चुनावी मुद्दे : अब 'कच्चातिवु' का मुद्दा गरमाया, पीएम मोदी की टिप्पणी के बाद फिर सर्खियों में, जानिए इस द्वीप के बारे में जिस पर मचा भाजपा-कांग्रेस में घमासान - Mukhyadhara

चुनावी मुद्दे : अब ‘कच्चातिवु’ का मुद्दा गरमाया, पीएम मोदी की टिप्पणी के बाद फिर सर्खियों में, जानिए इस द्वीप के बारे में जिस पर मचा भाजपा-कांग्रेस में घमासान

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चुनावी मुद्दे : अब ‘कच्चातिवु’ का मुद्दा गरमाया, पीएम मोदी की टिप्पणी के बाद फिर सर्खियों में, जानिए इस द्वीप के बारे में जिस पर मचा भाजपा-कांग्रेस में घमासान

मुख्यधारा डेस्क

लोकसभा चुनाव में नए के साथ पुराने पुराने मुद्दे भी उखाड़े जा रहे हैं। चुनावों में अब एक और मुद्दा भाजपा और कांग्रेस के बीच गरमा गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणी के बाद बीजेपी और कांग्रेस के नेता ‘कच्चातिवु द्वीप’ को लेकर आमने-सामने हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने मीडिया में आई खबरों के हवाले से कहा कि नए तथ्यों से पता चलता है कि कांग्रेस ने कच्चातिवु द्वीप ‘संवेदनहीन’ ढंग से श्रीलंका को दे दिया था। उन्होंने ‘एक्स’ पर एक खबर साझा करते हुए कहा, ‘आंखें खोलने वाली और चौंका देने वाली खबर। नए तथ्यों से पता चलता है कि कांग्रेस ने कैसे संवेदनहीन ढंग से कच्चातिवु दे दिया था। इससे प्रत्येक भारतीय नाराज है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना कांग्रेस का 75 वर्ष से काम करने का तरीका रहा है। उसके बाद पीएम मोदी ने रविवार को यूपी के मेरठ से चुनावी रैली का शंखनाद करते हुए कच्चातिवु द्वीप का मामला जोर-शोर से उठाया । पीएम ने कहा कि श्रीलंका और तमिलनाडु के बीच कच्चातिवु द्वीप है, जो सुरक्षा के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है। आजादी के समय ये भारत का अभिन्न अंग था। कच्चातिवु को लेकर तमिलनाडु की सियासत हमेशा से गर्म रही है। इसी मुद्दे को लेकर लोकसभा चुनाव 2024 से पहले पीएम मोदी ने फिर से कांग्रेस को निशाने पर लिया है।

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पीएम मोदी के बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भी अपने एक्स अकाउंट पर पोस्ट किया है। उन्होंने लिखा, कांग्रेस के लिए तालियां, कांग्रेस ने जानबूझ कर कच्चातिवु द्वीप दे दिया और उसका कोई पछतावा ही नहीं। कई बार कांग्रेस सांसद देश को विभाजित करने की बात करते हैं। तो कई बार भारत की सभ्यताओं और संस्कृति की भी आलोचना करते हैं। ये दिखाता है कि वो भारत की अखंडता और एकता के खिलाफ हैं। वो सिर्फ देश को तोड़ना और बांटना चाहते हैं।

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कहा कि कच्चातिवु का मुद्दा अचानक से सामने नहीं आया है। ये एक जीवंत मुद्दा रहा है। संसद में भी इस पर बहस हो चुकी है। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस और डीएमके ने इस मुद्दे पर ऐसा रुख अपनाया, जैसे उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं है। तत्कालीन प्रधानमंत्रियों ने भारतीय क्षेत्र के प्रति उदासीनता दिखाई। ऐसा लगता है कि उन्हें कोई परवाह ही नहीं थी। अब हम इस पर समाधान ढूंढ रहे हैं।

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दूसरी ओर, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आरोप लगाया कि चुनाव से ऐन पहले प्रधानमंत्री इस संवेदनशील मुद्दे को उठा रहे हैं, लेकिन आपकी ही सरकार के अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने 2014 में उच्चतम न्यायालय को बताया था कि कच्चातिवु 1974 में एक समझौते के तहत श्रीलंका गया था। कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने सोमवार को कहा कि बीजेपी को पहले अपने दामन में झांकना चाहिए।

कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी ने आरोप लगाया कि बांग्लादेश को 10000 एकड़ का जवाब कब देंगे। उन्होंने कहा, लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही गवाह है। अभी भारत और बांग्लादेश के बीच वार्ता हुई थी। क्या बीजेपी 7000 एकड़ जमीन के बदले 17,000 की भूमि उन्हें नहीं सौंपी। ये 10,000 एकड़ का जवाब कब देंगे आप? पहले अपने दामन में झांकें। कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने आगे कहा, इतिहास में क्या हुआ, इसका जवाब कई चुनाव में जनता दे चुकी है। आज आपको तमिलनाडु के लिए पीड़ा हो रही है, लेकिन जब आप तमिल भाषा के खिलाफ बोलते थे तब आपको पीड़ा नहीं होती थी। चुनाव से समय आपको वहां की चिंता हो रही है। जिस दिन आपको वहां (तमिलनाडु) से वोट मिल जाएगा फिर आप 5 साल तक नहीं बोलेंगे।

