उत्तराखंड में केवल रामनगर की रोज सेंटेड प्रजाति की लीची (Litchi) को मिला है जीआई टैग - Mukhyadhara

उत्तराखंड में केवल रामनगर की रोज सेंटेड प्रजाति की लीची (Litchi) को मिला है जीआई टैग

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उत्तराखंड में केवल रामनगर की रोज सेंटेड प्रजाति की लीची (Litchi) को मिला है जीआई टैग

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

देहरादून में, जो कभी अपनी लीची के लिए प्रसिद्ध था, गर्मियों का पर्याय माना जाने वाला यह फल इस मौसम में आकार में बहुत छोटा है और इसमें सामान्य सुगंध और स्वाद का अभाव है। किसानों, उद्योग हितधारकों और राज्य बागवानी विभाग के अधिकारियों के अनुसार, नियमित मौसम (शुष्क सर्दियाँ और अधिक बारिश और वसंत के महीनों में असामान्य ठंड) के कारण राज्य भर में  लीची की पैदावार  प्रभावित हुई है।  उत्तराखंड  में लीची के बाग 10,000 हेक्टेयर में फैले हुए हैं, जहां हर साल 25,000 मीट्रिक टन फल का उत्पादन होता है। उत्तराखंड में प्री-मॉनसून सीज़न (1 मार्च से 21 मई) में अधिशेष वर्षा दर्ज की गई। प्रमुख लीची बेल्ट देहरादून में इस अवधि में 43% अधिशेष वर्षा दर्ज की गई और मई 15 वर्षों में सबसे ठंडा रहा। मई में, जब लीची को सूखे और गर्म मौसम की जरूरत थी, भारी बारिश हुई। इससे नमी अधिक हो गई, जिससे फल खराब हो गए।

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किसानों का मानना ​​है कि अगर बारिश जारी रही तो लीची की कुल पैदावार कम से कम 50% प्रभावित होगी।  पिथौरागढ के मुनस्यारी के
भैंसखाट गांव के लीची उत्पादक जिनके पास 15 वर्षों से 100 लीची के पेड़ों का बगीचा है, ने कहा, पिथौरागढ़ में लीची में देर से फल लगे। हमें संदेह है कि हम इस साल ज़्यादा मुनाफ़ा कमा पाएंगे या नहीं। नैनीताल के रामनगर में फलों के रस प्रसंस्करण इकाई के मालिक किसान ने कहा, हमारी इकाई में, हम आमतौर पर सालाना 1 से 1.5 टन लीची स्क्वैश बनाते हैं, लेकिन इस साल, हम इसे भी बनाने में सक्षम नहीं हैं। 10 लीटर। देहरादून में भी किसान परेशान हैं विकास नगर क्षेत्र के लीची उत्पादक ने कहा, इस साल असामयिक ओलावृष्टि के कारण लीची में धब्बे पड़ गए हैं। फल या तो टूटा हुआ होता है या रोग ग्रस्त होता है। लीची भी तेजी से किण्वित हो रही है।

राज्य में कुल उपज प्रभावित होगी।” पंतनगर में जीबी पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी के पोमोलॉजिस्ट  ने टीओआई को बताया, इस साल कम गुणवत्ता वाली लीची के पीछे जलवायु परिवर्तन निश्चित रूप से प्रमुख कारणों में से एक है। विशेषकर कुमाऊँ में पैदावार ख़राब हुई है। बारिश बहुत गलत समय पर हुई और अधिकतम और न्यूनतम तापमान में उतार-चढ़ाव जारी रहा, जिसके परिणामस्वरूप स्वादहीन और विकृत फल पैदा हुए।” राज्य में लीची का कुल रकबा 10,253 हेक्टेयर है। इस क्षेत्रफल में गत वर्ष 23,742 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था। सर्वाधिक लीची दून में होती है। उद्यान विभाग के सर्वे में ही लीची की लगभग 20 प्रतिशत फसल बर्बाद होने की जानकारी सामने आई है। इस बार आम में पहले ही बौर कम आई थी। उस पर आंधी, वर्षा और ओलावृष्टि ने फसल को काफी नुकसान पहुंचाया। बीच-बीच में आंधी आने से कच्चे आम गिर गए, जिन्हें औने- पौने दाम पर बेचना पड़ा। रामनगर की लीची को जीआई टैग मिलने से बागबान गदगद हैं।

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जीआई टैग मिलने के बाद लीची की मांग बढ़ने के साथ बागबानों की आय भी बढ़ने की उम्मीद है। अब जीआई टैग के अतिरिक्त कोई भी रामनगर की लीची कहकर नहीं बेच जाएगा। लीची बेचने के लिए किसान एवं व्यापारी को यूजर सर्टिफिकेट लेना होगा। इसके बाद वह जीआई टैग लगाकर लीची को बेच सकते हैं। रामनगर लीची उत्पादक संगठन के सचिव और अध्यक्ष ने देहरादून में मुख्यमंत्री से जीआई टैग से संबंधित प्रमाणपत्र प्राप्त किया। उद्यान विभाग के प्रभारी ने बताया कि रामनगर और कालाढूंगी क्षेत्र में लगभग 900 हेक्टेयर में लीची की पैदावार होती है। रामनगर, कालाढूंगी क्षेत्र की आम व लीची की मिठास विदेशों तक पहुंचती है। रामनगर की रसीली और खुशबू वाली लीची चंडीगढ़, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मेरठ, संभल, हरियाणा, राजस्थान, मुंबई और दिल्ली भेजी जा रही है। स्थानीय मंडी में भी लीची की अच्छी खपत होती है।

जीआई टैग लगी लीची रामनगर की पहचान होगी। अब कोई रामनगर की लीची बताकर धोखाधड़ी नहीं कर सकता है। इससे लीची से जुड़े बागबानों को काफी फायदा होगा। रामनगर लीची उत्पादक संगठन के सचिव ने बताया कि जीआई टैग केवल रामनगर की रोज सेंटेड प्रजाति की लीची को मिला है। जीआई टैग उत्पाद की विशेषता की पहचान होती है। सचिव ने बताया कि जीआई टैग लेने के लिए लीची मालिकों की कागजी कार्रवाई संगठन पूरी कराएगा। 2003 में जीआई कानून बनने से लेकर 2023 तक के बीस वर्षों के सफर में पहली बार एक दिन में, एक साथ किसी राज्य के 18 उत्पादों को जीआई प्रमाण पत्र निर्गत किये गए हैं।

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इस उपलब्धि से उत्तराखंड के पहाड़ी व्यंजनों के साथ ही कई अन्य वस्तुओं तथा इनसे संबंधित कलाकारों को काफी लाभ होने के साथ ही दुनियाभर में उत्तराखंड को अलग पहचान मिलेगी। उन्होंने आशा व्यक्त की कि जीआई टैग युक्त उत्तराखण्ड के उत्पादों का निर्यात तेजी से बढ़ेगा। जी.आई. टैग से समर्थित उत्पादों की मार्केटिंग विकसित करने से स्थानीय कृषि और अर्थव्यवस्था को समर्थन मिलता है, क्योंकि यह उत्पादों को विशिष्ट स्थानों से संबंधित बनाए रखता है। ऐसे में बिचौलिये सरकारी समर्थन मूल्य से दो-चार रुपये ज्यादा देकर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं और किसान खाली हाथ हैं।सरकार को लोगों को आसानी से विपणन उपलब्ध कराने की व्यवस्था बनानी होगी। क्या होता है जी.आई. टैग और इसके फायदे!

( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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