हीमोग्लोबिन और भूख बढ़ाते है पाइन नट्स (Pine nuts)
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
ब्रितानवी हुकूमत के दौरान सजावटी के पौधे के तौर पर लाए गए चीड़ (चिर पाइन)ने उत्तराखंड के बड़े हिस्से पर कब्जा जमाकर चिंता बढ़ा दी है। वन महकमे के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो प्रदेश के कुल वन भूभाग के करीब 16 फीसद हिस्से में चीड़ के जंगल पसर चुके हैं। इससे आग की घटनाओं का अंदेशा बढ़ जाता है। चिलगोजा भारत में एक मेवे के रूप में जाना जाता है। चिलगोजा पाइन के पेड़ के बीज होते हैं और हजारों साल के लिए मूल निवासी अमेरिकयों द्वारा एक खाद्य स्त्रोत के रूप में इस्तेमाल होते रहे हैं। चिलगोजा का रंग लाल भूरा होता है !इसकी गिरी सफ़ेद रंग की होती है ! इसकी तासीर गर्म होती है ! यह धातुवर्धक होता है तथा भूख को बढाता है ! चिलगोजा का प्रसंस्करण बहुत ही मेहनत का काम है पर इसका पोषण मूल्य बहुत अधिक है। चिलगोजे को घरेलू संसाधनों से विकसित किया जा रहा है।
चिलगोजे की 5 मुख्य प्रजातियां हैं। साइबेरियाई चीड़, कोरियाई चीड़, इतालवी पत्थर चीड़, चिलकोजा चीड़, एकल पत्ती और कोलोराडो। चिलगोजे की फसल के मौसम में महत्वपूर्ण सांस्कृतिक परंपराओं की शुरूआत और पवित्र अनुष्ठानों को मनाया जाता है। चिलगोजा को भोजन और तेल मालिश के रूप में उपयोग होता है। सौन्दर्य उत्पादों और सौंदर्य प्रसाधनों में उपयोग किया जाता है। भुने हुए चिलगोजे सबसे स्वादिष्ट लगते हैं। चिलगोजे, कुरकुरे मीठे और स्वादिष्ट होते हैं। चिलगोजा दिखने में हाथी दांत रंग के, पतले और लंबे आकार के होते हैं। चिलगोजा अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन और उत्तर पश्चिमी भारत 1800 – 3350 मीटर की ऊंचाई पर पेड़ पाये जाते हैं। किन्नौर जिला से हर साल करीब पंद्रह सौ क्विंटल चिलगोजे हर साल बेचा जाता है।
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चिलगोजा 500-900 रुपए प्रति किलो के हिसाब से स्थानीय मंडियों में उपलब्ध होता है समय के साथ चिलगोजे की अंतरराष्ट्रीय बाजार में मांग बढ़ने से यह ड्राईफ्रूट जिला के लोगों के लिए आर्थिकी का बड़ा जरिया बन रहा है। चिलगोजे की फसल पंद्रह माह में तैयार होती है और इसकी विशेषता यह है कि अलगे साल कितनी फसल चिलगोजे के पेड़ पर तैयार होगी, इस बात का पता पहली फसल के तोड़ने से पहले ही टहानियों में तैयार हो रहे कोण से पता चलता है। कार्बोहाईड्रेट और प्रोटीन युक्त चिलगोजा भारत में हिमाचल प्रदेश के किन्नौर और चंबा के साथ-साथ
जम्मू-कश्मीर में भी पाया जाता है। इसके अलावा बलूचिस्तान, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में भी चिलगोजे के पेड़ पाए जाते हैं। चिलगोजे के पेड़ का बॉटेनिकल नाम पाईनस जियारर्डियाना है जो 10 से 25 मीटर तक ऊंचा हो सकता है। एक पेड़ में 25 से लेकर 400 कोण तैयार हो सकते हैं। कोण से निकालेगए 100 बीज 30 से 40 ग्राम तक वजन के रहते हैं।
दुनिया के अधिकतर देश इस फल से वंचित हैं लेकिन किन्नर कैलास के पास वास्पा और सतलुज की घाटी में कड़छम नामक स्थान पर चिलगोजे के पेड़ों का भरा पूरा जंगल है। चिलगोजा, चीड़ या सनोबर जाति के पेड़ों का छोटा, लंबोतरा फल है, जिसके अंदर मीठी और स्वादिष्ट गिरी होती है और इसीलिए इसकी गिनती मेवों में होती है। स्थानीय भाषा में चिलगोजे को न्योजा कहते हैं। किन्नौर तथा उसके समीपवती प्रदेश में विवाह के अवसर पर मेहमानों को सूखे मेवे की जो मालाएँ पहनाई जाती हैं उसमें अखरोट और चूल्ही के साथ चिलगोजे की गिरी भी पिरोई
