Uttarakhand Lok Virasat 2023: उत्तराखण्ड लोक विरासत 2023 आज से, छोलिया, न्योली, कुमाऊंनी बैर, भगनौल, छपेली, न्योली, झोड़ा व चांचड़ी से हो पाएंगे रूबरू - Mukhyadhara

Uttarakhand Lok Virasat 2023: उत्तराखण्ड लोक विरासत 2023 आज से, छोलिया, न्योली, कुमाऊंनी बैर, भगनौल, छपेली, न्योली, झोड़ा व चांचड़ी से हो पाएंगे रूबरू

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Uttarakhand Lok Virasat 2023: उत्तराखण्ड लोक विरासत 2023 आज से, छोलिया, न्योली, कुमाऊंनी बैर, भगनौल, छपेली, न्योली, झोड़ा व चांचड़ी से हो पाएंगे रूबरू

देहरादून/मुख्यधारा

देहरादून में आज से उत्तराखंड लोक विरासत 2023 की धूम रहेगी। दो और तीन दिसंबर को होने वाले उत्तराखंड लोक विरासत में कुमाऊं का छोलिया, गंगनाथ के जागर, राजुला-मालूशाही, न्योली, कुमाऊंनी बैर, भगनौल, छपेली, न्योली, झोड़ा, चांचड़ी से रूबरू होने का मौका मिलेगा, वहीं गढ़वाली में बदरीनाथ के जागर, खुदेड़ गीत, बाजूबंद की कम से कम तीन गायन शैलियां सुनने को मिलेंगी, माता, नागराजा और भैरू के जागर, उत्तरकाशी की ढखनौर घाटी का पैसारा, छूड़े, बाजूबंद, तांदी-रासौ, पाण्डव, घोड़ी नृत्य, गढ़वाल की भोटिया जनजाति के पौंणा, बगड्वाल, पाण्डव और मुखौटा नृत्य एवं वाद्यवृंद की आकर्षक प्रस्तुतियां नई पीढ़ी को अपनी लोक संस्कृति से जुड़े रहने के लिए प्रेरणा पुंज बनेंगे।

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कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य :-

यहां के संकटग्रस्त हस्तशिल्प और लोककलाओं का संरक्षण और संवर्धन।
लोककलाकारों का सम्मान उन्हें मंच और आर्थिक सहायता प्रदान करना।
यह कार्यक्रम संवर्द्धनात्मक कार्यक्रम है। यहां के लोकसंगीत और शिल्पकलाओं को समर्पित और इनके उन्नयन से जुड़ा है।

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ये हैं आयोजन

इसका आयोजन बिना किसी सरकारी या अन्य किसी भी आर्थिक सहायता के वैयक्तिक रूप से डॉ. के. पी. जोशी, निदेशक चारधाम अस्पताल, नेहरू कॉलोनी, देहरादून, विगत तीन वर्षों से सिर्फ और सिर्फ अपने संसाधनो से कर रहे हैं। इसमें गढ़रत्न नरेन्द्र सिंह नेगी और पद्मश्री डॉ. प्रीतम भरतवाण जैसे उत्तराखण्ड के गौरव निस्वार्थ रूप से, बिना एक पैसा लिए न सिर्फ अपनी प्रस्तुति देते हैं बल्कि आयोजन मंडल में सक्रिय रूप से अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं।

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इसमें आपको यह देखने को मिलेगा-

पहला कार्यक्रम है लोकरंग। यह दोनो दिन 2 बजे से 5 बजे तक होगा। इसके अंन्तर्गत आपको एकदम ठेठ अंदाज में जमीन से जुड़े कलाकारों द्वारा देखने सुनने को मिलेगा-
कुमाऊं का छोलिया, गंगनाथ के जागर, राजुला-मालूशाही, न्योली, कुमाऊंनी बैर, भगनौल, छपेली, न्योली, झोड़ा, चांचड़ी।
गढ़वाली में बदरीनाथ के जागर, खुदेड़ गीत, बाजूबंद की कम से कम तीन गायन शैलियां सुनने को मिलेंगी, माता, नागराजा और भैरू के जागर, उत्तरकाशी की ढखनौर घाटी का पैसारा, छूड़े, बाजूबंद, तांदी-रासौ, पाण्डव, घोड़ी नृत्य, गढ़वाल की भोटिया जनजाति के पौंणा, बगड्वाल, पाण्डव और मुखौटा नृत्य एवं वाद्यवृंद प्रस्तुति। दिव्यांग कलाकार द्वारा चंद्रबदनी क्षेत्र (गढ़वाल) के जागर एवं पवाड़े, बालकलाकारों और महिलाओं द्वारा ढोल वादन। डिजरीडू वादन, डबल ड्रोन फ्लूट वादन और अन्य बहुत कुछ।

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दूसरा कार्यक्रम है-लारा-लत्ता, गैणा-पत्ता। यह भी दोनो दिन होगा 5 से 6 बजे तक। इसके अंतर्गत आपको रं, (धार्चुला), कुमाउनी, रंग्पा,(चमोली), चौंदकोट-सलांण(गढ़वाल), जौनसार और टकनौर घाटी (उत्तरकाशी) के वस्त्र-आभूषणों का प्रदर्शन के साथ परिचय भी देखने-सुनने को मिलेगा।

शाम 6 से 9 बजे होगी गीत संध्या। इसमें में उत्तराखण्ड के प्रतिष्ठित और स्थापित लोक गायकों के साथ नवोदित और उभरते 16 लोकगायक एक ही मंच से अपनी प्रस्तुति देंगे।

कार्यक्रम स्थल पर 11 पूर्वाह्न से 9 बजे सायं तक हस्तशिल्प, क्षेत्रीय साहित्य-पुस्तकें, पहाड़ी उत्पाद, भोजन, पकवान पहाड़ी वस्त्र-आभूषणों की प्रदर्शनी और विक्रय आदि भी होगा।

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हाशिये पर सिमटती जा रही उत्तराखण्ड की लोककलाएं, लोककलाकार, हस्तशिल्प और हस्तशिल्पी खुद को सम्मानित महसूस करेंगे, उनका बहुत मान-सम्मान बढ़ेगा। आपकी तालियां, प्रशंसा, प्रोत्साहन और प्यार भरी सिर्फ एक नजर यहां के लोकसंगीत और हस्तशिल्प की धीमी पड़ती जा रही धड़कनों को जिंदा रख सकती है। और अगर आपने कुछ खरीद-वरीद लिया तो कहने ही क्या!
आपके आने से आयोजक मंडल का उत्साह भी बढ़ेगा और निरन्तर इस कार्य को आगे बढ़ाते रहने की शक्ति प्राप्त होगी।

उत्तराखंड लोक विरासत में अधिक से अधिक लोगों के पहुंचने से उत्तराखंड लोक संस्कृति को समझने व संरक्षण के लिए आप भी इसमें भागीदार बन सकते हैं। कार्यक्रम में शामिल होने के लिए प्रवेश निशुल्क रखा गया है।

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