अल्मोड़ा। अपनी मांगों को लेकर धरने के चार हजार दिन पूर्ण कर चुके गुरिल्लों ने कहा कि देशहित में प्रदेश सरकार उनकी योग्यता का उपयोग नहीं कर पा रही है। उन्होंने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि कोरोना के कारण शांतिपूर्ण ढंग से धरना दिया जा रहा है, लेकिन जैसी ही स्थितियां सामान्य होंगी, गुरिल्ला आर-पार की लड़ाई करने को तैयार होंगे।
अल्मोड़ा जिला मुख्यालय में गुरिल्लों के धरने को आज 4000 दिन पूरे हो गए हैं। इस मौके पर उन्होंने एक सभा आयोजित की। जिसमें संगठन के केंद्रीय अध्यक्ष ब्रह्मानंद डालाकोटी ने कहा कि देश आज कश्मीर में गृह युद्ध की जैसी स्थिति से जूझ रहा है, चीन सीमाओं पर तनावपूर्ण माहौल है, नेपाल जैसे मित्र देश आंखें दिखा रहा है, बांग्लादेश से बांग्लादेशी पूर्वोत्तर से रोहिंग्या लगातार घुसपैठ कर रहे हैं, पंजाब सीमा से पाकिस्तान अवैध रूप से नशे का सामान भेजकर देश को अव्यवस्थित कर रहा है, ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए सरकार उनकी योग्यता का उपायोग नहीं कर पा रही है।
डालाकोटी ने कहा कि 1962 में भारत चीन युद्ध के बाद सेना को सीमाओं पर जो विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था, उसे देखते हुए तत्कालीन सरकार ने विश्व की अनेक सुरक्षा व्यवस्थाओं के अध्ययन के बाद सीमा पर सुरक्षा को मजबूत करने के लिए एसएसबी का गठन किया था। जिसके अंदर का देश की सीमाओं से लगे सैकड़ों गांवों में रहने वाले युवक-युवतियों को छापामार युद्ध में दक्ष किया गया। उन्हें सीमा पर निगरानी के लिए विशेष खुफिया कार्यों का भी प्रशिक्षण दिया गया था।
उन्होंने बताया कि वर्तमान में 1962 से भी अधिक जटिल परिस्थितियां बन गई हैं। सीमा पर आज और अधिक निगरानी की जरूरत महसूस की जा रही है। ऐसे में सरकार देश की सुरक्षा के नाम पर करोड़ों करोड़ रुपए के हथियार तो खरीद रही है, किंतु मानव जनित इस सस्ती सुरक्षा व्यवस्था की उपेक्षा की जा रही है।
यही नहीं सरकार ने एसएसबी की 9 मई 2011 को भेजी गई सिफारिशों को भी दरकिनार कर दिया है। राज्य सरकारों ने अपने ही शासनादेशों पर अमल नहीं किया, जबकि आंतरिक सुरक्षा में भी गुरिल्ला महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि स्थितियां सामान्य होने के बाद गुरिल्ला पुन: आर पार की लड़ाई को मैदान में उतरेंगे।
धरने देने वालों में ब्रह्मानंद डालाकोटी, आनंदी मेहरा, शांति देवी, सरोजिनी, विजय प्रकाश जोशी, संजय बगड़वाल, प्रेम बल्लभ कांडपाल, बसंत सिंह, किशन सिंह, गोपाल राम, फनी राम, गोपाल सिंह राणा, बसंत लाल आदि मौजूद थे।
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