जाती है। सफेद तनों वाला इनका पेड़ देवदार से कुछ कम लंबाई वाला, हरा भरा होता है। इसका वानस्पतिक नाम पाइंस जिराडियाना है। चिलगोजा समुद्रतल से लगभग 2000 फुट की ऊँचाई वाले दुनिया के इने गिने इलाकों में ही मिलता है। यह कुछ गहरी और पहाड़ी घाटियों के आरपार उन जंगलों में उगता है, जहाँ ठंडा व सूखा मौसम एक साथ होता हो, ऐसे जंगलों के आसपास कोई नदी भी हो सकती है और वहाँ से तेज हवाएँ गुजरती हों। चट्टानी, पर्वत मालाएँ सीथी खड़ी मिलती हों और वृक्ष चट्टानों को फाड़कर उगने के अभ्यासी हों। ऐसी जलवायु में जहाँ भी इसका बीज अंकुरित हो जाय यह सदाबहार हो उठता है।
चिलगोजे के पेड़ पर चीड़ की ही तरह भूरे रंगरूप वाला तथा कुछ ज्यादा गोलाई वाला लक्कड़फूल लगता है। मार्च अप्रैल में आकार लेकर यह फूल सितंबर अक्तूबर तक पक जाता है। यह बेहद कड़ा होता है। इसे तोड़कर इसकी गिरियाँ बाहर निकाली जा सकती हैं लेकिन ये गिरियाँ भी एक मजबूत आवरण से ढकी रहती है। इस भूरे या काले आवरण को दाँत से कुतर कर हटाया जा सकता है।भीतर पतली व लंबी गिरी निकलती है जो सफेद मुलायम व तेलयुक्त होती है। इसे चबाना बेहद आसान होता है। इसका स्वाद किसी भी अन्य कच्ची गिरी से तो मिलता ही है, मगर काफी अलग तरह का होता है। मूँगफली या बादाम से तो यह बहुत भिन्न होता है। छिले हुए चिलगोजे जल्दी खरीब हो जाते हैं लेकिन बिना छिले हुए चिलगोजे बहुत दिनों तक रखे जा सकता है।
चिलगोजा भूख बढ़ाता है इसका स्पर्श नरम लेकिन मिजाज गरम है। इसमें पचास प्रतिशत तेल रहता है। इसलिये ठंडे इलाकों में यह अधिक उपयोगी माना जाता है। सर्दियों में इसका सेवन हर जगह लाभदायक है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है, इसको खाने से बलगम की शिकायत दूर होती है। मुँह में तरावट लाने तथा गले को खुश्की से बचाने में भी यह उपयोगी है। लगभग 100 ग्राम चिलगोजे में 636 कैलरी होती है। साथ ही 2.3 ग्राम पानी, 13.1 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 3.6 ग्राम शर्करा, 3.7 ग्राम रेशा, 68.5 ग्राम तेल, 13.7 ग्राम प्रोटीन, 16 मिली ग्राम कैलसियम, 4.4 मिली ग्राम लोहा, 241 मिली ग्राम मैगनीशियम, 8.8 मिलीग्राम मैगनीज, 575 मिलीग्राम फासफोरस, 597 मिलीग्राम पोटैशियम तथा 6.4 मिलीग्राम ज़िंक इनमें पाया जाता है। इसके अतिरिक्त इसमें विटामिन बी, सी, ई, के भी पाए जाते है। इसमें कोलेस्ट्राल बिलकुल नहीं होता है।
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पाइन नट्स यानी चिलगोजे बहुत पौष्टिक होते हैं। यह पिनोलैनिक एसिड का एकमात्र प्राकृतिक स्रोत हैं। 10 ग्राम चिल्गोजे में 0.6 मिलीग्राम आयरन होता हैं। आप इसे कच्चा या भुना हुआ खा सकते हैं।चिलगोजे में विटामिन बी और विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। चिलगोजे मोनोसैचुरेटेड फैट से भरे होते हैं और इनके सेवन से भूख भी बढ़ती है। इसमें भरपूर मात्रा में आयरन मौजूद होता है, जिससे शरीर में हीमोग्लोबिन बढ़ता है और भूख ज्यादा लगती है।चिलगोजा एक ऐसा नट्स है जिसे सूपरफूड कहा जाता है। इसमें कई विटामिंस और आयरन होते हैं जिससे यह बहुत ही पौष्टिक माना जाता है। इसे आप कच्चा या भूनकर दोनों तरह से खा सकते हैं। इसमें मौजूद मोनोसैचुरेटेड फैट भूख बढ़ाने में मददगार साबित होता है। चिलगोजे खाने से शरीर में खून की मात्रा भी बढ़ती है। एनर्जी से भरपूर होता है चिलगोजा। इसमें एंटीबैक्टिरीयल तत्व भी पाए जाते हैं जो इम्यून पावर को मजबूत बनाते हैं।
