पहाड़ों पर लेट बर्फबारी (Late Snowfall) हो सकती है घातक - Mukhyadhara

पहाड़ों पर लेट बर्फबारी (Late Snowfall) हो सकती है घातक

admin
b 1 1

पहाड़ों पर लेट बर्फबारी (Late Snowfall) हो सकती है घातक

harish 

  डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

राज्य में पिछले लंबे समय से अच्छी बारिश और बर्फबारी नहीं हुई थी कभी दिसंबर और जनवरी के महीने में ही बर्फ की सफेद चादर से ढक जाने वाला हिमालय के इलाके इस बार जनवरी अंत तक सूखे पड़े दिखाई दिए। इस बार दिसंबर और जनवरी के दौरान सैलानियों को काले पहाड़ दिखाई दिए। यही नहीं पहाड़ों पर रहने वाले लोग सूखी ठंड से परेशान और हैरान हैं। वसंत में खिलने वाला बुरांश का फूल अगर शरद ऋतु में खिल रहा है, तो यह चिंता की बात है। पर्यावरणविद पहाड़ों की यह हालत देख परेशान हैं।वे इसे क्लाइमेट चेंज का साफ संकेत बता रहे हैं। माना जा रहा है कि बर्फबारी न होने के घातक नतीजे हो सकते हैं। इसको मौसम में हुए में हुए बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। इसका असर हिमालय में मिलने वाली तितलियों पर भी पड़ता दिख रहा है।

यह भी पढें : मुख्य सचिव राधा रतूड़ी (Radha Raturi) ने व्यय वित्त समिति (ईएफसी) की बैठक में सम्बन्धित अधिकारियों को सभी प्रोजेक्ट्स के निर्माण के दौरान इंटिग्रेटेड प्लान के साथ कार्य करने के दिये निर्देश

हिमालय के वातावरण में सूखापन ज़्यादा होने और नमी कम होने से प्यूपा स्टेज में ही तितलियां दम तोड़ रही हैं। लार्वा स्टेज तक बचने के बाद जैसे ही तितली प्यूपा स्टेज में आती है, तो उसको नमी की ज़रूरत होती है जो हिमालय में क्लाइमेट चेंज की वजह से कम हो रही है। इस वजह से तितलियां प्यूपा स्टेज पार ही नहीं कर पातीं। प्यूपा बनने के बाद वह एक जगह पर ही स्थिर रहता है। नमी की कमी से प्यूपा इसी स्टेज में सूखने लगता है। आगे की स्टेज में पहुंचने से पहले ही मर जाता है। इसलिए तितलियों की कई प्रजातियां खतरे में हैं। यहां पाई जाने वाली तितलियों की प्रजातियां 50 फीसदी तक घटती दिख रही हैं। क्लाइमेट चेंज की वजह से उत्तराखंड में कड़ाके की ठंड के बावजूद इस साल जंगलों में आग लगने की घटनाएं बीते बरसों के मुकाबले ज़्यादा देखी गई हैं।

यह भी पढें : दो करोड़ की लागत से बनेगा इंटर कॉलेज रतगांव (Inter College Ratgaon) का भवन

सर्दियों में बर्फ से ढकी रहने वाली हिमालय की हसीन वादियों, जिनमें उत्तराखंड और हिमाचल से लेकर जम्मू-कश्मीर की वादियां भी शामिल हैं, से मुख्य सीज़न के दौरान बर्फ नदारद दिखाई दी। कई जगह पर इन दिनों आग की लपटें और धुआं दिखाई दे रहा हैभारतीय वन सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि उत्तराखंड में 9 से 16 जनवरी के बीच 600 से ज़्यादा जंगल की आग का अलर्ट जारी होने से यह जंगलों में आग के मामले में पहले नंबर पर आ गया है। हिमाचल प्रदेश में इस दौरान 400 से अधिक फायर अलर्ट आए जो दूसरे नंबर पर है। तकरीबन 250 अलर्ट के साथ जम्मू-कश्मीर तीसरे नंबर पर है। अरुणाचल प्रदेश में भी 200 के आसपास अलर्ट जारी किए गए हैं। इस तरह बीते दिनों में देश में जंगल की आग की बड़ी घटनाओं में टॉप के पांच राज्यों में हिमाचल पहले नंबर पर है। हिमाचल में पिछले बीते हफ्तों में 36 बड़ी आग की घटनाएं देखने को मिली हैं।

