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‘मन भरमैगे मेरी सुध-बुध ख्वे गे’ को दिए थे लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) ने स्वर, नहीं ली थी फीस

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‘मन भरमैगे मेरी सुध-बुध ख्वे गे’ को दिए थे लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) ने स्वर, नहीं ली थी फीस

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

ए मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी स्वर कोकिला लता मंगेशकर को पहाड़ों से खास लगाव रहा है। उनके गानों को नैनीताल में फिल्माया गया। लेकिन, जो खास रही, वो यह थी कि लता मंगेशकर ने गढ़वाली फिल्म रैबार के लिए मन भरमैगी मेरु गाने को अपनी आवाज दी थी। लता दीदी ने जिन ३० से ज्यादा भाषाओं में गाने गए, उनमें एक भाषा गढ़वाली भी थी। उनका गाया गाना आज भी मन को आनंदित कर देता है। मंत्रमुग्ध कर देता है। 1990 में गढ़वाली फिल्म रैबार रिलीज हुई थी। फिल्म में आज की सबसे बड़ी समस्या पलायन का संदेश किया गया था। इसकी खास बात यह थी कि इस में लता मंगेशकर ने भी एक गाना गया था। वह गाना आज भी लोगों के दिलों पर राज कर रहा है। उस गोने का लता दीदी ने हमेशा के अमर कर दिया। उस गाने के लिए उन्होंने एक रुपया भी नहीं लिया था। बिल्क गाने के जरिए जो उनको पैसा दिया जाना था, वह उन्होंने गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए दान करने के लिए कहा था।

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इस गीत की रिकार्डिंग लता मंगेशकर द्वारा 4 अक्टूबर 1988 को मुंबई में की गई थी। रिकार्डिंग खत्म होने के बाद जब लता मंगेशकर को निर्माता किशन पटेल ने एक चैक दिया तो उन्होंने इसे ख़ुद न लेकर बच्चों की एक संस्था को डोनेट करवा दिया। संगीतकार कुंवर बावला ने बताया कि फीस कितनी थी, इस बारे में तो हमें जानकारी नहीं है, लेकिन लता दी ने चैक ख़ुद न लेकर एक संस्था को डोनेट कर दिया था। लता मंगेशकर की आवाज में गाये गये इस गीत के बोल देवी प्रसाद सेमवाल ने लिखे और कुंवर सिंह रावत यानी कुंवर बावला ने इसे संगीत दिया था । लता मंगेशकर की आवाज में रिकार्ड यह एकमात्र गढ़वाली गीत है। उसके बाद इसी गीता को फिर से निर्माता निर्देशक अनुज जोशी ने फिर से फिल्माया था।

लता की रूहानी आवाज में पहाड़ों का जिक्र भी बिल्कुल जीवंत सा लगता है। उनके मुंह से सुर निकलते ही जैसे प्रकृति और अधिक सुंदर हो जाती है, जैसे पेड़ और अधिक विशाल हो जाते हैं नदियों में अचानक ही पानी बढ़ जाता है और पेड़ हवाओं के संग झूमने लगते हैं। उनके गीतों में पहाड़ों का और प्रकृति का जिक्र इतनी खूबसूरती से होता है कि व्यक्ति का प्रफुल्लित हो जाता है। जी हां, चाहे वह पहाड़ हों, नदी हो, बांह
फैलाते हुए देवदार हों, घाटियां हों, उनके गीत, उनकी आवाज इन सभी में चार चांद लगा देती थीं। क्या आपको याद है फिल्म राम तेरी गंगा मैली का वह गीत जिसमें वह गाती हैं … हुस्न पहाड़ों का, ओ साहिबा/ हुस्न पहाड़ों का/ क्या कहना की बारों महीने/ यहां मौसम जाड़े का/ क्या कहना की बारों महीने/ यहां मौसम जाड़े का।

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लता का पहला सुपरहिट सदाबहार गीत” हवा में उड़ता जाए मोरा लाल दुपट्टा मलमल का “। इसी गीत से उनको नई पहचान मिली और उनके करियर ने नई उड़ान भरी। लता जी ने पहाड़ पर फिल्माए गए और भी कई गाने गाए हैं। लता की आवाज में प्रेम पर्बत का गीत “ये दिल और उनकी निगाहों के साये….पहाड़ों को चंचल किरन चूमती है….हवा हर नदी का बदन चूमती है।” शहद में घुला सा लगता है। मधुमती का गीत”
आजा रे परदेसी….मैं तो कबसे खड़ी इस पार कि अंखियां थक गईं पंथ निहार” भी पहाड़ पर फिल्माया गया है। नूरी में कश्मीर और कुदरत में हिमाचल की खूबसूरत वादियों को दिखाता था। लता जी ने इन गीतों को बखूबी गाया। इन गीतों में उनकी मीठी आवाज अब भी कानों में गूंजती रहती है। श्रोताओं पर जैसे कोई जादू सा छा जाता।

क्या आप जानते हैं कि गढ़वाली फिल्म रैबार में भी एक गीत गाकर लता जी ने पहाड़ को आशीष दिया था। पहाड़ों के अलावा उन्होंने गंगा की महत्ता को भी अपनी आवाज से अमर कर दिया था। लता मंगेशकर ने गंगा पर लिखे गीतों को गाकर भारतीय संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय पहचान दी। लता भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं मगर उनके गीत हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे। स्वर कोकिला लता मंगेशकर की आज पुण्यतिथि है। अब लता मंगेशकर हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी गीते हमारे कानों में आज भी गुजरती है लोग आज भी लता मंगेशकर की गाने पसंद करते हैं और बड़ी ही आनंद के साथ सुनते हैं, अगर हम बात करें लता मंगेशकर की आखिरी गाने की तो आप लोगों को बता दे की लता मंगेशकर की आखिरी गीत “सौगंध मुझे इस मिट्टी की” है। इस गाना को आज पूरा देश याद कर रहा है क्योंकि आज ही के दिन लता मंगेशकर ने इस दुनिया को छोड़ा था।

