अतीत के झरोखों से : पत्रकार दिनेश कंडवाल की पिछले एक माह की कुछ खास एक्टिविटीज आप भी जरूर देखिए - Mukhyadhara

अतीत के झरोखों से : पत्रकार दिनेश कंडवाल की पिछले एक माह की कुछ खास एक्टिविटीज आप भी जरूर देखिए

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मामचन्द शाह 

देहरादून। कल रविवार को देहरादून डिस्कवर मासिक पत्रिका के संपादक एवं प्रख्यात घुमक्कड़ पत्रकार ने ओएनजीसी हॉस्पिटल दून में इस दुनिया को अचानक अलविदा कह दिया। पिछले कुछ दिनों से वे अस्पताल में भर्ती थे। उनके इस तरह अचानक चले जाने से उत्तराखंड पत्रकारिता जगत को अपूर्णनीय क्षति हुई है। वह जितने जिंदादिली इंसान थे, उससे भी बेहतरीन उनका मिलनसार स्वभाव था। किसी को भी पांच-दस मिनटों में वह अपना मुरीद बना देते थे। वह अंतिम समय तक उत्तराखंड के हितों की पैरवी करते रहे। 

वे हमेशा कहा करते थे कि मां-बाप के लिए जो कुछ करना हो, उनके जीते जी कर लो। बाद में अपनी कार में कुत्ते-बिल्ली को इलाज के लिए डॉक्टर के पास ले जाओ। मां-बाप का श्राद्ध धूम-धाम से करो, भागवत करो, ये करो, वो करो, क्या फर्क पड़ता है इससे, लेकिन अगर किसी ने अपने मां-बाप के जिंदा रहते उनकी कद्र नहीं की तो इन तमाम चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ता।
मुख्यधारा स्व. दिनेश कंडवाल को श्रद्धांजलिस्वरूप उनके फेसबुक पर मातृ दिवस के अवसर पर 10 मई 2020 को अपनी मां की पुण्यतिथि पर लिखा गया हूबहू उन्हीं के शब्दों को बयां किया जा रहा है। इसके अलावा लॉकडाउन अवधि में पिछले एक माह की उनकी खास गतिविधियों को भी आपसे रूबरू करवाने का प्रयास किया जा रहा है। आइए पढि़ए अतीत के झरोखों से :-

#विश्व_मातृ_दिवस:
#आज_तू_बहुत_याद_आई_माँ ….
#यादें_शेष..
कहते हैं …आप सब ऋणों से मुक्त हो सकते हैं …पर माँ के हमेशा ही ऋणी रहोगे ..माँ की ममता को शब्दों में बांधना नामुमकिन है ..हर एक माँ में भगवान् की छवि होती है …कहते हैं… भगवान् हर किसी के पास नहीं जा पाते इसलिए माँ को भेजते हैं …..
25 फ़रवरी -2006 को उस दिन शनिवार ही था …जब माँ इस दुनिया को छोड़कर चली गई आज 14 साल हो गये …तब मै त्रिपुरा में था और सुबह चार बजे मुझे लगा की घर में कुछ हो गया …दिल घबरा रहा था …तभी मेरे बेटे का फोन आया ..पापा दादी गई …मै सात फ़रवरी को देहरादून में माँ से मिलकर अगरतला आ गया था ..मां थोड़ी बहुत बीमार थी ..और मेरे बड़े भाई के साथ ही थी..और मेरा परिवार भी साथ ही था ..तो मै निश्चिंत था ..पर माँ को तो जाने की जल्दी थी ..कुछ दिन और रूकती तो क्या बिगड़ जाता ..हमेशा कहती सबने देहरादून में घर बना लिया ..तू कब बनाएगा…काश वो ये देखने के लिए जिन्दा रहती …मुझे अच्छा लगता ..खैर ..अब अपने घर के ड्राइंग रूम में माँ-बाप की फोटो फ्रेम में लगा कर…श्वेत-श्याम चित्र को कलर कलाकार हम शेखी बघारते हैं …मेरा मानना है ..जो कुछ करना हो उनके जिन्दे जी कर लो …बाद में अपनी कार में कुत्ते/बिल्ली को इलाज के लिए डॉक्टर पर ले जाओ ..माँ-बाप का श्राद्ध धूम-धाम से करो ..भागवत करो…ये करो ..सो करो …क्या फर्क पड़ता है …!!!

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#Mukhyadhara की ओर से स्व. पत्रकार दिनेश कंडवाल को नमन्।

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