देहरादून। सरकार ने प्रवासी उत्तराखंडियों के आगमन पर उनकी क्वारंटीन व्यवस्था ग्राम प्रधानों के भरोसे छोड़ दी थी, लेकिन उसके लिए बजट जारी नहीं किया गया था। जब हो-हल्ला मचा तो इसके लिए तत्काल राहत के रूप में एक छोटा सा फंड का आदेश जारी कर दिया, लेकिन अब इस पर प्रदेश कांग्रेस सवाल उठा रही है कि 10 हजार रुपए में ग्राम प्रधान क्वारंटीन व्यवस्था को कैसे संपन्न करा सकते हैं? हालांकि सरकार ने शिक्षकों और अन्य स्थानीय सरकारी सेवकों को ग्राम प्रधानों के साथ प्रवासियों को क्वारंटीन करने में सहयोग के लिए उतारने वाला अच्छा निर्णय लिया है।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष धीरेंद्र प्रताप और महामंत्री संगठन विजय सारस्वत ने ग्राम प्रधानों को प्रवासियों की सेवा के लिए मुख्यमंत्री सहायता कोष से जिलाधिकारी द्वारा 10 हजार रुपए उपलब्ध कराए जाने के सरकारी फैसले को ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ बताया है। उन्होंने कहा है कि अगर किसी ग्राम पंचायत में 15 लोगों को भी रुकवाया जा रहा है तो 15 सौ रुपए रोज का कम से कम उनका खर्च होगा और अगर उन्हें 14 दिन वहां पर रहना पड़ेगा तो तकरीबन 21 हजार रुपए का खर्च आएगा। लेकिन जिस तरह से प्रवासियों का लगातार प्रदेश में आगमन हो रहा है, उसे देखकर नहीं लगता कि किसी ग्रामसभा में मात्र १५ प्रवासी ही आएंगे। यानि कि एक ग्रामसभा में काफी संख्या में प्रवासी आ सकते हैं। इस स्थिति में ग्राम प्रधान को मात्र 10 हजार रुपए की सहायता देना ऊंट के मुंह में जीरा जैसा है।
कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री त्रिवेन्द रावत को सलाह दी गई है कि वह कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह की राय के अनुसार प्रधानों को कम से कम दो लाख का रिवाल्विंग फण्ड दिलवाए, जिससे ग्राम प्रधान प्रवासियों की क्वारंटीन व्यवस्था ठीक से कर सकें।
उन्होंने तर्क देते हुए यह भी कहा कि जो छोटे गांव हैं, उनको यह राशि एक लाख हो सकती है। कोरोना को अभी जनता को लंबे समय तक झेलना पड़ सकता है और स्थानीय शासक के रूप में ग्राम प्रधानों को सबकी सेवा व सहयोग करने के लिए यह फंड बिल्कुल पर्याप्त नहीं है। ऐसे में स्थिति का आंकलन करते हुए तत्काल बड़ी ग्रामसभाओं को दो लाख व छोटी ग्रामसभाओं को एक लाख रुपए का बजट जारी किया जाए।
हालांकि उत्तराखंड सरकार ने स्पष्ट किया है कि ग्राम पंचायतों को प्रवासियों के आगमन और उनकी एक क्वारंटीन में होने वाले समस्त खर्च का वहन मुख्यमंत्री राहत कोष से किया जाएगा। अभी तत्काल राहत के रूप में फिलहाल 10 हजार रुपये जिलाधिकारियों के माध्यम से ग्राम पंचायतों को देने का निर्णय लिया गया है। इसके अलावा ग्राम प्रधानों की समस्याओं को देखते हुए उनके साथ सरकारी कर्मचारियों की तैनाती भी कर दी गई है।