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6 फरवरी 2022 को आज के ही दिन लता मंगेशकर पूरी दुनिया के संगीत प्रेमियों को छोड़कर चली गईं। लेकिन, उनके गाए गीत सदियों तक गुनगुनाए जायेंगे। लता मंगेशकर ने अपने करियर में छोटे बड़े से लेकर हर संगीतकार के लिए गीत गाए। वह सबको समान सम्मान देती थीं और नए संगीतकारों की बातें व उनके सुझावों को गौर से सुनती थीं। संगीतकार जोड़ी कल्याण -आनंद उन प्रमुख  संगीतकारों में से एक हैं, जिन्होंने अपने करियर के अधिकतर समय लता मंगेशकर के साथ काम किया। कल्याण आनंद जोड़ी के संगीतकार आनंद जी भाई कहते हैं, “मुझे याद है हमें फिल्म कोरा कागज” के लिए एक गाना रिकॉर्ड करना था।

लता अस्वस्थ थीं, उन्हें तेज बुखार था और फिल्म कोरा कागज  की शूटिंग चल रही थी। इस फिल्म के लिए गाने की जरूरत थी। हमने लता जी से मदद करने का अनुरोध किया। वह आई और एक घंटे के अंदर ‘रूठे रूठे पिया’ गा कर चली गई। इस गाने के लिए लता जी को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था।’ संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और दिवंगत गायिका लता मंगेशकर ने एक साथ 700 से अधिक गानों पर काम करके इतिहास रच दिया। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी के प्यारेलाल ने हाल ही हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान लता मंगेशकर को सरस्वती का अवतार बताया। प्यारेलाल कहते हैं, ‘लता मेरे जीवन के हर महत्वपूर्ण क्षण का हिस्सा थीं। वह मेरे लिए मां की तरह थीं। लता जी ने हमेशा हमारा साथ दिया। हमने एक साथ 712 गाने रिकॉर्ड करके इतिहास रचा। वह खुशमिजाज और मौज-मस्ती करने वाली थी, लेकिन कभी-कभी हमें डांट भी देती थी। वो हमारे लिए सरस्वती मां हैं।

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महज 14 साल की उम्र में लता दीदी ने बड़े कार्यक्रमों और नाटकों में अभिनय करना शुरू कर दिया था। इसके बाद उन्होंने फिल्मों में गाने गाना शुरू किए। अपने करियर में लता जी ने केवल हिंदी भाषा में 1,000 से ज्यादा गानों को अपनी आवाज दी है।30 से ज्यादा भाषाओं में गाने का रिकार्ड भी लता दीदी के नाम है। उनके गानों की गूंज भारत समेत विदेशों तक थी। उनका गोल्डन पीरियड 1950 से शुरू हुआ और 1980 तक जारी रहा। इसके बाद उन्होंने चुनिंदा गानों को ही अपनी आवाज दी। 1974 में द गिनीज बुक ऑफ रिकार्ड्स में लता के नाम सबसे अधिक 25 हजार गाने लिखने का रिकार्ड दर्ज है। लता मंगेशकर ने आखिरी बार आमिर खान की च्फिल्म रंग दे बसंतीज् को अपनी आवाज दी थी। उन्होंने फिल्म का क्लासिक गाना “लुका छुपी” गाया था। इस गाने में मां-बेटे के रिश्ते को नई परिभाषा दी थी। यह गाना साल 2006 में रिलीज हुआ था। 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिये एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस में तत्कालीन प्रधानमंत्री भी उपस्थित थे। इस समारोह में लता जी के द्वारा गाए गये गीत “ऐ मेरे वतन के लोगों” को सुन कर सब लोग भाव-विभोर हो गये थे। पं नेहरू की आँखें भी भर आईं थीं। ऐसा था आपका भावपूर्ण एवं मर्मस्पर्शी स्वर।

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आज भी जब देश-भक्ति के गीतों की बात चलती है तो सब से पहले इसी गीत का उदाहरण दिया जाता है। सुरों की कोकिला लता मंगेशकर आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन संगीत के क्षेत्र में उनका योगदान सदियों तक याद किया जाएगा। लता मंगेशकर ने अपने करियर में एक ऐसा मुकाम हासिल किया, जिसे दोहरा पाना शायद किसी भी गायक- गायिका के लिए बहुत मुश्किल हो। लता मंगेशकर ने अपने करियर में 36 भाषाओं में 50 हजार से अधिक गानों को अपनी आवाज दी। साल 1989 में लता को पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया। लता को साल 2001 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

साल 2007 में उन्हे फ्रांस सरकार ने अपने सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार (ऑफिसर ऑफ द लीजन ऑफ ऑनर) से सम्मानित किया। इसके अलावा भारत सरकार ने सितंबर 2019 में उनके 90वें जन्मदिन के मौके पर “डॉटर ऑफ द नेशन” अवार्ड से सम्मानित किया। इसके अलावा भी उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया हैं। आज लता की पुण्यतिथि के मौके पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा हैं। आज लता मंगेशकर की दूसरी पुण्यतिथि है।

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( लेखक, के व्यक्तिगत विचार हैं लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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