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यमुना के मायके में ही प्यासे हैं लोग

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यमुना के मायके में ही प्यासे हैं लोग

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

यमुना घाटी में जहां पानी ही पानी है वहां आज भी घरों के नल खाली और सूखे पड़े हैं। यमुनोत्री धाम के पास नौगावं क्षेत्र में जहां यमुना बह रही है वहीं नौगांव वासियों को पानी नसीब नहीं है। उत्तरकाशी ज़िले का नौगांव नगर पंचायत क्षेत्र ठीक यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है लेकिन पर्याप्त पानी होने के बावजूद भी लोग पानी के लिए तरस रहे हैं। घरों के नल पिछले काफी समय से सूखे पड़े हैं लेकिन आज भी इन घरों में
जलसंस्थान द्वारा पानी की नियमित सप्लाई नहीं दी जा सकी है। ऊंचे-ऊंचे और बड़े मंचों पर पलायन और पेयजल संकट को दूर करने को अक्सर नेताओं के जुबान से पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी जैसा वाक्य ज़रूर सुना जाता है लेकिन आज तक पहाड़ के पानी से पहाड़ के लोगों की प्यास बुझाने को ठोस योजना नहीं बन पाई है।

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नौगांव इसका ज्वलंत उदाहरण है, जहां स्थानीय लोग प्यास बुझाने के लिए सुबह ही टैंकर की इंतज़ार में लाइन में लगने लगते हैं। गृहणियां तो पानी की किल्लत से परेशान हैं ही, स्कूली बच्चों का समय भी इस जल संकट खा रहा है। नौगावं यमुना नदी से सिर्फ़ 300 मीटर की दूरी पर स्थित है। स्थानीय जनप्रतिनिधि यमुना नदी से अपलिफ्ट कर नगर क्षेत्र में पानी सप्लाई की मांग लम्बे समय से करते रहे हैं। इस पर पहले भी
विभाग से लेकर पेयजल मन्त्रालय तक हामी भर चुके हैं, लेकिन आज तक यह योजना धरातल पर नहीं उतर सकी है।नौगावं नगर क्षेत्र यमुनोत्री धाम जाने वाले श्रद्धालुओं का भी अहम पड़ाव है और यात्रा काल में हज़ारों श्रद्धालु नौगांव से गुज़रकर यमुनोत्री धाम पहुंचते हैं लेकिन पेयजल किल्लत के चलते यात्री नौगांव में रुकना भी पसंद नहीं करते। उम्मीद की जानी चाहिए कि जलसंस्थान अपनी जिम्मेदारी को समझ कर  नदी से पानी सप्लाई के लिए अपलिफ्टिंग की योजना पर जल्द काम करेगा।

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यमुना नदी किनारे बसे नगर पालिका बड़कोट में नगरवासियों को पानी के लिए तरसना पड़ रहा है। गर्मी बढ़ने के साथ पेयजल संकट गहराता जा रहा है, लेकिन यमुना नदी से बड़कोट तक प्रस्तावित पंपिंग योजना सर्वे से आगे नहीं बढ़ पाई है। चारधाम यात्रा के मुख्य पड़ाव बड़कोट में गर्मी की शुरूआत के साथ कई परिवारों को पीने का पानी नहीं मिल पा रहा है। यहां नगरवासी बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं। बड़कोट में पेयजल समस्या से निपटने के लिए जल निगम ने वर्ष 2018 -19 में तिलाड़ी तोक यमुना नदी से बड़कोट तक पंपिंग योजना का सर्वे किया था। इसमें बड़कोट गांववासियों को भूमि का प्रतिकर भी मिल गया, लेकिन राजनीतिक महत्वकांक्षा के चलते अभी तक योजना पूर्ण नहीं हो पाई।

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चारधाम यात्रा के मुख्य पड़ाव बड़कोट में गर्मी की शुरूआत के साथ कई परिवारों को पीने का पानी नहीं मिल पा रहा है। यहां नगरवासी बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं। वहीं करीब 60 लाख खर्च कर जल संस्थान की ओर से एक नई योजना के तहत लाइन बिछाने के साथ कनेक्शन पहुंचाए गए, लेकिन स्रोत से पानी घटने के कारण यह योजना भी सफेद हाथी साबित हुई। जय हो ग्रुप का कहना है कि जल संस्थान व जल निगम की घोर लापरवाही के चलते बड़कोट के लोगों को पीने का पानी नहीं मिल पा रहा है। चार दशक पुरानी पेयजल योजना के भरोसे हैं। जो कि बड़कोट की बढ़ी हुई आबादी की पूर्ति करने में सक्षम नहीं है। दरअसल, यमुनोत्री धाम का प्रमुख पड़ाव नगर पालिका बड़कोट क्षेत्र पिछले कई दशकों से पेयजल किल्लत झेल रहा है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों सरकारों के मुख्यमंत्रियों ने यहां यमुना नदी से पंपिंग पेयजल योजना की घोषणा की, लेकिन यह योजना पिछले करीब डेढ़ दशक बाद भी सर्वे और डीपीआर से आगे नहीं बढ़ पा रही है।

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यमुना नदी तट पर तिलाड़ी में पंपिंग योजना के लिए जमीन उपलब्ध होने के बाद भी अभी तक धरातल पर एक इंच कार्य शुरू नहीं हो पाया है। इधर, मौसम की बेरुखी के चलते इस बार शीतकाल में ही पेयजल किल्लत शुरू हो गई है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस बार
ग्रीष्मकाल में भी यह संकट बढ़ सकता है. जिसके चलते स्थानीय लोगों के साथ चारधाम यात्रा पर आने वाले श्रद्धालुओं को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। हालांकि स्थानीय लोग लंबे समय से कछुए की चाल से चल रही पंपिंग पेयजल योजना के निर्माण कार्य में गति लाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन योजना के काम में गति आती नजर नहीं आ रही है। इधर, यमुनोत्री विधायक ब्लॉक प्रमुख प्रतिनिधि अजबीन पंवार का कहना है कि योजना की डीपीआर तैयार कर स्वीकृति के लिए सक्षम टेबल पर पहुंच रखी है।

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जल्द ही दोबारे से मुख्यमंत्री से मुलाकात कर बड़कोट पेयजल समस्या के निस्तारण के लिए योजना का निर्माण जल्द पूरा कराने की मांग की
जाएगी। “बड़कोट पंपिंग योजना को लेकर 67.93 करोड़ रुपए का आंगणन उचित माध्यम से सरकार को भेजा गया है। इस योजना के लिए विश्व बैंक से बजट मिलने की उम्मीद है। स्थानीय स्तर पर भूमि के साथ ही पानी की उपलब्धता और टेस्टिंग की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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