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कर्मठ व्यक्तित्व ओजस्वी वक्ता के धनी जननायक कर्पुरी ठाकुर (Karpuri Thakur)

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कर्मठ व्यक्तित्व ओजस्वी वक्ता के धनी जननायक कर्पुरी ठाकुर (Karpuri Thakur)

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

बिहार के पूर्व सीएम व बड़े समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न देने की घोषणा की गयी है। केंद्र सरकार ने जेपी आंदोलन के अग्रणी नेता कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान किया है। केंद्र सरकार के इस फैसले को बिहार के साथ-साथ पूरे देश के लिए बड़ा माना जा रहा है। दरअसल 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर की जन्म शताब्दी समारोह मनाई जाने वाली है।ऐसे में ठीक एक दिन पहले उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा से बिहार के लोगों में खुशी की लहर है। समाजवादी नेता और जननायक के नाम से मशहूर पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर जिले के पितौझिया गांव में हुआ था। इनके पिता गोकुल ठाकुर गांव के सीमांत किसान थे और अपने पारंपरिक पेशा, नाई का काम करते थे।

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भारत छोड़ो आंदोलन के समय कर्पूरी ठाकुर ने करीब ढाई साल जेल में बिताया। जननायक कर्पूरी ठाकुर 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 और 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 के दौरान दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे। बता दें, बिहार के तमाम बड़े नेता जैसे नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, राम विलास पासवान, सुशील कुमार मोदी कर्पूरी ठाकुर के आदर्शों की बात करके ही राजनीति में आगे बढ़े हैं।सत्तर के दशक में पटना में विधायकों और पूर्व विधायकों के निजी आवास के लिए सरकार सस्ती दर पर जमीन दे रही थी। खुद कर्पूरी ठाकुर के दल के कुछ विधायकों ने कर्पूरी ठाकुर से कहा कि आप भी अपने आवास के लिए जमीन ले लीजिए. कर्पूरी ठाकुर ने साफ मना कर दिया। तब के एक विधायक ने उनसे यह भी कहा था कि जमीन ले लीजिए। अन्यथा आप नहीं रहिएगा तो आपका बाल-बच्चा कहां रहेगा? कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि अपने गांव में रहेगा। आरंभ से ही बाल-बच्चों की आर्थिक बेहतरी की चिंता करने वाले तब के उस नेता को बाद के वर्षों में जायज आय से अत्यधिक धनोपार्जन के कारण कानूनी परेशानियां और बदनामी झेलनी पड़ीं।

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भारत सरकार ने बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर को उनकी जन्‍मशताब्दी के एक दिन पहले भारत रत्‍न देने की घोषणा की है। राजनीति का मूल आधार कैश, कास्ट और क्रिमिनल रहा है। ऐसी धरती पर कर्पूरी ठाकुर की राजनीति ताउम्र अपने विशेष गुणों के कारण ही चलती रही।
वर्ष 1952 से लगातार विधायक पद पर जीतते रहे, केवल 1984 का लोकसभा चुनाव हारे। एक बार उप मुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक तथा विरोधी दल के नेता रहे। वर्तमान राज्यसभा उपाध्यक्ष हरिवंश कहते हैं, कर्पूरी ने अपने लिए कुछ नहीं किया। घर तक नहीं बनाया। एक बार उनका घर बनवाने के लिए 50 हजार ईंट भेजी गई, लेकिन उन्होंने घर न बनाकर उस ईंट से स्कूल बनवा दिया। यही खासियत कर्पूरी जी को कास्ट और क्रिमिनल वाले राज्य में एक वर्ग का पुरोधा बना कर रखा। अपने पत्रकारीय जीवन को याद करते हुए हरिवंश लिखते हैं कि राज्य में जहां कहीं भी बड़ी घटना हो, वहां सबसे पहले पहुंचने वाले नेताओं में वे शामिल थे। यही कारण रहा कि वे जीते जी जननायक की उपाधि पा गए। कर्पूरीग्राम के कण- कण में उनकी यादें बसी हैं।

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स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षक के रूप में सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करने वाले जननायक का जन्म समस्तीपुर के पितौंझिया में 24 जनवरी, 1924 को हुआ था। अब यह गांव कर्पूरीग्राम के नाम से चर्चित है। महज 14 साल की उम्र में अपने गांव में नवयुवक संघ की स्थापना की। गांव में होम विलेज लाइब्रेरी के लाइब्रेरियन बने। 1942 में पटना विश्वविद्यालय पहुंचने के बाद वे स्वतंत्रता आंदोलन और बाद में समाजवादी पार्टी तथा आंदोलन के प्रमुख नेता बने। समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों को सशक्त बनाने के लिए जननायक कर्पूरी ठाकुर जी ने एक ठोस कार्य योजना बनाई थी। यह सही तरीके से आगे बढ़े, इसके लिए पूरा एक तंत्र तैयार किया था। यह उनके सबसे प्रमुख योगदानों में से एक है। उन्हें उम्मीद थी कि एक ना एक दिन इन वर्गों को भी वो प्रतिनिधित्व और अवसर जरूर दिए जाएंगे, जिनके वे हकदार थे।

