सवाल: आजादी के बाद भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के गांव में नहीं पहुंच सकी सड़क - Mukhyadhara

सवाल: आजादी के बाद भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के गांव में नहीं पहुंच सकी सड़क

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सवाल: आजादी के बाद भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के गांव में नहीं पहुंच सकी सड़क

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हरीश चन्द्र अन्डोला

हमारे देश की मिट्टी ने ऐसे असंख्य वीरों को जन्म दिया जिनके लिए हर सुख से बड़ा सुख देश की आजादी थी। इनकी कुर्बानियों की बदौलत ही देश आजाद हुआ। जब भी ऐसे वीरों की चर्चा होती है, उनकी जन्मस्थली के प्रति हमारा सर आदर से झुक जाता है। स्वतंत्रता सेनानी 14 नवंबर 1891 को जन्मे स्व. देवी सिंह कुवार्बी 1917 में ब्रिटिश सेना में भर्ती हो गए। 1921 में सेना छोड़ कर वो अपने घर ताड़ीखेत लौटे और स्वतंत्रता के लिए चल रहे आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाना शुरू कर दिया। 1923 में उन्हें एक साल की कैद और 100 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। 1932 में फिर से एक साल की कठोर सजा और 100 रुपये जुर्माने की सजा मिली।

1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान घर की कुर्की हो गई। देश को आजादी दिलाने के बाद जून 1968 में उनका निधन हो गयादेश में आजादी का अमृतकाल मनाया जा रहा है लेकिन जिन स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को आजाद कराया आज उनके गांवों को विकास की दरकार है। ऐसा ही एक स्वतंत्रता सेनानी का गांव कमेछीना है जहां आजादी के 75 साल बाद भी सड़क नहीं पहुंच सकी है, इससे गांव के सभी लोगों ने
पलायन कर दिया जिसके कारण यह गांव अब वीरान हो चुका है। ताड़ीखेत विकासखंड के स्वतंत्रता सेनानी स्व. देवी सिंह कुवार्बी का गांव देश में विकास के सभी दावों को खोखला साबित कर रहा है।

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आजादी के बाद से अब तक इस गांव को सड़क से जोड़ने की मांग लगातार चली आ रही है। वर्ष 2015 में बमुश्किल गांव को जोड़ने के लिए ताड़ीखेत-मंजूरखान-कमेछीना सड़क को स्वीकृति मिली थी, जो अब तक धरातल पर नहीं उतर सकी है। सड़क न बनने से अब यह गांव पलायन की मार झेलते हुए वीरान हो चुका है। तीन दशक पूर्व तक 80 परिवारों का खुशहाल यह गांव पूरी तरह खाली हो चुका है, जिसकी मुख्य वजह गांव तक सड़क न पहुंचना है। ग्राम प्रधान कई बारआजादी के बाद भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के गांव में सड़क नहीं पहुंचना उनका अपमान है। गांवों में बुनियादी सुविधाएं नहीं और यहां से पलायन रोकने के दावे हो रहे हैं। वहीं ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद लगा था कि उनके गांव के भी अच्छे दिन आएंगे। अब राज्य में सरकार के आने से तो लगा था कि बस अब काम शुरू ही हो जाएगा क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों में सरकार होने से विकास कार्यों में अब कोई बाधा नहीं आएगी, लेकिन हमारे हिस्से तो बस इंतजार ही आया है।

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गांव वालों का कहना है कि पिछले छह साल के अंतराल में राज्य की कमान संभावने वाले हर सीएम को हमने अपनी समस्या से अवगत करवाया लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया अब एक बार फिर सरकार से अच्छे दिनों की आस है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के पौत्र ने बताया कि कई बार सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने के बाद भी कुछ हाथ नहीं लगा। बताया कि मायूस लोगों को गांव से पलायन कर सड़क किनारे और मैदानी क्षेत्रों का रुख करना पड़ा है और पूरा गांव खाली हो गया है। उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं।

( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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