दुखद: देश में सुलभ शौचालय के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक (Bindeshwar Pathak) नहीं रहे, दिल्ली में तिरंगा फहराने के बाद अचानक बिगड़ी तबीयत, पीएम मोदी ने जताया दुख
मुख्यधारा डेस्क
आज पूरा देश 77 वां स्वतंत्र दिवस धूमधाम के साथ बना रहा है। लेकिन इस बीच आज एक खबर में देश को बड़ी क्षति पहुंचाई है। भारत में सुलभ शौचालय के संस्थापक बिदेश्वर पाठक का आज अचानक निधन से शोक की लहर दौड़ गई। सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक का मंगलवार को निधन हो गया।
डॉ. पाठक ने दिल्ली के एम्स में अंतिम सांस ली है। इनका पार्थिव शरीर बुधवार को सुबह करीब छह बजे महावीर एंक्लेव स्थित सुलभ ग्राम लाया जाएगा। वह मंगलवार को सुबह 10 बजकर 30 मिनट पर अपने आवास महावीर एंक्लेव स्थित सुलभ ग्राम पहुंचे। यहां करीब 11 बजे ध्वजारोहण हुआ। करीब पांच मिनट इन्होंने वहां मौजूद लोगों को संबोधित किया। इसके कुछ देर बाद इन्हें सांस लेने में थोड़ी दिक्कत महसूस हुई। करीब 12 बजकर 50 मिनट पर इनकी बेचैनी काफी बढ़ गई। इन्होंने स्वयं एम्स के चिकित्सक बात की। इसके बाद ये पूरे होश में एम्स निकले। डॉक्टरों ने उन्हें सीपीआर (कार्डियक पल्मोनरी रिससिटेशन) देकर धड़कन ठीक करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
बता दें कि करीब 1 बजकर 42 मिनट पर इन्होंने अंतिम सांस ली। डॉ. पाठक को 2003 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है।
साल 1970 में बदेश्वर पाठक ने सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की थी।
बिंदेश्वर पाठक बिहार के वैशाली के रहने वाले थे। बिंदेश्वर पाठक 1968 में कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद बिहार गांधी शताब्दी समारोह समिति के भंगी-मुक्ति (मेहतरों की मुक्ति) प्रकोष्ठ में शामिल हुए, जिससे उन्हें भारत में मैला ढोने वाले समुदाय की दुर्दशा के बारे में पता चला।
इस समुदाय की स्थिति में सुधार के लिए उन्होंने 1970 में सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना कर नागरिकों को स्वच्छ शौचालय की सुविधा देने की पहल थी। उनकी संस्था मानव अधिकार, पर्यावरण स्वच्छता, ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों, अपशिष्ट प्रबंधन और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देने के लिए काम करती है। भारत में मैला ढोने की प्रथा के खिलाफ अभियान चलाने वाले बिंदेश्वर पाठक ने देश में स्वच्छता अभियान में अहम भूमिका निभाई। देश में शौचालय निर्माण विषय पर उन्होंने बहुत शोध किया।
डॉ. पाठक ने सबसे पहले 1968 में डिस्पोजल कम्पोस्ट शौचालय का आविष्कार किया, जो कम खर्च में घर के आसपास मिलने वाली सामग्री से बनाया जा सकता है। यह आगे चलकर बेहतरीन वैश्विक तकनीकों में से एक माना गया। उनके सुलभ इंटरनेशनल की मदद से देशभर में सुलभ शौचालयों की शृंखला स्थापित की। इन्होंने सुलभ इंटरनेशनल की स्थापना की, जो मानव अधिकारों, पर्यावरण स्वच्छता, ऊर्जा के गैर-पारंपरिक स्रोतों, अपशिष्ट प्रबंधन और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा देने के लिए काम करती है।
देशभर में सुलभ इंटरनेशनल के करीब 8500 शौचालय और स्नानघर हैं। सुलभ इंटरनेशनल के शौचालय के प्रयोग के लिए 5 रुपये और स्नान के लिए 10 रुपये लिए जाते हैं, जबकि कई जगहों पर इन्हें सामुदायिक प्रयोग के लिए मुफ़्त भी रखा गया है।