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हालांकि उनके इस कदम का काफी विरोध हुआ, लेकिन वे किसी भी दबाव के आगे झुके नहीं। उनके नेतृत्व में ऐसी नीतियों को लागू किया गया, जिनसे एक ऐसे समावेशी समाज की मजबूत नींव पड़ी, जहां किसी के जन्म से उसके भाग्य का निर्धारण नहीं होता हो। वे समाज के सबसे पिछड़े वर्ग से थे, लेकिन काम उन्होंने सभी वर्गों के लिए किया। उनमें किसी के प्रति रत्तीभर भी कड़वाहट नहीं थी और यही तो उन्हें महानता की श्रेणी में ले आता है। हमारी सरकार निरंतर जननायक कर्पूरी ठाकुर जी से प्रेरणा लेते हुए काम कर रही है। यह हमारी नीतियों और योजनाओं में भी दिखाई देता है, जिससे देशभर में सकारात्मक बदलाव आया है। भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी त्रासदी यह रही थी कि कर्पूरी जैसे कुछ नेताओं को छोड़कर सामाजिक न्याय की बात बस एक राजनीतिक नारा बनकर रह गई थी।

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कर्पूरी के विजन से प्रेरित होकर हमने इसे एक प्रभावी गवर्नेंस मॉडल के रूप में लागू किया। मैं विश्वास और गर्व के साथ कह सकता हूं कि भारत के 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की उपलब्धि पर आज जननायक कर्पूरी जी जरूर गौरवान्वित होते। गरीबी से बाहर निकलने वालों में समाज के सबसे पिछड़े तबके के लोग सबसे ज्यादा हैं, जो आजादी के 70 साल बाद भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित थे। हम आज सैचुरेशन के लिए प्रयास कर रहे हैं, ताकि प्रत्येक योजना का लाभ, शत प्रतिशत लाभार्थियों को मिले।इस दिशा में हमारे प्रयास सामाजिक न्याय के प्रति सरकार के संकल्प को दिखाते हैं। आज जब मुद्रा लोन से समुदाय के लोग उद्यमी बन रहे हैं, तो यह कर्पूरी ठाकुर जी के आर्थिक स्वतंत्रता के सपनों को पूरा कर रहा है। इसी तरह यह हमारी सरकार है, हमें ओबीसी आयोग की स्थापना करने का भी अवसर प्राप्त हुआ, जो कि कर्पूरी जी के दिखाए रास्ते पर काम कर रहा है। कुछ समय पहले शुरू की गई पीएम-विश्वकर्मा योजना भी देश में ओबीसी समुदाय के करोड़ों लोगों के लिए समृद्धि के नए रास्ते बनाएगी।

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पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखने वाले एक व्यक्ति के रूप में मुझे जननायक कर्पूरी ठाकुर  के जीवन से बहुत कुछ सीखने को मिला है। मेरे जैसे अनेकों लोगों के जीवन में कर्पूरी बाबू का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष योगदान रहा है। इसके लिए मैं उनका सदैव आभारी रहूंगा। दुर्भाग्यवश, हमने कर्पूरी ठाकुर जी को 64 वर्ष की आयु में ही खो दिया। हमने उन्हें तब खोया, जब देश को उनकी सबसे अधिक जरूरत थी। आज भले ही वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जन-कल्याण के अपने कार्यों की वजह से करोड़ों देशवासियों के दिल और दिमाग में जीवित हैं। वे एक सच्चे जननायक थे। समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों को सशक्त बनाने के लिए जननायक कर्पूरी ठाकुर ने एक ठोस कार्ययोजना बनाई थी। यह सही तरीके से आगे बढ़े, इसके लिए पूरा एक तंत्र तैयार किया था। यह उनके सबसे प्रमुख योगदानों में से एक है। उन्हें उम्मीद थी कि एक ना एक दिन इन वर्गों को भी वो प्रतिनिधित्व और अवसर जरूर दिए जाएंगे, जिनके वे हकदार थे।

