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उत्तराखंड में मौसम का सितम जगह-जगह भूस्खलन (Landslides)

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उत्तराखंड में मौसम का सितम जगह-जगह भूस्खलन (Landslides)

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड में मानसून भारी गुजर रहा है। भारी वर्षा व भूस्खलन से जनजीवन बुरी तरह प्रभावित होने के साथ जानमाल की व्यापक क्षति उठानी पड़ रही है। 15 जून से मानसून के शुरू होने के बाद से अब तक आपदा से एक हजार करोड़ रुपये की क्षति का अनुमान है। इसमें भी मानसून से सड़कों को सर्वाधिक क्षति पहुंची है। मानसून अभी सक्रिय है और क्षति का आकलन भी चल रहा है।

वहीं अगर आज की मौसम की बात करें तो प्रदेश के ज्यादातर क्षेत्रों में आंशिक बादल छाए रह सकते हैं। आज भी देहरादून समेत आठ जिलों में गरज-चमक के साथ तीव्र बौछारों के एक से दो दौर हो सकते हैं। इसे लेकर येलो अलर्ट जारी किया गया है। मौसम विज्ञान केंद्र ने आज
प्रदेश के देहरादून, पौड़ी, टिहरी, नैनीताल, चंपावत, बागेश्वर, ऊधमसिंह नगर और पिथौरागढ़ जिलों में वर्षा का येलो अलर्ट जारी किया है। वहीं चमोली के मैठाणा व पागलनाला में बदरीनाथ राजमार्ग खतरनाक बना हुआ है। राज्य में 144 संपर्क मार्ग मलबा आने से अवरुद्ध हैं। 246 गांवों का जिला मुख्यालय से संपर्क कटा हुआ है। इन गांवों में खाद्यान्न समेत अन्य आवश्यक वस्तुओं का संकट गहराने लगा है।

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अतिवृष्टि के कारण समूचा उत्तराखंड आपदा की स्थिति से जूझ रहा है। नदी-नालों का वेग भयभीत कर रहा है तो भूस्खलन, भूधंसाव के कारण सार्वजनिक व निजी संपत्ति को भारी नुकसान पहुंच रहा है। आपदा ने सर्वाधिक क्षति पहाड़ की जीवन रेखा कही जाने वाली सड़कों को पहुंचाई है।चारधाम को जोड़ने वाली आल वेदर रोड समेत अन्य राजमार्ग हों या फिर राज्य राजमार्ग, जिला व संपर्क और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) की सड़कें, सभी छलनी हुई हैं। ऐसे में पर्वतीय क्षेत्रों में कठिनाइयां भी बढ़ गई हैं। देश, दुनिया में बड़ी प्राकृतिक आपदाओं में से एक भूस्खलन से जहां हर साल हजारों इंसानों को अपनी जिंदगी बचानी पड़ती है। वहीं अरबों की संपत्ति का नुकसान होता है।

उत्तराखंड में सरकार और शासन इसके प्रति गंभीर नजर नहीं आते। वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी जैसे वैज्ञानिक संस्थानों को भी भूस्खलन के कारणों के विस्तृत अध्ययन करने व रोकने को लेकर ठोस उपायों की सिफारिश देने के लिए नहीं लगाया गया है।सरकार और तमाम वैज्ञानिक संस्थान कितने संवेदनशील हैं इसका अंदाजा इसबात से लगाया जा सकता है कि पूरे उत्तराखंड में भूस्खलन पर निगरानी को लेकर कहीं भी अर्ली वार्निंग सिस्टम नहीं लगाए गए हैं।

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वाडिया इंस्टीट्यूट की ओर से आपदा के लिहाज से संवेदनशील कुछ ग्लेशियरों की निगरानी को लेकर ही अर्ली वार्निंग सिस्टम लगाए गए हैं। इतना ही नहीं वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के चलते उत्तराखंड समेत देश के तमाम पर्वतीय राज्यों में कम समय में बहुत अधिक
बारिश भी भूस्खलन का कारण बन रही है। वैज्ञानिकों की बातों पर यकीन करें तो उत्तराखंड समेत देश के तमाम हिमालयी राज्यों में अंधाधुंध  तरीके से सड़कों के निर्माण समेत तमाम विकास कार्य, वनों की कटाई और जलाशयों से पानी का रिसाव भूस्खलन का बड़ा कारण साबित हो रहा है।

( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरतहैं )

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