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एक्सपर्ट्स के अनुसार कई महिलाओं के लिए यह प्रेगनेंसी में भी फायदेमंद होता है।बढ़े हुए कोलेस्ट्रोल लेवल को घटाने में भी मददगार है चिलगोजे का सेवन. कोलेस्ट्रोल लेवल को कम कर यह दिल से जुड़ी बीमारियों को भी दूर रखता है चिलगोजा आयरन का बेहतरीन स्रोत है इसलिए प्रेगनेंसी में और प्रेगनेंसी के बाद इसका सेवन बहुत फायदेमंद होता है। इसके सेवन से एनीमिया नहीं होता है और ये भ्रूण के स्वस्थ विकास में भी सहायतक होता है।चिल्गोजे में ढेर सारे प्रोटीन भी होते हैं, जो कई अन्य आहारों से नहीं मिल पाते हैं लाइसिन एक जरूरी अमीनो एसिड है, जो चिलगोजे में पाया जाता है। चिल्गोजा एंटीऑक्सीडेंट्स का भी बेहतरीन स्रोत होता है।
पाइन नट्स में गाल्लोकैटेचिन, लूटीइन, लाइकोपीनस कैरोटिनॉयड, कैटेचिन और टोकोफेरोल जैसे ढेर सारे महत्वपूर्ण एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं। चिलगोजे में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट्स फ्री-रेडिकल्स को हटाते हैं और ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस को कम करते हैं। कच्चे चिलगोजे में गाल्लोकैटेचिन भरपूर होता है जबकि भुने हुए चिलगोजे में कैरोटिनॉयड और टोकोफेरोल भरपूर होता है। इसलिए इसका सेवन आपके पूरे शरीर को स्वस्थ रखता है। पाइन नट्स में बीटा कैरोटीन और एंटीऑक्सिडेंट होते हैं जो आंखों के स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं। यह बढ़ती उम्र के साथ घटती आंखों की रौशनी को घटने से रोकता है। बढ़ाता है इम्यूनिटी चिलगोजे में एंटीबैक्टीयल और एंटीवायरल गुण होते हैं, जिसके कारण ये शरीर में मौजूद हानिकारक केमिकल्स से हमारी रक्षा करता है और इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं।
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चिलगोजे के तेल का उपयोग कई एंटीसेप्टिक दवाओं और एंटी-फंगल क्रीम में भी किया जाता है। इसमें आयरन और मैग्नीशियम की भरपूर मात्रा होने की वजह से ये मस्तिष्क को तेज करता है। कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि पाइन नट्स चिंता, अवसाद और तनाव को दूर करने में मदद कर सकते हैं। एक अन्य अध्ययन से साबित होता है कि मैग्नीशियम युक्त आहार का सेवन करने से अवसाद और चिंता विकारों वाले किशोरों की स्थिति में सुधार होता है।
चिलगोजा उन पुरुषों के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं जो बांझपन या कम शुक्राणु संख्या से परेशान हैं। चिलगोजा के सेवन से शुक्राणुओं की संख्या में वृद्धि होती है और पुरुष सेक्सुअली एक्टिव महसूस करते है। शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने के लिए पुरुषों को नियमित रूप से दो माह तक प्रतिदिन 20 ग्राम चिलगोजा का सेवन करना चाहिए।धुमेह से पीड़ित लोगों के लिए चिलगोजा बहुत ही फायदेमंद होता है। यह शरीर में
इंसुलिन को सक्रिय करने में मदद करता है। इंसुलिन रक्त शर्करा को नियंत्रित करता है। चिलगोजे का सेवन नाश्ते के बाद कर सकते हैं। यह मधुमेह के लक्षणों को कम करने का सबसे प्रभावी तरीका हो सकता है। कोविड-19 के कारण उत्तराखण्ड वापस लौटे लोगों को स्वरोजगार के अवसर उपलब्धकराने के उद्देश्य से शुरू की गई है। इससे कुशल और अकुशल दस्तकार, हस्तशिल्पि और बेरोजगार युवा खुद के व्यवसाय के लिए प्रोत्साहित होंगे।
