राजीव लोचन साह ने कई आंदोलनों में निभाई हैं सक्रिय भूमिका
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड में नैनीताल की खूबसूरत वादियों के बीच नैनीताल समाचार की शुरुआत हुई। नैनीताल समाचार ने इमरजेंसी के बाद बने मुश्किल हालातों के बीच अपने लिए एक अलग राह चुनी, यह वह राह थी जो पथरीली थी और जिस पर आजकल के समाचार पत्र चलने से कतराते हैं। यह राह थी सच्ची पत्रकारिता की जिसमें पैसा नहीं था पर आत्मसंतुष्टि थी, दुनिया बदलने की। चाटुकारिता पत्रकारिता के बीच नैनीताल समाचार की सच्ची पत्रकारिता आज भी जीवित है नैनीताल के राजीव लोचन साह बचपन से ही लिखने पढ़ने के शौकीन थे, कॉलेज जाते ही उनका यह शौक परवान चढ़ा और उस समय की लोकप्रिय पत्रिका ‘नई कहानियां’ में उनकी दो कहानियां प्रकाशित भी हो गई। वर्ष 1971 में ‘पहल’ के सम्पादक ज्ञानरंजन का नैनीताल आना हुआ तो राजीव की उनके साथ जमकर घुमक्कड़ी हुई , हिंदी को लेकर अपने अंदर उथल-पुथल मचा रहे विभिन्न प्रश्नों के बारे में राजीव ने ज्ञानरंजन से बातचीत करी।
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ज्ञानरंजन द्वारा प्रेस खोल प्रकाशन के क्षेत्र में जाने के सुझाव को दिल से लगा राजीव अपने परिवार से बातचीत करने के बाद ‘प्रेस’ की एबीसीडी सीखने इलाहाबाद चले गए। वहां अपने रिश्तेदार मनोहर लाल जगाती के घर रहते हुए उनका सम्पर्क रामाप्रसाद घिडियाल से हुआ और उनसे राजीव को प्रेस के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिला। इलाहाबाद से वापस आ उन्होंने वर्ष 1973 में राजहंस प्रेस खोला पर जब तक वह जमा तब तक देश में इमरजेंसी का साइरन बज गया और समाचार पत्र शुरू करने में देरी हुई। वर्ष 1977 में इमरजेंसी समाप्त होने के बाद ‘नवनीत’ पत्रिका से प्रभावित राजीव लोचन साह ने अपने साथ नैनीताल के दो युवाओं हरीश पन्त और पवन राकेश को भी जोड़ा और लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को मजबूत करने के लिए वर्ष 1977 के स्वतंत्रता दिवस को ‘नैनीताल समाचार’ की शुरुआत करने के लिए चुना ‘नैनीताल समाचार’ नाम राजीव के द्वारा समाचार पत्र स्वीकृत कराने के लिए भेजे गए नामों में तीसरे नम्बर पर था, राजीव कहते हैं कि वह समाचार पत्र का नाम देवदार रखना चाहते थे।
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नैनीताल समाचार एक पाक्षिक अखबार के रुप में शुरू हुआ जिसको अपनी शुरुआत से ही गांधीवादी चंडी प्रसाद भट्ट और सुंदर लाल बहुगुणा का मार्गदर्शन मिला। दिल्ली से छप रहे अखबारों के उत्तराखंड में देर से पहुंचने की वज़ह से यहां खबरों का सूखा बना रहता था, नैनीताल समाचार के आगमन ने उसे दूर किया और देखते ही देखते अख़बार अपने पहले अंक से ही उत्तराखंडवासियों के बीच लोकप्रिय हो गया। लेखकों, पत्रकारों की बात की जाए तो वर्तमान समय के प्रसिद्ध इतिहासकार पद्मश्री शेखर पाठक के साथ नवीन जोशी, गोविंद पन्त राजू जैसे भविष्य के नामी पत्रकारों के साथ इस अखबार की शुरुआत हुई। उत्तराखंड के लिए हमेशा से ही मुख्य समस्या रहे प्रवास पर इस अख़बार के दूसरे अंक से ही ‘प्रवास की डायरी’ छपी जो अगले सात साल तक जारी रही और तीसरे अंक में तवाघाट दुर्घटना पर एक रपट प्रकाशित हुई जिसमें पत्रकार के नाम की जगह लिखा तो विशेष प्रतिनिधि गया था पर वह ख़बर सुंदर लाल बहुगुणा ने लिखी थी।
