जगदीश ग्रामीण
अब वह जमाना बीत गया है, जब कहते थे कि श्वान की दुम सीधी नहीं होती है। अब नई-नई नस्ल के श्वान उपलब्ध हैं, जिनकी दुम सीधी है, लेकिन चिंता की बात यह है कि श्वान मालिकों की पूंछ अभी भी टेढ़ी (Satirical) ही है।
गांव में लोग श्वान पालते हैं, ताकि जंगली जानवरों से खेती की सुरक्षा हो सके। अकेले में दूर-दूर तक घर होते हैं, इसलिए घर की चौकीदारी हो जाती है। पहरेदारी हो जाती है।
शहरी क्षेत्रों में लोग न जाने क्यों श्वान पालते हैं। उनके लिए अच्छा सा बिस्तर रखते हैं, बल्कि अपने साथ बेड में सुलाते भी हैं। शैंपू से नहलाते भी हैं। अच्छा भोजन कराते हैं, लेकिन फिर बात वही आती है कि श्वान के मालिक अपनी दुम सीधी नहीं करना चाहते हैं, भले ही कुत्तों की दुम अब सीधी हो गई है।
श्वान के मालिक इतना सब कुछ होने पर भी सुबह-सुबह अपने लाडले श्वान को सड़कों पर गंदगी करने के लिए छोड़ देते हैं। कभी-कभी तो वे अपने श्वान को दिन में बांधना भी जानबूझकर भूल जाते हैं। जिस कारण ये श्वान समय असमय राहगीरों पर भौंकते भी हैं, गुर्राते भी हैं, काटने को दौड़ते भी हैं और कभी-कभी काटते भी हैं। इन श्वान मालिकों को यह ध्यान तो अवश्य रखना ही होगा कि वह श्वान शौक से पालें, लेकिन अपने शौक पूरे करने के लिए दूसरों को दर्द न दें।
परसों की ही बात है, अनंत चतुर्दशी का दिन था। एक श्वान अपनी पंचायती अर्धांगिनी के साथ घूम रहा था। या यूं कहें कि मॉर्निंग वॉक पर था। उसको भगाने की गलती कर बैठा। वह मुझ पर आक्रमण कर बैठा। उसके आक्रमण के पश्चात फिर डॉक्टर के पास दौड़ लगाने की बारी मेरी थी। यह क्रम अभी चलता रहेगा। जब तक यह दौड़ लगाई जाती रहेगी, पराए श्वान से प्रेम की याद आती रहेगी।
वैसे आज मनुष्य में जहर बहुत भर गया है। अब यह भी हो सकता है कि व्यक्ति को काटने से श्वान परलोक भी सिधार सकता है। मैं भी यह चेक कर रहा हूं कि जहर मुझ में अधिक है या फिर उस श्वान में! इसलिए श्वान पर जागरूक लोगों के परामर्श के अनुसार 10 दिनों तक पैनी नजर रखी जा रही है।
अब ये तो आप विदित ही होंगे कि कार्तिक माह के श्वान खतरनाक होते हैं, क्योंकि उस समय उनकी मिलन बेला होती है। जाहिर है कि उसमें यदि किसी के द्वारा व्यवधान डाला जाएगा तो निश्चित रूप से वे प्रतिकार करेंगे। किंतु आजकल श्वान का आक्रमण कुछ रास नहीं आ रहा है।
थानो क्षेत्र में आजकल इन्हीं कुकुर समूह का आतंक है। यह बिना मौसम समूह में चल रहे हैं। इनको दूसरे समूह या व्यक्तियों से सख्त नाराजगी है। यह अपनी घूम-गश्त में किसी का हस्तक्षेप सहन करने को तैयार नहीं हैं। यह श्वान का झुंड तो कार्तिक के कुकुरों से भी ज्यादा भयानक व खूंखार हो रखे हैं। श्वान के झुण्डों में भी लगता है कि सहिष्णुता का भाव कम हो रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि श्वान के मालिकों की दुम भी श्वान की तरह ही समय रहते सीधी हो जाएगी।
इस व्यंग्यवाण को पढ़कर आप स्वत: महसूस कर रहे होंगे कि इस तरह की घटनाएं किसी क्षेत्र विशेष नहीं, बल्कि यह प्रदेश व देशभर में अमूमन सभी जगहों की हकीकत बयां कर रहा है।
अंत में मुख्यधारा अपने पाठकों को एक महत्वपूर्ण बात से भी अवगत कराना चाहता है। वह यह कि कभी भी दूसरे के लाडले प्रिय श्वान को ‘कुत्ता’ कहकर पुकारने की गलती न की जाए। इस गलती के भयानक दुष्परिणाम तब और घातक हो सकते हैं, जब किसी श्वान को उसकी मेमसाब घुमाने निकली हों। भले ही वह आपकी ओर काटने को भी दौड़ पड़े, किंतु ऐसी संकटमयी परिस्थिति में भी आप उसे ‘कुत्ते’ के बजाय टॉमी-Tomy या फिर अपने अनुभव के आधार पर अन्य ब्रांडेड नामों से पुकारकर उसकी मालकिन को बचाव के लिए मदद मांग सकते हैं। यदि श्वान द्वारा आप पर अनायास हुई इस झपट्टेमार घटना के समय आपकी तरफ से ऐसा नहीं किया गया तो श्वान के काटने से तो आप बच भी सकते हैं, किंतु कुत्ता संबोधित करके आपके द्वारा जो भयानक भूल हो गई, उसका कोपभाजन बनने से फिर तो…!!!
काटे चाटे श्वान के दुहुं भांति विपरीत।
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