस में भी यही स्थिति होती है। जब भी इस तरह की सूचना मिलती है कि अपराधी किसी जगह छुपे हुए हैं और कोई बड़ा अपराध करने की फिराक में हैं तो उस समय तत्काल सिविल पुलिस वहां पहुंचती है और अपराधियों से सामना करते समय कई दफा अपराधियों से मुठभेड़ भी हो जाती है और उनकी जान पर बन आती है।
 इसी प्रकार चैन स्नैचिंग हो या कोई अन्य अपराध, सिविल पुलिस वहां तत्काल अपराधियों का सामना करने और उनको दबोचने के लिए पहुंचती है और कई दफा अपराधी पुलिस पर हमला कर देते हैं। ऐसे में सिविल पुलिस की जान भी हमेशा जोखिम में बनी रहती है, परंतु सिविल पुलिस कर्मियों को जोखिम भत्ता (risk allowance) नहीं दिया जाता है।
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इस जनहित के प्रकरण में संवाददाता भूपेंद्र कुमार द्वारा मानवाधिकार आयोग उत्तराखंड में 29-7-2023 को जनहित याचिका दायर कर निवेदन किया। उन्होंने लिखा कि यह स्पष्ट रूप से पुलिसकर्मियों के मानवाधिकारों से जुड़ा हुआ मामला है, इसलिए जनहित न्यायहित में पुलिस विभाग से यह रिपोर्ट तलब करने की कृपा करें कि किस-किस विभाग को जोखिम भत्ता दिया जाता है और कितना-कितना दिया जाता है तथा किस-किस विभाग को जोखिम भत्ता नहीं दिया जाता है और उस पर कार्रवाई करते हुए जिन पात्र पुलिसकर्मियों को जोखिम भत्ता नहीं दिया जा रहा है, उनके संबंध में कार्रवाई करते हुए उन्हें जोखिम भत्ता दिलवाने के आदेश जारी किया जाए।
भूपेंद्र कुमार की मांग पर मानवाधिकार आयोग के सदस्य (आईपीएस) राम सिंह मीणा द्वारा उनकी याचिका पर संज्ञान लेते हुए 04-8-2023 को आदेश जारी कर दिए गए।
जिसमें कहा गया है कि आदेश पत्रावली का अवलोकन किया गया है। शिकायतकर्ता भूपेन्द्र कुमार लक्ष्मी ने उत्तराखण्ड पुलिस में राजभवन, सीएम आवास, एलआईयू, विजिलेंस आदि विभागों में नियुक्त कर्मियों को जोखिम भत्ता दिये जाने, सिविल पुलिस, बॉम्ब – स्कॉड आदि में नियुक्त कर्मियों को जोखिमभत्ता नहीं दिये जाने तथा जनहित में तत्काल कार्यवाही किये जाने के सम्बन्ध में शिकायती पत्र प्रस्तुत किया है।
न्यायहित में शिकायत पत्र की प्रति पुलिस महानिदेशक, उत्तराखण्ड को नियमानुसार एवं विधि अनुसार उचित कार्यवाही करने हेतु प्रेषित करते हुये वाद निस्तारित किया जाता है।
कुल मिलाकर मानवाधिकार आयोग के आदेश के बाद अब सिविल पुलिस, एसटीएफ व बॉम्ब-स्क्वॉड आदि में नियुक्त कर्मियों को भी जोखिम भत्ता मिलने की संभावना बढ गई है। बहरहाल अब देखना यह होगा कि पुलिस मुख्यालय इस पर कब तक फैसला ले पता है!!

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