यह भी पढें :एसजीआरआर विश्वविद्यालय में शांति भंग, बलवा, मानहानि, रंगदानी मांगने पर मुकदमा दर्ज

मॉनसून के बाद बारिश न होने से जंगल में सूखी पत्तियों का ढेर जमा है, जिससे आग भड़क जाती है। कई जगहों पर वन विभाग भी इस समय कंट्रोल बर्निंग कर रहा है। मॉनसून के बाद बारिश और बर्फबारी न होने का असर खेती और बागवानी पर भी दिखाई दे रहा है। सर्दियों में लगाए जाने वाले फलदार पौधों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा। सेब, आड़ू, आलूबुखारा, खुबानी और कीवी समेत सभी फसलें प्रभावित हो
रही हैं। पिछले फलों के सीज़न में नैनीताल जिले के रामगढ़-धारी-मुक्तेश्वर में सेब की बंपर फसल के बावजूद सेब का आकार छोटा रह गया था। इस वजह से सेब मार्केट में अच्छे दाम नहीं पा सके। हालत यह हो गई थी कि हल्द्वानी मंडी में ‘B’ और ‘C’ ग्रेड के सेब के खरीददार ही नहीं मिले। इसलिए सेब बहुत कम कीमत पर बिके और बाग मालिकों को नुकसान झेलना पड़ा। उत्तराखंड के चमोली जिले के औली का नवंबर के मध्य से मार्च के मध्य तक तापमान गिरते रहने की वजह से बड़ा नाम रहता है।

यह भी पढें : कल्पना चावला (Kalpana Chawla) की उपलब्धियों से महज महिलाओं को प्रेरणा ही नहीं,बल्कि भारत के लिए गौरव

जिले का अधिकांश भाग नॉर्थ में होने से यह सालभर बर्फ से ढका रहता था। यह खासीयत है, जिससे औली स्कीइंग प्रेमियों के लिए आदर्श जगह है। विंटर स्पोर्ट्स के लिए मशहूर उत्तराखंड में चमोली जिले के औली में साल के इस वक्त तापमान अमूमन 1 से 3 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। लेकिन इस साल तापमान 8 डिग्री सेल्सियस के आसपास है। इस बदलाव ने उत्तराखंड के स्कीइंग स्थल पर स्नो स्कीयर्स की उम्मीदें भी धूमिल कर दी हैं। औली में 17 जनवरी 2024 को इस साल पहली बर्फबारी महज 1cm हुई। वह भी एक ही दिन में पिघलगई। कम बर्फबारी का नुकसान औली के स्कीइंग स्थल को भी हो रहा है। औली 2024 में शीतकालीन नैशनल गेम्स की मेज़बानी कर भी सकेगा या नहीं, इस पर सवालिया निशान लग गया है। स्कीइंग जलवायु संकट से सबसे पहले और सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाला खेल है।

यह भी पढें : विनाश को विकास (Development) मान हम खुशफहमियों के भ्रमजाल में आज भी प्रासंगिक

जनवरी बीत चुकी है और अब तक 2024 के विंटर नैशनल गेम्स का कार्यक्रम भी जारी नहीं हुआ है। उधर, बर्फबारी न होने से टूरिज़म इंडस्ट्री पर भी इसका खासा असर पड़ा। विंटर टूरिज़म कारोबार 20% के आसपास भी नहीं पहुंच पाया। एक तरह से पूरा विंटर टूरिज़म ठप हो गया। जलते जंगल से लेकर पीने के पानी का संकट तक पहाड़ मौसमी चुनौतियों से घिरे हैं। पिछली सदी में ग्लोबल तापमान बढ़ा, जिसका असर औली समेत पूरे हिमालय में दिख रहा है। वैज्ञानिकों का अध्ययन बताता है कि आने वाले दशकों में ज़्यादातर क्षेत्रों में तापमान बढ़ेगा। उत्तर भारत के ज़्यादातर हिस्सों में पाले के दिनों में महत्वपूर्ण गिरावट की प्रवृत्ति दिखाई दे रही है। इसका मुख्य कारण शून्य-डिग्री यानी हिमांक स्तर है जिससे बारिश बर्फ के रूप में गिरती है। ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से बर्फ ज़्यादा ऊंचाई पर चली गई है, इसलिए बाकी क्षेत्रों में ठोस वर्षा कम होती है।

यह भी पढें : वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राधा रतूड़ी (Radha Raturi) ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव के रूप में संभाला कार्यभार, पत्रकारिता से शुरू किया था करियर

हिमालय में ग्लेशियर पीछे हट रहे हैं। तापमान बढ़ने से बारिश में कमी होना और ग्लेशियर सिकुड़ने से जलवायु में गर्माहट और सूखापन जारी  है। उत्तराखंड मौसम केंद्र का कहना है कि इस साल वेस्टर्न डिस्टर्बेंस बहुत कमज़ोर रहा है और इसलिए बारिश कम हुई है। बारिश और बर्फबारी अब पहले जैसी नहीं रही। करीब 30 साल पहले से यहां बर्फबारी का पैटर्न गड़बड़ा गया है। यही बर्फबारी का बिगड़ा पैटर्न औली पर असर डाल रहा है। चमोली स्कीइंग एंड स्नोबोर्ड असोसिएशन के अध्यक्ष हैं और इंटरनैशनल स्नो स्कीयर भी हैं। उन्होंने बताया कि औली में स्नो स्कीइंग पूरी तरह से प्राकृतिक बर्फबारी पर निर्भर है। ग्लेशियॉलजिस्ट का कहना है कि वेस्टर्न डिस्टर्बेंस की कमज़ोर तीव्रता के कारण हिमालय के इलाके में जनवरी आखिरी तक बर्फबारी न होने का संबंध जलवायु परिवर्तन से होसकताहै।उत्तराखंड के कई शहर इस वजह से खतरे में हैं। यहां मौसम शिफ्ट हो रहा है।

यह भी पढें : बजट पेश : इस बार अंतरिम बजट (interim budget) के पिटारे में न राहत मिली न बोझ बढ़ा, देशवासियों को जुलाई तक करना होगा इंतजार, जानिए वित्त मंत्री ने क्या-क्या घोषणाएं की

उत्तराखंड के 5,000 फीट से ऊपर वाले जो भी कस्बे, शहर या गांव ही क्यों न हों, सभी ग्लेशियर से बहकर आए ढेर पर बसे हैं। इन्हें वैज्ञानिक ‘मोरेन’ कहते हैं। ये सभी जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग के चलते खतरों की ज़द में हैं। इन सभी जगहों पर देर सवेर अगर ज़मीन धंसने जैसी समस्या आने लगे तो किसी को हैरानी नहीं होगी। जब कहीं भी बर्फ पड़े तो वहां एकदम किसी टूरिस्टों और गाड़ियों का प्रवेश रोका जाए ताकि गिरी हुई बर्फ का हवा और वायुमंडल से संपर्क ठीक से हो सके। उसको हवा और वायुमंडल के संपर्क में आने दिया जाय तो उससे कुछ राहत मिल सकती है। इसके अलावा ऊपरी हिमालय स्थित धार्मिक जिस रफ्तार से तीर्थयात्री पहुंच रहे हैं, उसे भी कंट्रोल करने की ज़रूरत है। अगर स्नो हार्वेस्टिंग कर सकेंगे तो क्लाइमेट चेंज के चलते ग्लेशियर्स पर पड़ रहे घातक प्रभाव और उद्यान में फलों की खेती और कृषि उपज पर इसके प्रभावों को कुछ हद तक कंट्रोल कर ही सकते हैं। हमारे प्राकृतिक जल स्रोत और जंगलों में लगने वाली आग समेत कीट पतंगों के ऊपर नमी के कम होने के प्रभाव को भी कुछ हद तक ही सही कुछ कम किया जा सकता है। यह लेखक के निजी विचार हैं।

यह भी पढें : लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) को लेकर जिला निर्वाचन अधिकारी ने ली सभी नोडल अधिकारियों की बैठक

Next Post

माघ मेला और प्लास्टिक का कचरा निस्तारण

माघ मेला और प्लास्टिक का कचरा निस्तारण डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला प्रकृति की अथाह खूबसूरती के बीच बसा, ऊंचे पहाड़ों, बुग्यालों, पौराणिक मंदिरों, गंगा-यमुना नदियों का उद्गम है उत्तरकाशी। हिमालय की ऊंची चोटियों के बीच बसा करीब साढ़े तीन लाख […]
m

यह भी पढ़े