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हालांकि उनके इस कदम का काफी विरोध हुआ, लेकिन वे किसी भी दबाव के आगे झुके नहीं। उनके नेतृत्व में ऐसी नीतियों को लागू किया गया, जिनसे एक ऐसे समावेशी समाज की मजबूत नींव पड़ी, जहां किसी के जन्म से उसके भाग्य का निर्धारण नहीं होता हो। वे समाज के सबसे पिछड़े वर्ग से थे, लेकिन काम उन्होंने सभी वर्गों के लिए किया। उनमें किसी के प्रति रत्तीभर भी कड़वाहट नहीं थी और यही तो उन्हें महानता
की श्रेणी में ले आता है।हमारी सरकार निरंतर जननायक कर्पूरी ठाकुर जी से प्रेरणा लेते हुए काम कर रही है। यह हमारी नीतियों और योजनाओं में भी दिखाई देता है, जिससे देशभर में सकारात्मक बदलाव आया है। भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी त्रासदी यह रही थी कि कर्पूरी जैसे कुछ नेताओं को छोड़कर सामाजिक न्याय की बात बस एक राजनीतिक नारा बनकर रह गई थी। कर्पूरी जी के विजन से प्रेरित होकर हमने इसे एक प्रभावी गवर्नेंस मॉडल के रूप में लागू किया। मैं विश्वास और गर्व के साथ कह सकता हूं कि भारत के 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकालने की उपलब्धि पर आज जननायक कर्पूरी जी जरूर गौरवान्वित होते।

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गरीबी से बाहर निकलने वालों में समाज के सबसे पिछड़े तबके के लोग सबसे ज्यादा हैं, जो आजादी के70 साल बाद भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित थे। हम आज सैचुरेशन के लिए प्रयास कर रहे हैं, ताकि प्रत्येक योजना का लाभ, शत प्रतिशत लाभार्थियों को मिले। इस दिशा में हमारे प्रयास सामाजिक न्याय के प्रति सरकार के संकल्प को दिखाते हैं। आज जब मुद्रा लोन से ओबीसी, एससी और एसटी समुदाय के लोग उद्यमी बन रहे हैं, तो यह कर्पूरी ठाकुर के आर्थिक स्वतंत्रता के सपनों को पूरा कर रहा है। इसी तरह यह हमारी सरकार है, जिसने एससी, एसटी और ओबीसी रिजर्वेशन का दायरा बढ़ाया है। हमें ओबीसी आयोग की स्थापना करने का भी अवसर प्राप्त हुआ, जो कि कर्पूरी जी के दिखाए रास्ते पर काम कर रहा है। कुछ समय पहले शुरू की गई पीएम- विश्वकर्मा योजना भी देश में ओबीसी समुदाय के करोड़ों लोगों के लिए समृद्धि के नए रास्ते बनाएगी।

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पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखने वाले एक व्यक्ति के रूप में मुझे जननायक कर्पूरी ठाकुर के जीवन से बहुत कुछ सीखने को मिला है। जैसे अनेक लोगों के जीवन में कर्पूरी बाबू का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष योगदान रहा है।दुर्भाग्यवश, हमने कर्पूरी ठाकुर जी को 64 वर्ष की आयु में ही खो दिया। हमने उन्हें तब खोया, जब देश को उनकी सबसे अधिक जरूरत थी। आज भले ही वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जन-कल्याण के अपने कार्यों की वजह से करोड़ों देशवासियों के दिल और दिमाग में जीवित हैं। वे एक सच्चे जननायक थे। बड़े-बड़े लोग अपने परिवारजनों को राजनीति में स्थापित करने के लिए अपने जीवनकाल में ही जोड़तोड़ और सारे इंतजाम कर देते हैं। यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि कर्पूरी ठाकुर अपने अनमोल जीवन और परिजनों को उपकृत और लाभ पहुंचाने की अपेक्षा अपने सिद्धांतों, आदर्शों एवं मूल्यों को प्रश्रय देते थे।

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परिवारवाद और वंशवाद को जनतंत्र के लिए घातक मानते थे। जन नायक ने अपने कार्यकाल में अलाभकारी जोत से मालगुजारी समाप्त की। मैट्रिक की परीक्षा में अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म करना, हाईस्कूल तक की पढ़ाई के लिए सभी बच्चों की फीस माफी, सामाजिक और आर्थिक आधार पर बिहार सरकार की सेवा में आरक्षण देना, नदियों की घाटों पर लगने वाले सेवा कर को समाप्त करना, प्राथमिक विद्यालयों में सभी बच्चों को किताब, कॉपी, पैंसिल देना सहित कई असाधारण काम कर्पूरी ने किए थे। जननायक कर्पूरी ठाकुर के जन्मशताब्दी वर्ष (24 जनवरी, 1924) पर उन्हें स्मरण करना कोई कैसे भूल सकता है? आडंबरविहीन और सादगीपूर्ण उनकी जीवनशैली अनुकरणीय थी। उनकी निष्पक्षता, निष्कपटता, उदारता और सदाशयता की विनम्र छवि लोगों को आकर्षित करती थी। सद्व्यवहार एवं सदाचार उनके विरज व्यक्तित्व में दुग्ध-सर्करा की भांति मिलीजुली और घुली थी। मानवोचित गुणों से परिपूर्ण ठेठ ग्रामीण पहचान उन्हें आडंबर विहीन बना देता था। जननायक कर्पूरी ठाकुर को अब केंद्र सरकार ने मरणोपरांत भारत रत्न सम्मान देने की घोषणा की है।

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