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राष्ट्रीयकृत बैंकों, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों और सहकारी बैंकों के माध्यम से ऋण सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। राज्य सरकार द्वारा रिवर्स पलायन के लिए किए जा रहे प्रयासों में योजना महत्वपूर्ण सिद्ध होगी। बेरोजगार युवा मिल्क प्रोसेसिंग, बटर, चीज व अन्य डेयरी उत्पाद में भाग्य आजमा सकते हैं। मुर्गी पालन, होटल, अवकाश कालीन खेल तथा रोप वे में उद्यम चालू किया जा सकता है। होटल मैनेजमेंट, कैटरिंग एंड फूड क्रॉफ्ट, डाइंग प्लांट, गैर परंपरागत ऊर्जा उत्पादन आदि सेक्टरों में स्वरोजगार की शुरुआत की जा सकती है। इसमें निवेश प्रोत्साहन योजना तथा ब्याज उपादान योजना शामिल है। स्टांप शुल्क में भी छूट है। विद्युत बिलों की भी प्रति पूर्ति हो सकती है। उत्तराखंड के जिस, वह साग-सब्जी की आवश्यकता के मामले में आत्मनिर्भर जाता तो इससे बेरोजगार युवा स्वरोजगार के साथ-साथ दूसरों को भी रोजगार देने वाले बन सकते हैं। रोजगार को शुरू करने के लिए बहुत कम पूंजी लगाकर अधिकतम फायदा उठाया जा सकता है। कुदरत ने उत्तराखंड को कुछ ऐसे
अनमोल तोहफे दिए हैं, जिनमें अद्भुत गुणों की भरमार है।
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महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बचाने की कोशिश के लिए मुहिम से सी बात ही कई प्रकार की गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं भी जन्म दे सकती है।
बचाने की कोशिश करनी होगी। यही नही, सरकार ने पिरुल से बिजली बनाने के साथ ही इसके व्यवसायिक उपयोग के मद्देनजर नीति भी जारी की है। इसके पीछे सरकार की मंशा यही है कि चीड़ को नियंत्रित किया जाए, लेकिन इन प्रयासों को पंख नहीं लगने में अभी वक्त लगना तय है। यह भी देखना होगा कि पिरुल से बिजली और अन्य उत्पादों यथा ब्रिकेट, सजावटी वस्तुएं आदि की मांग व इनसे रोजगार की स्थिति क्या है। कहने का आशय ये कि चीड़ से पार पाने को प्रभावी विकल्प ढूंढऩे होंगे।
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साथ ही इसे रोजगार से जोडऩा होगा। चीड़ के वन कदाचित ही घने होते है , इन वनों की जमीन घास से ढकी होती है जो कभी कभी घनी भी होती है तथा यहाँ झाड़ियों के असतंत वन भी मौजूद है जो कि अक्सर कम दुरी के बावजूद व्यापक रूप से फैले है तथा अपनी उपस्थित दर्ज कराते है। इन वनों की खुली प्रकृति, अन्य वृक्ष प्रजातियों की कमी आगजनी को बढावा देती हैं। इन वनों की निचली सीमाओं मे चीड़ के वृक्ष विविध जाति के वृक्षों के साथ घुल मिल गए हैं, कुछ समय मे साल के वनों मे भी यह मिश्रित हो गए हैं। चीड़ गोंद व इसकी लकड़ी की इमारत बनाने के लिए उपयोग होती है। इसके बीज का तेल निकालने मे उपयोग होते है व इसके बीज भून कर खाने योग्य हो जाते है। इसकी सुखी पत्तियां खाद के लिए उपयोग होती है।उत्तराखंड सरकार ने चीड़ के पेड़ से, जिन्हें चीड़ के की पत्तियों (सूइयों) के नाम से भी जाना जाता है, से हरित शक्ति के उत्पादन हेतु अपने प्रयास शुरू कर दिये हैं।
लेखक द्वारा उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक हैं, वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत है।