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सियासत : हरक सिंह का हौव्वा!

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देहरादून/मुख्यधारा

उत्तराखंड के दिग्गज नेताओं में शुमार कैबिनेट मंत्री डा. हरक सिंह रावत ने 2022 के विधानसभा चुनाव में चार नई सीटों में से किसी एक पर चुनाव लड़ने की बात क्या कही कि वहां तैयारी कर रहे नेताओं के सर्द कड़क ठंड में पसीने छूट गए हैं। यही कारण है कि उन सीटों पर समय रहते उनका विरोध भी शुरू हो गया है। इस पर पलटवार करते हुए हरक सिंह रावत ने कहा है कि वे कोई पाकिस्तानी नहीं हैं। वे भारत के नागरिक होने के साथ ही उत्तराखंड के निवासी हैं। उन्हें बाहरी कहना किसी भी तरह से ठीक नहीं है।

सर्वविदित है कि एक तीर से कई निशाने साधने वाले हरक सिंह का हौव्वा प्रदेशभर में है। संभवत: प्रदेश में वे वर्तमान में ऐसे इकलौते नेता होंगे, जिनका सभी क्षेत्रों में पकड़ है। इससे भी अधिक उनका आत्मविश्वास ऐसा है कि वे नई सीट पर भी विपक्षियों को सोचने पर मजबूर कर देते हैं। उदाहरण के रूप में वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में रुद्रप्रयाग सीट को ही देख लीजिए, यहां से तब भारतीय जनता पार्टी के खांटी नेता और उनके साढू भाई मातबर सिंह कंडारी चुनाव मैदान में थे और हरक सिंह वहां से कांग्र्रेस प्रत्याशी के तौर पर नए थे। हरक सिंह तब कंडारी को करारी पटखनी देकर विधानसभा पहुंचने में सफल रहे थे। वेे नई सीट पर चुनाव लड़कर हारने वाली मिथ्या को ध्वस्त करने में सफल रहे हैं।

हरक सिंह वर्तमान में कोटद्वार से विधायक हैं व सरकार में मंत्री हैं। कोटद्वार में जब वे 2017 के विधानसभा चुनाव लड़े थे तो उनके सामने सुरेंद्र सिंह नेगी जैसे दिग्गज उम्मीदवार थे। यहां चुनाव परिणाम हरक सिंह के पक्ष में आए। इन उदाहरणों को राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि हरक सिंह के लिए कोई भी सीट नई नहीं होती, वे जहां से भी चुनाव मैदान में उतरते हैं, उनका हौव्वा बरकरार रहता है।

पिछले दिनों हरक सिंह तब चर्चा में आए थे, जब वे अचानक कैबिनेट बैठक से उठकर चल दिए थे। तब उन्हें मनाने के लिए पार्टी संगठन ने पूरी ताकत झोंक दी थी। फिर 24 घंटे बाद वे सीएम पुष्कर सिंह धामी की टेबिल में एक साथ रात्रिभोज करते नजर आए। अगले दिन हरक सिंह कोटद्वार मेडिकल कालेज के लिए 25 करोड़ रुपए स्वीकृत कराने में सफल रहे।

उसके बाद ही उनका बयान सामने आया था कि वे कोटद्वार को छोड़ यमकेश्वर, लैंसडौन, डोईवाला व केदारनाथ विधानसभा सीट से चुनाव लडऩे के इच्छुक हैं। तभी से इन सीटों पर चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों को मानो सांप सूंघ गया हो। कुछ दिनों बाद अब लैंसडौन व केदारनाथ सीट से उनके विरोधस्वरूप प्रतिक्रिया सामने आई है। उन्हें बाहरी प्रत्याशी बताया जा रहा है। हरक के केदारनाथ सीट पर आने से शैलारानी रावत का राजनैतिक संकट दिखाई दे रहा है तो लैंसडौन से महंत दिलीप रावत को भी अपने लिए हरक के रूप में सियासी खतरे का आभार हो रहा है। हालांकि यह अलग बात है कि हरक लैंसडौन सीट पर अपनी पुत्रबधु अनुकृति गुसाईं के लिए टिकट मांग रहे हैं।

अब हरक सिंह ने भी अपने ही अंदाज में उनका विरोध कर रहे लोगों को करारा जवाब भी दिया है। हरक ने कहा है कि वे कोई पाकिस्तानी नहीं हैं। वे भारत के नागरिक होने के साथ ही उत्तराखंड के निवासी हैं। उन्हें बाहरी कहना किसी भी तरह से ठीक नहीं है।

बहरहाल, हरक सिंह का इरादा साफ है कि वे इन चारों सीटों में से ही एक जगह से चुनाव मैदान में उतरेंगे। अब वहां से तैयारी कर रहे प्रत्याशियों के पास दो ही विकल्प शेष हैं। पहला ये कि वे हरक सिंह को समर्थन करें और दूसरा यह कि वे समय रहते अपने लिए नए ठौर की तलाश करें। यदि इनका जवाब भी ना में है तो फिर हरक सिंह का हौव्वा तो…!

 

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