किसानों के लिए आय का अच्छा स्रोत साबित हो रहा है राजमा (Rajma)?
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
राजमा की खेती सबसे पहले मैक्सिको में हुई। यहां से पुर्तगाली इसे यूरोप लेकर गए। फिर ये यहां से दक्षिणी पश्चिमी तटों से होता हुआ भारत पहुंचा। कहते हैं कि राजमा सैंकड़ों साल पुराना है और तब से लेकर अब तक ये जितना भारत में पॉपुलर है, उतना शायद पश्चिमी देशों में भी नहीं है। सफेद राजमा को आप लोबिया के तौर पर भी जानते हैं। न्यूट्रीशियनिस्ट्स राजमा को काफी पौष्टिक करार देते हैं। उत्तराखंड एक ऐसा राज्य जो प्रकृति की गोद में विराजमान है। यहां की सुंदरता के कायल न सिर्फ भारतवासी हैं, बल्कि विदेशी भी यहां घूमने आते हैं। उत्तराखंड अपनी सुंदरता के साथ-साथ अपने व्यंजनों के लिए भी जाना जाता है। वैसे तो पहाड़ी खाना किसे पसंद नहीं होता। राजमा वैसे तो भारत के उत्तराखंड के पर्वतीय भागों, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक के कुछ भाग तथा तमिलनाडु व आंध्र प्रदेश में उगाया जाता है। इसके सूखे दानों को दाल के रूप में तथा तल कर खाया जाता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा 21 प्रतिशत होती है।
उत्तराखंड का राजमा इन सब में सबसे अधिक विख्यात है। यहां के राजमे की मांग पूरे देश में रहती है। उत्तराखंड के राजमा की बात की जाती है तो, यहां के हर्षिल घाटी में उगाए जाने वाले राजमा की बात ही अलग है। पूरे उत्तरकाशी जिले में ही राजमा का अच्छा-खासा उत्पादन होता है, लेकिन इसमें भी हर्षिल घाटी की राजमा का कोई जवाब नहीं। अपने विशिष्ट गुणों के कारण बाजार में इसकी खासी मांग है। राजमा प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत हैं और मुख्य रूप से रेशा और कार्ब्स से बने होते हैं। 100 ग्राम पकी हुई फलियों में 127 कैलोरी होती है। मौजूद अन्य पोषक तत्वों में 67 % पानी, 8.7g प्रोटीन, 22.8g कार्ब्स, 0.3g शुगर , 6.4g फाइबर, 0.5g वसा और 30.17g ओमेगा शामिल हैं। पशु प्रोटीन का पोषण मूल्य की तुलना राजमा में अधिक है। प्रोटीन के किफायती विकल्प के रूप में कई विकासशील देशों में राजमा का उपयोग किया जाता है। यह प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का एक समृद्ध स्रोत है।
राजमा का मुख्य पोषण घटक स्टार्च कार्ब है और मधुमेह के रोगियों के लिए उपयुक्त है। स्वाद में लाजवाब, विटामिन, फाइबर और अन्य खनिजों से भरपूर हर्षिल की राजमा प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का भी एक अच्छा स्रोत है। उत्तरकाशी जिले में दो हजार मीट्रिक टन से अधिक राजमा का उत्पादन होता है। इसमें हर्षिल घाटी 120 मीट्रिक टन का योगदान करती है।घाटी में समुद्रतल से 9000 फीट से लेकर 10 हजार फीट तक की ऊंचाई पर लगभग 120 हेक्टेयर क्षेत्रफल में राजमा की खेती होती है। यहां के सीमांत किसान राजमा को नकदी फसल के रूप में उगाते हैं। विशेष यह कि इसमें किसी भी तरह की रासायनिक खाद या कीटनाशक का प्रयोग नहीं होता।
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हर्षिल की प्रति सौ ग्राम राजमा में 10 ग्राम प्रोटीन मिलता है। इसके अलावा विटामिन ‘के’, कार्बोहाइड्रेट व आयरन सहित अन्य तत्व भी इसमें प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसका छिलका पतला होता है, जिस कारण इसे पकने में अधिक समय नहीं लगता। सुपाच्यता इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। हर्षिल घाटी में राजमा को पहुंचाने का श्रेय ईस्ट इंडिया कंपनी के कर्मचारी फ्रेडरिक विल्सन को जाता है।वर्ष 1850 से 1860 के बीच विल्सन सेब और राजमा को इंग्लैंड से यहां लाए थे। उन्होंने स्थानीय निवासियों को इसके बीज उपलब्ध कराए, जिसे कालांतर में हर्षिल की राजमा के नाम से प्रसिद्धि मिली। हर्षिल की सुंदर घाटी में उगाए जाने वाले इस राजमा की कीमत भी काफी ज्यादा है। बेहतरीन गुणवत्ता के कारण इसकी मांग बाजारों में अधिक होती है।
बाजार में मांग अधिक होने के कारण यह 250 से लेकर 300 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती है।भारत-चीन सीमा से सटे सीमांत जनपद उत्तरकाशी के हर्षिल क्षेत्र की राजमा देश में ही नहीं, विदेशों में भी धाक जमा रही है।देहरादून से हरसिल के मुख्य मार्ग में पढ़ने वाले स्थानों को फिल्माया वहां की लोक संस्कृति खान पान व ऐतिहासिक धार्मिक पक्षों से भी अवगत कराया जाएगा। उत्तरकाशी से लगभग 73 किलोमीटर की दूरी पर गंगोत्री को जाने वाले मार्ग पर स्थित है। हरसिल गांव समुद्र तल से इसकी ऊंचाई है 7860 यहां की मुख्य खेती है शेर और फसल है सफेद जो कि इंटरक्रॉपिंग के रूप में अंतरराष्ट्रीय बाजार में उभरी है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में यहां के शेरों की बहुत अधिक मांग है। यहां की राजमा ₹12000 क्विंटल तक बिक जाती है अपनी जरूरत के अलावा किसान 40 हजार तक की राजमा बेचकर अपना पूरे साल का खर्च निकाल लेते हैं। प्रसिद्ध फिल्मकार राज कपूर की फिल्म राम तेरी गंगा मैली का फिल्मांकन इसी क्षेत्र में हुआ था जिसे आज भी इसके मनमोहक दृश्य के कारण याद किया जाता है।
(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )