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लेखिका एवं आकाशवाणी उदघोषिका भारती आनन्द अनन्ता (Bharti Anand Ananta)का पहला काव्य संकलन का विमोचन

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लेखिका एवं आकाशवाणी उदघोषिका भारती आनन्द अनन्ता (Bharti Anand Ananta) का पहला काव्य संकलन का विमोचन

नीरज उत्तराखंडी/देहरादून

देहरादून में दून पुस्तकालय के सभागार में लेखिका एवं आकाशवाणी उद्घोषिका भारती आनन्द अनन्ता का पहला काव्य संकलन का लोकार्पण पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी और प्रसिद्ध साहित्यकार महाबीर रवांल्टा ने संयुक्त रूप से किया है।

इस अवसर पर पद्मश्री जगूड़ी ने कहा कि यह इक्कसवीं सदी के कवि का पहला काविता संकलन है जिसमें आज की महिलाओं की स्वच्छन्दता का वर्णन किया है।

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कविताओं में पुरानी तुकबन्दी को नये रूप में प्रस्तुत किया गया है। कविता की हर एक पंक्ति कुछ कहती है। उन्होंने कहा कि महिला की स्वतन्त्रता पर और कई कविताएं पाठको के बीच में है मगर भारती आनन्द अनन्ता ने स्वतन्त्रता की परिभाषा को कविता के रूप में प्रस्तुत किया है।

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लोकार्पण समारोह में मुख्य वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार महाबीर रवांल्टा ने कहा कि भारती की कविता जहां महिला प्रतिनिधि के रूप में प्रखरता से सामने आई है वहीं वह समाज में महिला की भूमिका का सुन्दर वर्णन किया गया है। कविता संकलन का शीर्षक कविता ‘जीवन है क्या? एक जलता दिया। जिसने जैसा समझा, वैसे ही जिया’। बहुत ही सरल ढंग से सहज शब्द विन्यास से मानव प्रवृति की बात प्रस्तुत की गई है। आम पाठको के लिए लिखी गई कविताएं निश्चित समाज के काम आयेगी।

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यही नहीं सभी 82 कविताएं कुछ न कुछ न कह रही है, चिन्तन के लिए बाध्य कर रही है। स्वतन्त्रता और परतन्त्रता को भारती ने अपनी कविताओं में प्रबलता से उठाया है।

लोकार्पण कार्यक्रम के दौरान रिव्यू अधिकारी रंजना एवं अशिका और आकांक्षा ने ‘कहे अनकहे रंग जीवन के’ कविता संग्रह की कुछ कविताओं का पाठ भी किया है।

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इस दौरान पद्मश्री प्रेमचंद शर्मा, डा० स्वराज विद्वान पूर्व सदस्य अनु० जा० आयोग भारत सरकार, धाद के संपादक गणेश खुगशाल गणी, लेखक कवि विचारक लोकेश नवानी, आकाशवाणी के कार्यक्रम प्रमुख अनिल भारती, पत्रकार राकेश विजल्वाण, पत्रकार मनोज ईष्टवाल , नरेश नौटियाल , शशी मोहन रावत , पन्डित शक्ति प्रसाद सेमवाल , वरिष्ठ लेखक गोविंद प्रसाद बहुगुणा, नीरज उत्तराखंडी, वरिष्ठ पत्रकार विजेंद्र सिंह रावत , लता नौटियाल व अन्य सैकड़ो लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम का सफल संचालन वरिष्ठ कवियत्री और लेखिका बीना बेंजवाल ने किया है।

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कहे-अनकहे रंग जीवन के कविता संकलन की भूमिका में पद्मश्री व प्रतिष्ठित कवि लीलाधर जगूड़ी ने भूमिका में लिखा है कि अनुभव प्रायः सबके पास होते हैं, पर उसकी अभिव्यक्ति सबके पास नहीं होती। यह अलग ढंग से होती है। यह अलग होने का संघर्ष ही कविता को मौन कथन में बदल देता है। इसी कविता संकलन की अगली भूमिका में वरिष्ठ साहित्कार महाबीर रवांल्टा लिखते हैं कि पहाड़ में अपनी थाती-माटी के प्रति गहरे जुड़ाव के कारण भारती अपनी स्मृतियों में विचरण करती हैं। उनकी कविताओं में पलायन का दर्द भी दिखाई देता है।

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लेखिका भारती का कहना है कि अपने मन के भावों को कविता के रूप में लिख पाना माउंट एवरेस्ट को पार करने जैसा था। चूंकि पुस्तकों के प्रति बचपन से ही लगाव रहा है। तभी लेखन के बीज रोपित हुए है। किंतु कागज पर उन्हें उतारना इतना आसान नहीं था। स्त्री होने और घर की जिम्मेदारियों व जीवन को निभाने के बीच कितना कुछ खो देते हैं। हम स्वयं नहीं जान पाते। बस इसी इसी खोये हुए को समेटने का एक सूक्ष्म प्रयास है यह काव्य-संग्रह।

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कुल मिलाकर भारती ने अपने मन के प्रश्नों, अनुभवों, जीवन के बदलाव को चिन्हित कर कविताओं के रूप में सहेजने का बेमिसाल प्रयास किया है।

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