पहाड़ की स्वरागिनी उप्रेती सिस्टर (Upreti Sisters)
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
भारत की राजधानी दिल्ली में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में दुनिया ने भारत की मेहमान नवाजी देखी। देश में कोई बड़ा आयोजन हो और उत्तराखंड का कनेक्शन ना निकले ऐसा शायद ही हुआ हो भारत की राजधानी दिल्ली में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में दुनिया ने भारत की मेहमान नवाजी देखी। देश में कोई बड़ा आयोजन हो और उत्तराखंड का कनेक्शन ना निकले ऐसा शायद ही हुआ हो उत्तराखंड की उप्रेती सिस्टर ने भी खूबसूरत झोड़ गाकर विदेशी मेहमानों का स्वागत किया।
उत्तराखंड की बेटियों की मधुर आवाज ने इंदिरा गांधी एयरपोर्ट में मौजूद सभी लोगों का दिल जीत लियाउ त्तराखंड निवासी नीरज उप्रेती और ज्योति उप्रेती को पहाड़ की स्वरागिनी भी कहा जाता है। दोनों बहने सोशल मीडिया पर उप्रेती सिस्टर्स नाम से काफी विख्यात है। इसके अलावा वह टीवी पर प्रसारित होने वाले सिंगिंग रियलिटी शो का भी हिस्सा रह चुके हैं। दोनों संगीत के माध्यम से लोकभाषा को प्रमोट कर रही
है। नीरजा उप्रेती टीवी के सिंगिंग रिएलिटी शो स्वर्ण स्वर भारत में लोगों का दिल जीत रही हैं। उनकी मधुर आवाज ने उनके कई फैंस बना दिए हैं। शो के जजों द्वारा नीरजा को खूब प्रोत्साहन मिल रहा है।
बता दें कि नीरजा इस शो में प्रतिभाग करने वाली उत्तराखंड से एकमात्र प्रतिभागी हैं। नीरजा की उपलब्धि से समस्त सीमांत क्षेत्र में खुशी की लहर है। दरअसल जी टीवी पर आजादी के अमृत महोत्सव के तहत सिंगिंग रिएलिटी शो प्रसारित किया जा रहा है। स्वर्ण स्वर भारत शो के अभी तक दो एपिसोड प्रसारित हो चुके हैं। इस शो को प्रसिद्ध अभिनेता रविकिशन होस्ट कर रहे हैं। प्रसिद्ध गायक कैलाश खेर, सुरेश वाडेकर व मशहूर कवि कुमार विश्वास जज की भूमिका में रह चुके हैं । नीरजा की बड़ी बहन ज्योति उप्रेती दूरदर्शन व आकाशवाणी की अधिकृत गायिका हैं। उन्होंने ज्योति उप्रेती से ही संगीत की बारीकियां सीखीं। दोनों बहनें।
बता दें कि दोनों बहनें अपनी गायिकी से विलुप्त हो रही उत्तराखंड के पारंपरिक लोकगीतों को पुनर्जीवित कर उनका संरक्षण करने का प्रयास कर रही हैं। इसके लिए बकायदा उन्होंने फेसबुक पेज व यू ट्यूब पर अपना चैनल भी बनाया है जिसके जरिए वे उत्तराखंड की संस्कृति और लोकगीतों का प्रचार कर रही हैं। उनके मधुर गीतों को लोगों द्वारा खूब पसंद किया जाता है। हिमालय के शिखरों में, ऊँचे पहाड़ों में स्वर्ग से भी सुंदर हमारे गाँव हैं, वहाँ की विराट संस्कृति है, सीधे सरल, भोले भाले लोग हैं, जिनका कठिनतम जीवन भी पहाड़ों की तरह मज़बूत और हर दुख कठिनाई को झेलने वाला है, यहाँ के टेडे मेड़े रास्ते, ऊँची नीची धार, गाड़ गध्यारा और मन मस्तिष्क को शांति प्रदान करने वाली प्राकृतिक सुंदरता है। किसी लोक को समझने के लिये पहले उस लोक को जीना आवश्यक है, हमारे मन में उस लोक के लिए और उस अंचल के प्रति गहरी संवेदनाओं का होना आवश्यक हैं, लोक समाज और लोक परिवेश के प्रति जागरूक होना आवश्यक है, जब आप उस लोक को, उसकी संस्कृति को समझ जाते हैं तो आप नीरस को भी सरस बना देते हैं।
आज हम अपने पारम्परिक संगीत को बचाने की बात करते हैं और उसके लिये प्रयासरत हैं तो उसका एकमात्र कारण अपने लोक के प्रति गहरा लगाव ही है, जिस प्रयास को हम हमेशा करते रहेंगे, उस मौखिक अनुभूति को सदा सहेजेंगे जिस अनुभूति से हमारी, हम सबकी पहचान है। ये देश के सर्वोच्च नेतृत्व का उत्तराखण्ड के लोगों और संस्कृति के प्रति लगाव, विश्वास का प्रतीक है। जय हो देवभूमि उत्तराखंड उनके उज्ज्वल भविष्य की ईश्वर से कामना करती है। ये लेखक के निजी विचार हैं।
( वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )