विधायक मनोज रावत की कलम से
देहरादून। कोरोना से सारा देश जूझ रहा है। सारे देश में लोग अपनी तरफ से आगे बढ़कर कोरोना से लड़़ने के लिए अपनी सामर्थ्य के अनुसार सरकारों को सहयोग दे रहे हैं। इसको देखते हुए उत्तराखंड कैबिनेट ने भी निर्णय लिया था कि विधानसभा सदस्यों के वेतन, निर्वाचन क्षेत्र भत्ता और सचिव भत्ते की 30 फीसदी राशि सरकार को कोरोना में मदद हेतु दिया जाएगा, लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा सरकार के एक दर्जन विधायक मात्र नौ हजार की कटौती करा रहे हैं। यही नहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत भी इतना ही योगदान दे रहे हैं। ऐसे में सत्तारूढ़ दल के भाजपा विधायक अपनी ही सरकार के फैसलों को पलीता लगा रहे हैं।
इस मामले में सूचना के अधिकार से मिले दस्तावेजों से इसकी पुष्टि हो गयी है। आंकड़ों के मुताबिक सत्तारूढ़ दल के 58 (57 और 1 एंग्लो इंडियन मनोनीत विधायकों) केवल 13 विधायक ही कैबिनेट के निर्णय के अनुरूप 57600 रुपए कटवा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के 16 विधायक अपने वेतन से 30 हजार रुपए की कटौती कर आ रहे हैं। चार विधायक रुपए 12 हजार 600 और 13 भाजपा विधायक अपने वेतन से केवल नौ हजार प्रतिमाह की कटौती करा रहे हैं।
विधानसभा ने नेता सदन, जो कि मुख्यमंत्री हैं, विधानसभा अध्यक्ष, विधानसभा उपाध्यक्ष और मंत्री गणों द्वारा अपने वेतन में करायी जा रही कटौती सूचना नहीं दी है, यह तो विधानसभा का कार्यालय ही जानता होगा कि ये सब माननीय गण भी क्या कैबिनेट की भावनाओं के अनुरूप, वेतन कटा रहे हैं या नहीं? कांग्रेस की विधायक दल की नेता और नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर इंदिरा हृदयेश अपने वेतन का रुपए 75600 कटा रही हैं। उनका पद कैबिनेट मंत्रियों के समकक्ष है।
अब मैं अपने साथी विधायक मुन्ना सिंह चौहान से पूछना चाहता हूं कि उनकी ही सरकार की कैबिनेट का निर्णय था और उन्होंने ही अपने वेतन से केवल रुपए 30000 की कटौती कराकर क्या अपनी ही सरकार की कैबिनेट के निर्णय की अपमान नही किया है? उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस कर कांग्रेस पर आरोप लगाया था कि कांग्रेस के विधायक अपने वेतन से हिस्सा नहीं देना चाह रहे हैं, जबकि कांग्रेस का विरोध आपदा या राष्ट्रीय संकट के समय सरकार के एकतरफा फैसले से था, जिसे कांग्रेस विधायकों ने सार्वजनिक रूप से भी व्यक्त भी किया था।
देश और प्रदेश हित में इस तरह के निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाने चाहिए, संकट में राजनीति नहीं करनी चाहिए, किंतु उत्तराखंड सरकार अपने निर्णयों का पालन ही जब अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और विधायकों से नहीं करवा पा रही है, तो फिर सवाल करें भी तो किससे?
लोकतंत्र की भावना है कि जिन निर्णयों से हर विधानसभा सदस्य के हित प्रभावित हो रहे हों या उनसे देश और प्रदेश के हित में कुछ योगदान देने की आशा सरकार रख रही हो तो ऐसे निर्णय सर्वसम्मति से होने चाहिए। विपक्ष को भी इन निर्णयों के सहभागी बनाना चाहिए। यह संदेश जाना चाहिए कि संकट के समय उत्तराखंड का हर विधायक देश और प्रदेश के साथ खड़ा है, लेकिन उत्तराखंड सरकार ने सभी विधानसभा सदस्यों को पूछना तो दूर नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर इंदिरा हृदयेश से भी इस मामले में कोई बात तक नहीं की। इसलिए अप्रैल के महीने कांग्रेस की ओर से गतिरोध रहा।
हालांकि वेतन व्यक्तिगत होता है तथा इस पर कैबिनेट का फैसला लागू नहीं हो सकता। फिर भी हम सब कांग्रेस विधायकों ने निर्णय लिया कि इस वैश्विक संकट में कांग्रेस की नेता सदन डा. इंदिरा हृदयेश जो भी निर्णय लेंगी, उसे हम मानेंगे। उन्होंने अप्रैल के माह के अंत में कैबिनेट की भावनाओं के अनुसार अपने वेतन निर्वाचन क्षेत्र भत्ता तथा सचिव व्यवस्था भत्ते के का 30 फीसदी सरकार को देने का सहमति पत्र जारी किया।
इस हिसाब से हम सभी कांग्रेस के ११ विधायकों का मई से वेतन का 57600 रुपए कटना शुरू हुआ। कांग्रेस के दो विधायकों ने मार्च के महीने में भी 30000 रुपये कोरोना हेतु कटवाए थे, उनके भी मई के महीने में समायोजित कर 57600 का ही आंकड़ा बैठता है। जब नेता प्रतिपक्ष ने सहमति दे दी थी तो विधानसभा को कांग्रेस के विधायकों के अप्रैल माह के वेतन के हिस्से की भी 57600 रुपए कटौती कर देनी चाहिए थी।
सरकार ने इस मामले में विपक्ष को भरोसे में नहीं लिया, लेकिन उनके प्रवक्ता विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि कांग्रेस के विधायक संकट में कैबिनेट के निर्णय को नहीं मान रहे हैं, लेकिन बाद में पता चला कि कैबिनेट के निर्णय के बाद जिन विधानसभा सदस्यों की पार्टी की राज्य में सरकार है, वे ही अपने वेतन में पृथक-पृथक कटौती करा रहे हैं।
इस संबंध में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत का कहना है कि हमारी जानकारी में जो आया, उतना जमा कर दिया गया। अब इसके अलावा आगे भी कोई सूचना आएगी तो और भी जमा कर दिया जाएगा।
(लेखक केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं और उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार रहे हैं)