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वहीं डीएमके के वरिष्ठ नेता आरएस भारती ने कहा कि प्रधानमंत्री के पास दिखाने के लिए कोई उपलब्धि नहीं है और वह केवल झूठ फैला रहे हैं। यदि प्रधानमंत्री मोदी कच्चातिवु को लेकर उत्सुक होते तो अपने 10 साल के कार्यकाल में उसे पुन: हासिल कर सकते थे। भारती ने कहा, उन्होंने कच्चातिवु का मुद्दा क्यों नहीं उठाया। वहीं भाजपा के नेता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि कच्चातिवु द्वीप 1975 तक भारत के पास था। ये द्वीप भारत से महज 25 किलोमीटर दूर है। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे श्रीलंका को दे दिया। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को न तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी उठाते हैं और न ही डीएमके। बीजेपी नेता ने कहा कि जो हमारे मछुआरे जाते है उनको पकड़ लिया जाता है और उन्हें प्रताड़ित किया जाता है।

सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि तमिलनाडु के पास कच्चातिवु जो भारत का हिस्सा था पर उस पर नेहरू और इंदिरा ने भारत के हितों के खिलाफ जाकर उस पर अपना दावा छोड़ दिया था। नेहरू ने कहा था कि हमें उसकी जरूरत नहीं, जैसा उन्होंने अक्साई चीन के लिए कहा था। और लिखवा लिया था कि हमारे मछुआरे वहां नही जाएंगे। बीजेपी नेता सुधांशु त्रिवेदी ने कांग्रेस से सवाल किया कि राहुल गांधी बताए कि उनके परिवार ने कच्चातिवु पर दावा क्यों छोड़ा। वहीं डीएम पर नाराजगी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि डीएमके बताए कि सत्ता की किस मजबूरी के चलते आज वो भी नहीं इस मुद्दे पर नहीं बोल रहे है। त्रिवेदी ने कहा कि पीएम मोदी के मन में देश के हर हिस्से के लोगों को लेकर संवेदना है। अब आइए जानते हैं कच्चातिवु द्वीप क्या है, जिस पर लोकसभा चुनाव के दौरान सियासी घमासान मचा हुआ है।

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285 एकड़ में फैला कच्चातिवु द्वीप रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच स्थित है

कच्चातिवु द्वीप हिंद महासागर के दक्षिणी छोर पर स्थित है। भारत के दृष्टिकोण से देखें तो ये रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच स्थित है. 285 एकड़ में फैला ये द्वीप 17वीं सदी में मदुरई के राजा रामानंद के राज्य का हिस्सा हुआ करता था। अंग्रेजों के शासन में ये मद्रास प्रेसीडेंसी के पास आ गया। फिर साल 1921 में भारत और श्रीलंका दोनों देशों ने मछली पकड़ने के लिए इस द्वीप पर दावा ठोका, लेकिन उस वक्त इसे लेकर कुछ खास नहीं हो सका। भारत की आजादी के बाद समुद्र की सीमाओं को लेकर चार समझौते हुए। ये समझौते 1974 से 1976 के बीच हुए थे। साल 1974 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के बीच इस द्वीप पर समझौता हुआ। 26 जून, 1974 और 28 जून 1974 में दोनों देशों के बीच दो दौर की बातचीत हुई। ये बातचीत कोलंबो और दिल्ली दोनों जगह हुई थी। बातचीत के बाद कुछ शर्तों पर सहमति बनी और द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया गया था।

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इसमें एक शर्त ये भी थी कि भारतीय मछुआरे जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल करेंगे। साथ ही द्वीप पर बने चर्च पर जाने के लिए भारतीयों को बिना वीजा इजाजत होगी। लेकिन एक शर्त ये भी थी कि भारतीय मछुआरों को इस द्वीप पर मछली पकड़ने की इजाजत नहीं दी गई थी। इस फैसले का काफी विरोध भी हुआ था. तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणानिधि ने इंदिरा गांधी सरकार के इस फैसले का काफी विरोध किया था। इसके खिलाफ 1991 में तमिलनाडु विधानसभा में प्रस्ताव भी पास कर द्वीप को वापस लाने की मांग की गई थी। जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा था। साल 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर याचिका दायर की थी। और कच्चातिवु द्वीप को लेकर हुए समझौते को अमान्य करार देने की मांग की थी। उनका कहना था कि गिफ्ट में इस द्वीप को श्रीलंका को देना असंवैधानिक है। बता दें कि मछली पकड़ने के लिए तमिलनाडु के रामेश्वरम जैसे जिलों के मछुआरे कच्चातिवु द्वीप की तरफ जाते हैं। बताया जाता है कि भारतीय जल हिस्से में मछलियां खत्म हो गई है, लेकिन द्वीप तक पहुंचने के लिए मछुआरों को अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा पार करनी पड़ती है। जिसे पार करने पर श्रीलंका की नौसेना उन्हें हिरासत में ले लेती है। तमिलनाडु की राजनीति में कच्चातिवु द्वीप पांच दशकों से समय-समय पर जोर पकड़ता रहा है। फिलहाल यह मामला लोकसभा चुनावों पूरे देश भर में सुर्खियों में है।

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