सवाल: विभागों की खींचतान की भेंट चढ गया मालन नदी पर बना पुल (Malan river bridge) - Mukhyadhara

सवाल: विभागों की खींचतान की भेंट चढ गया मालन नदी पर बना पुल (Malan river bridge)

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Malan river bridge: विभागों की खींचतान में टूट गया मालन नदी पर बना पुल

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

Malan river bridge: उत्तराखंड में भारी बारिश से हर जगह तबाही की तस्वीरें सामने आ रही हैं। कोटद्वार से मानसून के कहर की खौफनाक तस्वीर सामने आई है। यहां भाबर को जोड़ने वाला मालन नदी पर बना पुल बारिश का वेग नहीं झेल सका औऱ बीचों बीच टूट कर ढह गया। इससे करीब 50 हजार की आबादी का संपर्क कट गया है।

मालन नदी पर बना ये पुल अचानक से बीचों बीच ढह गया। गनीमत रही कि हादसे वाली जगह पर उस वक्त कोई वाहन या राहगीर मौजूद नहीं था। पुल ढहते ही लोगों में अफरा तफरी मच गई। पुल के दोनों तरफ लोगों की भीड़ जुट गई। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मौके पर पुलिस फोर्स मौके पर मौजूद है। पुल के टूटने से भाबर क्षेत्र की 50 हजार की आबादी का संपर्क टूट गया है।

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उधर बारिश से गूलर झाला के गुर्जर डेरे में पानी घुस गया। लालढांग चिलरखाल मोटर मार्ग पर जगह जगह बारिश का पानी औऱ कीचड़ घुसने से जनजीवन अस्त व्यस्त है।

मालन नदी पर पुल टूटने कें बाद भाबर क्षेत्र को जोड़ने के लिए पौने दो करोड़ की लागत सें एक वैकल्पिक मार्ग भी मालन नदी पर बनाया गया था, लेकिन भारी बारिश कें बाद नदी में आया उफान उसे भी बहा लें गया।

इतना ही नदी सुखरों नदी भी इसके किनारे रह रहें लोगों की रातों की नींद लगातार हराम किए हुए हैँ और वह भी लगातार आबादी वाले इलाकों की ओर रुख कर रहीं है। शहर और भाबर को जोड़ने वाला मालन नदी पर बना अस्थाई ह्यूम पाइप पुल भी भारी बरसात में बह गया।

भाबर से कोटद्वार को जोड़ने वाला यह पुल 13 जुलाई को टूट गया था। इसके बाद लगभग 2 करोड़ की लागत से ह्यूम पुल का निर्माण किया गया था। इस पुल पर 4 अगस्त को ही वाहन चलने शुरू हुए थे। लेकिन बुधवार की बरसात में यह पुल भी टूट गया। पुल पर कार्य कर रहे कई मजदूर भी फंस गये थे। इन मजदूरों को एसडीआरएफ ने सुरक्षित बाहर निकाल लिया।

मालन नदी का पुल 13 जुलाई को टूट गया था

गौरतलब है कि कोटद्वार की नदियों में भारी खनन से मालन नदी का पुल 13 जुलाई को टूट गया था। इस पुल के टूटने से भाबर निवासी 40 साल के व्यक्ति की मौत भी हुई थी। करोड़ों की लागत से यह पुल 2010 में बना था।

यही नहीं, 8/9 अगस्त की बारिश में खोह नदी पर गाड़ीघाट को सनेह समेत अन्य इलाकों को जोड़ने वाले पुल की एप्रोच रोड भी ध्वस्त हो गयी। इससे आवागमन बुरी तरह बाधित हो गया है।

भारी बारिश से पनियाली, गिवईं, कमेड़ा स्रोत समेत मालन, खोह व सुखरौ नदी में बाढ़ आने से बसों व कार के बहने के अलावा सड़कों, पुलों व खेतों को भारी नुकसान हुआ है। लोगों के घरों में मलबा घुसने से अफरा तफरी मची हुई है। भू स्खलन से कोटद्वार-पौड़ी राजमार्ग भी कई जगह से बाधित जो रखा है।

पुलिस प्रशासन के अलावा विभिन्न दल व सामाजिक संगठन राहत कार्य में जुटे हैं। मालन नदी पर बने ह्यूम पाइप पुल निर्माण को लेकर भी कई तरह की चर्चाएं हैं।

स्थानीय निवासी नर ह्यूम पुल की जगह कल्वर्ट तकनीक से पुल बनाने की बात कही है। उनका कहना है कि रानीपोखरी में भी ह्यूम पुल का प्रयोग असफल साबित हुआ था।

शासन के सूत्रों की मानें तो कोटद्वार में मालन नदी पर बने पुल का सेफ्टी ऑडिट आईआईटी बनारस की ओर से किया गया था। संस्थान ने पुल को खतरा बताते हुए सुरक्षा कार्य करने की जरूरत बताई थी।

इस पर लोनिवि की ओर से इस पुल की मरम्मत के लिए चार करोड़ 44 लाख 93 हजार रुपये का इस्टीमेट बनाकर शासन को भेजा गया था। लोनिवि की ओर से यह पैसा राज्य आपदा न्यूनीकरण निधि (एसडीएमएफ) में मांगा गया था, लेकिन आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारियों ने इस प्रस्ताव को यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि मानकों के अनुसार, पुलों की मरम्मत के लिए एसडीएमएफ में पैसा नहीं दिया जा सकता है। फिर तब से अब तक कुछ
नहीं हुआ और बृहस्पतिवार को पुल का एक हिस्सा ढह गया।

लोनिवि की ओर से यह पैसा राज्य आपदा न्यूनीकरण निधि (एसडीएमएफ) में मांगा गया था, लेकिन आपदा प्रबंधन विभाग के अधिकारियों ने इस प्रस्ताव को यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि मानकों के अनुसार, पुलों की मरम्मत के लिए एसडीएमएफ में पैसा नहीं दिया जा सकता है। फिर तब से अब तक कुछ
नहीं हुआ प्रदेश में गत वर्ष नवंबर में कराए गए सेफ्टी आडिट में जिन 36 पुलों को असुरक्षित पाया गया था उनमें यह पुल भी शामिल था।

इसके बावजूद लोनिवि ने इस पुल को गंभीरता से नहीं लिया और नतीजा इसके क्षतिग्रस्त होने के रूप में सामने आया। यदि समय रहते इस तरफ ध्यान दे दिया जाता तो ऐसी स्थिति नहीं आती।

इसके बावजूद लोनिवि ने इस पुल को गंभीरता से नहीं लिया और नतीजा इसके क्षतिग्रस्त होने के रूप में सामने आया। यदि समय रहते इस तरफ ध्यान दे दिया जाता तो ऐसी स्थिति नहीं आती।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।)

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