रमेश पहाड़ी
सरकार द्वारा कोरोना संकट के चलते केदारनाथ-बदरीनाथ मंदिरों के कपाट 15 दिन बाद खोलने के निर्णय से केदारनाथ मंदिर से जुड़े लोग सहमत नहीं हैं और उन्होंने पूर्व निर्धारित तिथि 29 अप्रैल को ही तय मुहूर्त्त पर कपाट खोलने का निर्णय लिया है। उनका कहना है कि उत्तराखण्ड सरकार ने बिना स्थानीय लोगों को विश्वास में लिए एकतरफा निर्णय लिया है और परम्पराओं की अनदेखी की है। इसलिए वे परम्पराओं का पालन करते हुए ही मंदिर के कपाट खोलेंगे और उसमें किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करेंगे।
कल अर्थात 20 अप्रैल 2020 को राज्य के पर्यटन व धर्मस्व मंत्री सतपाल महाराज ने दोपहर में एकाएक घोषणा की कि कोरोना त्रासदी के चलते टिहरी महाराज ने बदरीनाथ व केदारनाथ के कपाट खोलने की तिथि 15 दिन आगे सरका दी है और अब केदारनाथ मंदिर के कपाट 14 मई और बदरीनाथ के 15 मई 2020 को पूजन के लिए खोले जायेंगे। इस पर सम्बंधित लोगों में तीखी प्रतिक्रिया हुई कि केदारनाथ मंदिर के सम्बंध में टिहरी महाराज का हस्तक्षेप क्यों? क्योंकि केदारनाथ मंदिर की व्यवस्था में राजाओं का कोई हस्तक्षेप कभी भी नहीं रहा है। मुख्यंमत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और राज परिवार के महाराज मनुजेंद्र शाह के बीच हुई टेलीफोनिक वार्ता में केदारनाथ मंदिर का कहीं भी उल्लेख नहीं था। केवल बदरीनाथ मंदिर के कपाट 15 मई को खोलने तथा उसके निमित्त होने वाले तेल कार्यक्रम को 5 मई को आरम्भ करने की बात कही गई थी। सतपाल महाराज ने इसमें केदारनाथ को भी जोड़ कर इसे विवादित बना दिया, जिससे केदार क्षेत्र के लोगों में नाराजी देखी गई और इस समाचार के प्रसारण के साथ ही इसके खिलाफ लोगों में प्रतिक्रिया आरम्भ हो गई। लोगों का कहना है कि पुरातन काल से केदारनाथ मंदिर की पूजा रावल के नेतृत्व में स्थानीय लोग ही विभिन्न भूमिकाओं को निभाते हुए करते आ रहे हैं। इसमें किसी राजा की कभी भी कोई भूमिका नहीं रही है। अचानक राजपरिवार को लपेटकर इसमें कोई नया गुल खिलाने की कोशिश की जा रही है, जो कि परम्पराओं के विरुद्ध है। लोगों का कहना था कि स्थानीय आचार्य वर्ग, पुरोहित समाज, दस्तूरधारी, पँचगाईं ऊखीमठ और गौंडार के साथ ही रावल को पूछे बिना यह निर्णय नहीं लिया जा सकता।
इसकी भनक लगते ही शाम को सतपाल महाराज ने पुनः घोषणा की कि कपाट खोलने की तिथि आगे बढ़ाने का निर्णय ऊखीमठ में 21 अप्रैल को लिया जाएगा। इसी के आधार पर एक बैठक ओंकारेश्वर मंदिर में आयोजित की गई जिसमें प्रतिभागियों ने साफ शब्दों में कहा कि परम्परा के अनुसार केदारनाथ के कपाट खोलने की तिथि व मुहूर्त्त ऊखीमठ में सभी सम्बद्ध पक्षों की उपस्थिति में ज्योतिषीय गणना के आधार पर किया जाता है। इसलिए इसमें किसी प्रकार के परिवर्तन की न कोई गुंजाईश है और न जरूरत। बैठक में कहा गया कि कोरोना संकट से निपटने के लिए जो शासन-प्रशासन के दिशा-निर्देश हैं, उनका पूरी तरह पालन करते हुए उत्सव डोली केदारनाथ पहुँचाई जाएगी और विधिविधान से पूजा की जाएगी।
बैठक में उपस्थित सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मी प्रसाद भट्ट का कहना था कि मंदिरों की व्यवस्था और महत्व उनके लिए निर्धारित परम्पराओं में निहित है और उनसे छेड़छाड़ की अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा कि महाशिवरात्रि के अवसर पर दिन निकाला गया है और उसमें बदलाव नहीं किया जाएगा। बैठक में बदरी-केदार के निवर्तमान मुख्य कार्याधिकारी बी डी सिंह, पंडा-पुरोहित समाज के श्रीनिवास पोस्ती, केदार सभा के अध्यक्ष विनोद शुक्ला, वेदपाठी स्वयम्बर सेमवाल, यशोधर मैठाणी आदि लोग शामिल थे।
इस पूरे प्रकरण पर जिले के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता और राजनेता प्रदीप बगवाड़ी का कहना है कि सतपाल महाराज की पूर्व घोषणा ने लोगों में भ्रम पैदा कर दिया। यदि लोगों को विश्वास में लेकर, उनसे परामर्श कर कोई निर्णय लिया जाता तो लोग उसमें सहयोग करते और अभी भी करेंगे लेकिन यह संदेश बिल्कुल नहीं जाना चाहिए कि सरकारी आदेश उन पर थोपे जा रहे हैं। लोग कोरोना सम्बन्धी दिशा-निर्देशों का पूरा पालन कर रहे हैं। क्योंकि उसमें उनकी सुरक्षा की भावना भी अभिन्न रूप से जुड़ी है। बगवाड़ी जी ने यह भी सवाल किया कि सरकार या सतपाल महाराज यह बताते कि 15 दिन बाद यात्रा आरम्भ करने से दर्शनार्थियों को भी, सीमित संख्या में समुचित प्रतिबंधों के साथ केदारनाथ जाने की अनुमति दी जाएगी तो तब भी लोगों को कुछ भरोसा होता। जब 15 दिन बाद भी ऐसी ही बिना यात्रियों के पूजा होनी है तो फिर दिन आगे बढ़ाने का औचित्य ही क्या है?
इस निर्णय के बाद गेंद फिर सरकार के पाले में है और उसे ही लोगों को विश्वास में लेकर ऐसी व्यवस्था बनानी है ताकि परम्पराओं का समुचित निर्वहन भी हो जाये और लोक-जीवन संकट में भी न पड़े। कोरोना से रक्षा के अलावा स्थानीय लोगों की आजीविका का सवाल भी चार धाम यात्रा से अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है। इसका भी कोई समाधान निकालने की जरूरत होगी।