मुख्यधारा ब्यूरो
देहरादून। वर्तमान कोरोना संकट के चलते अपने गांव लौट चुके हजारों प्रवासियों को यहां रोकने के लिए सरकार को उनका भरोसा जगाने की बड़ी चुनौती खड़़ी हो गई है। यदि इसमें सरकार नाकाम रही तो कुछ समय बाद प्रवासी अपने अपने कर्मस्थली गंतव्यों की ओर लौट जाएंगे और सरकार की यह कसरत महज कागजी आंकड़ों की खानापूर्ति तक ही सीमित रह जाएगी।
गत दिवस मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इसके लिए गढ़वाली में एक वीडियो जारी करके तमाम प्रवासी लोगों से गढ़वाली में एक अपील की है, जिसमें उन्होंने कहा है कि बहुत से प्रवासी लोगों का यही पर काम करने की इच्छा होगी। प्रदेश सरकार उनका हरसंभव सहयोग करने के लिए तैयारी कर रही है। बाकायदा उनके सुझावों के लिए एक फॉर्म भी भरवाया जा रहा है। लोग अपने सुझाव सरकार तक पहुंचा सकते हैं। फार्म भरने के अलावा पत्र व ईमेल के द्वारा भी सुझाव भेज सकते हैं। इसी आधार पर सरकार भविष्य का प्लान तय करेगी। यही नहीं इसके लिए सरकार मंत्रिमंडलीय समिति बनाने जा रही है। जिसके अध्यक्ष कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल होंगे। जिसमें राज्य मंत्री धन सिंह रावत एवं रेखा आर्य सदस्य होंगे। यह समिति इन तमाम मुद्दों पर विस्तृत अध्ययन करेगी और इसी आधार पर इन लोगों के लिए रणनीति बनाई जाएगी।
निश्चित तौर पर सरकार की यह पहल सराहनीय है, लेकिन इससे पहले भी प्रदेश में इस तरह के तमाम आयोजनों पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन दुखद यह है कि धरातल पर आज भी आम जनता को इसके सुखद परिणाम देखने को नहीं मिले।
इन्हीं तमाम बातों व चिंता को आम जनता के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार गजेंद्र रावत। आइए आप भी इससे रूबरू होइए। देखिए वीडियो :
जाहिर है कि उपरोक्त वीडियो में वरिष्ठ पत्रकार गजेंद्र रावत ने उत्तराखंड में हुए हिटो पहाड़ और रैबार कार्यक्रम की हकीकत बयां की है। ऐसे में सरकार को नए कार्यक्रम में कदम रखने से पहले पिछले कार्यक्रमों का आकलन कर नई रणनीति पर विचार किए जाने की आवश्यकता है।
सवाल यह है कि प्रवासियों को भरोसे में लिए बिना उन्हें यहां रुकने के लिए आमंत्रित करना या फिर उन्हें यहां रोक पाना इतना आसान नहीं है। चाहे कोई प्रवासी स्वेच्छा से ही यहां क्यों न रुकना चाहे, जब तक वह सरकार द्वारा दिए गए भरोसे पर पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं हो पाता, तब तक यहां रुकने के लिए मन नहीं बना पाएगा।
उपरोक्त तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए उत्तराखंड सरकार प्रवासी लोगों के लिए वर्तमान जैसे अनुकूल माहौल में भी यहां रुकने व काम करने के लिए सटीक रणनीति नहीं बना पाती है तो फिर ऐसा सुनहरा अवसर शायद ही फिर कभी किसी सरकारों को मिले। और यदि सरकार प्रवासियों की उम्मीदों पर खरा उतरने में कामयाब होती है तो यह उत्तराखंड और यहां के लोगों के लिए बेहद दूरगामी परिणाम साबित हो सकते हैं।
सरकार के लिए पिछले रैबार कार्यक्रमों का रैबार प्रवासियों तक क्यों नहीं पहुंच पाया, इसका मंथन के लिए भी सरकार के पास सबसे अनुकूल समय है। हालांकि इस मंथन के बीच सरकार की प्राथमिकता में कोरोना से निपटना ही शीर्ष प्राथमिकता होनी चाहिए।
बहरहाल, कोरोना और लॉकडाउन के बीच प्रवासी लोग अपने गांवों में अपनों के साथ समय बिताने के साथ ही सरकार द्वारा बनाई जा रही रणनीतियों पर पैनी नजर बनाए हुए हैं। अब यह समय ही बताएगा कि सरकार की पहल कितनी सार्थक सिद्ध होती है और सभी जिलों से कितने प्रवासी लोग अपने गांवों में ही रहकर काम करने को तैयार होते हैं!