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6 अगस्त 1977 को नैनीताल में वनों की नीलामी पर ख़बर करने राजीव अपने मित्र विनोद पांडे के साथ गए थे पर वहां स्थिति ऐसी बनी कि उसको लेकर राजीव लोचन साह कहते हैं कि च्च्मैं वहां गया तो एक पत्रकार के तौर पर था पर जब बाहर आया तो एक आंदोलनकारी बन चुका था।’ उसी साल नवंबर में वनों की नीलामी के विरोध में हुए प्रदर्शनों में गिरीश तिवारी च्गिर्दाज् भी आंदोलनकारी बन गए और नैनीताल समाचार के साथ उनका अटूट सम्बन्ध शुरू हुआ। नैनीताल में पढ़ते हुए पलाश विश्वास और कपिलेश भोज भी नैनीताल समाचार के साथ जुड़ गए। मई 1982 में समाचार पत्र का कार्य पूरा समझकर इसके कर्ताधर्ताओं ने इसे बंद करने की ठानी और इसको लेकर अख़बार में एक छोटा सा सन्देश भी लिख दिया पर उसके बाद पत्रों से पाठकों के इसे बंद न करने की गुज़ारिश पर अख़बार चलता रहा।
वर्ष 1983 में ‘उत्तराखंड की बाढ़, भूस्खलन और तबाही’ शीर्षक से छपा आलेख उत्तराखंड के इतिहास में हुई प्राकृतिक आपदाओं को दिखाता है और उन पर शोध करने का बेहतरीन माध्यम है। इतिहास पर नित्यानन्द मिश्रा की लिखी श्रृंखला पर तो ‘कुर्मांचल गौरव गाथा’ नाम से पुस्तक भी छप गई है। शेखर पाठक बताते हैं कि ‘1974 की अस्कोट – आराकोट यात्रा में उन्हें इम्तिहान की वज़ह से जल्दी वापस लौटना पड़ा था पर जब वह 1984 में इस यात्रा पर वापस गए तो नैनीताल समाचार के बहुत से नए सदस्य बने। उत्तराखंड से उत्तरांचल और फिर उत्तराखंड बनने का पूरा सफ़र हम नैनीताल समाचार में पढ़ सकते हैं, यह यात्रा भी नैनीताल समाचार के साथ ही चलती प्रतीत होती है। प्रदेश में होने वाले हर प्रकार के जनांदोलनों की यह आवाज़ बनते गया। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के बीच हुए मसूरी हत्याकांड पर अख़बार ने ख़बर छापी ‘मसूरी लाशों को बो कर उत्तराखंड के फूल उगाओ’ नया राज्य बनने के बाद भी नैनीताल समाचार ने जन की ख़बरों को छापना नही छोड़ा और अपना पत्रकारिता धर्म निभाते हुए समाचार पत्र जन की आवाज़ बना रहा। अगस्त 2011 में प्रदेश में बन रहे बांधों से पर्यावरण को होने वाले नुक़सान पर ‘बांध के लिए वन कानून आड़े नही आते’ नाम से ख़बर छपी।
नैनीताल समाचार के साथ जुड़ते रहे पर नैनीताल समाचार अपने साथ किसी अन्य की आर्थिक जरूरत कभी पूरी नही कर पाया इसलिए कोई भी इससे लंबे समय तक नही जुड़े रहा। पंडित भैरवदत्त धूलिया द्वितीय पत्रकार पुरस्कार वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन साह को दिया जाएगा।चयन समिति ने सर्वसम्मति से उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार और नैनीताल समाचार के संपादकराजीव लोचन साह के नाम का चयन किया।
राजीव लोचन साह पिछले 47 वर्षों से अपने समाचार पत्र द्वारा उत्तराखंड समाज की सेवा करते आ रहें हैं।? लेखक, के व्यक्तिगत विचार हैं
(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)