पहाड़ों से मैदान में उतरते ही मैली हो रही यमुना (Yamuna) - Mukhyadhara

पहाड़ों से मैदान में उतरते ही मैली हो रही यमुना (Yamuna)

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पहाड़ों से मैदान में उतरते ही मैली हो रही यमुना (Yamuna)

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

प्राचीनकाल से जिले की यमुनाघाटी क्षेत्र के यमुना तट पर गंगनानी नामक स्थान पर स्थित प्राचीन कुंड से गंगा की जलधारा निकलकर यमुना के साथ मिलती है। इसके साथ ही यहां पर केदार गंगा भी गंगा व यमुना के साथ मिलकर संगम बनाती है, जिससे यह स्थान त्रिवेणी संगम के रूप में भी प्रसिद्ध है। प्राचीनकाल से चली आ रही क्षेत्र के लोगों में इस धार्मिक स्थान को लेकर प्रयागराज जैसी ही आस्था आज भी विद्यमान है।भारतवर्ष की सर्वाधिक पवित्र और प्राचीन नदियों में यमुना की गणना गंगा के साथ की जाती है। यमुना और गंगा के दो आब की पुण्यभूमि में ही आर्यों की पुरातन संस्कृति का गौरवशाली रूप बन सका था।

ब्रजमंडल की तो यमुना एक मात्र महत्वपूर्ण नदी है। जहाँ तक ब्रज संस्कृति का सम्बंध है, यमुना को केवल नदी कहना ही पर्याप्त नहीं है।वस्तुतः यह ब्रज संस्कृति की सहायक, इसकी दीर्ध कालीन परम्परा की प्रेरक और यहाँ की धार्मिक भावना का प्रमुख आधार रही है। सरकारी तंत्र से यमुना भी पीड़ित है। उसकी पीड़ा है कि मेरे साथ छलावा क्यों किया गया। नदी के पुनरुद्धार के नाम पर नेताओं ने बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाए, लेकिन यमुना को न गंदगी से मुक्ति मिली और न ही उसकी अविरल जलधारा लौट सकी।  यमुना नदी उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के मैदानी क्षेत्र विकासनगर में प्रवेश करने के साथ मैली होने लगती है।

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कालसी (जौनसार) के हरिपुर में यमुना का जल गुणवत्ता के पैमाने पर इतना स्वच्छ है कि आप उसका आचमन कर सकते हैं, पर जैसे ही यमुना विकासनगर में प्रवेश करती है, तो नदी का जल केवल स्नान योग्य ही रह जाता है।उत्तराखंड के गौमुख गंगोत्री से निकलने वाली भागीरथी
नदी अपने ही मायके में मैली हो रही है। भागीरथी नदी अपने पहले पड़ाव उत्तरकाशी शहर में काफी दूषित हो रही है। उत्तरकाशी शहर चारधाम यात्रा का मुख्य पड़ाव है, जो अपनी आस्था और सुंदरता के लिए जाना जाता है। यात्री और पर्यटक गंगोत्री से पहले उत्तरकाशी ही पहुंचते हैं। कहा जा रहा है कि जिम्मेदार अधिकारियों की लापरवाही की वजह से भागीरथी नदी दूषित हो रही है।

जिला मुख्यालय में ही करीब दर्जनभर जगहों पर सीवर और घरों की गंदगी छोटे- बड़े नालों से होकर सीधे नदी में समा रही है। नदी किनारे बने पौराणिक मणिकर्णिका घाट, जड़भरत, केदारघाट आदि जगहों पर सीवर और घरों की गंदगी पहुंच रही है। मुख्य रूप से तांबाखाणी से लगा इलाका और जोशियाड़ा क्षेत्र के गंदे नालों का पानी नदी में गिर रहा हैं।नगर पालिका बाड़ाहाट ने तांबाखाणी सुरंग के बाहर कूड़े के लिए डंपिंग यार्ड बनाया गया है। जिसके ठीक नीचे भागीदारी नदी बह रही है। डंपिग यार्ड के कूड़े की वजह से भी भागीरथी नदी प्रदूषित हो रही है।

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बता दें कि तांबाखाणी सुरंग उत्तरकाशी शहर का मुख्य द्वार है। यहां पहुंचते ही सबसे पहले कूड़े का ढ़ेर दिखाई पड़ता है। सुरंग के अंदर और आस पास कूड़े की बदबू से राहगीरों को काफी दिक्कत होती है। साथ ही नदी किनारे घाटों का पुननिर्माण भी होना था। लेकिन, नमामि गंगे परियोजना केवल घाटों के पुनर्निर्माण तक सिमट कर रह गई। नगर पालिका अध्यक्ष ने बताया कि तांबाखाणी में भागीरथी की पवित्रता को ध्यान में रख कर कूड़े का निस्तारण किया जा रहा है। अगर कूड़ा कहीं से भी नदी में गिर रहा होगा तो उसे हटाया जाएगा। भारत की नदियों का बुरा हाल है। गांव की बात छोड़िए जो नदियां शहर से गुजरती हैं उनका हाल देख पर्यावरण प्रेमी और नदियों से जुड़े लोग दुखी होते हैं। सरकारी लापरवाही और अधिकारियों की नाकामी का नतीजा है कि नदियां मैली ही होती जा रही हैं।

दिल्ली से गुजरने वाली यमुना नदी की जो तस्वीरें पिछले कुछ दिनों में देश और दुनिया में दिखीं वे हर साल कमोबेश इस दौरान दिख जाती हैं।
यमुनोत्री से निकलकर यमुना नदी करीब-करीब 1400 किलोमीटर का सफर तय प्रयागराज के संगम में जा मिलती है। दिल्ली में इस नदी का हाल बहुत बुरा है और कहें तो सबसे ज्यादा प्रदूषित भी जानकार कहते हैं कि यमुना की यह समस्या साल भर रहती है लेकिन ध्यान सिर्फ छठ के मौके पर जाता है जब श्रद्धालु पूजा के लिए नदी के किनारे इकट्ठा होते हैं। सबसे बड़ा कारण औद्योगिक प्रदूषण है। यमुना हरियाणा से दिल्ली में दाखिल होती है और राज्य में सोनीपत और पानीपत से औद्योगिक अपशिष्ट नदी में मिलता है। इसी तरह से दिल्ली में जो औद्योगिक ईकाइयां हैं वह भी बहुत हद तक नदी को जहरीला बनाने के लिए जिम्मेदार हैं। कई नाले सीधे में नदी में जा मिलते हैं और उस पानी का ट्रीटमेंट भी नहीं होता है। यह पानी नदी को मटमैला करता है, नदी में झाग बनने लगता है और धीरे-धीरे नदी में अमोनिया का स्तर खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है जिससे पानी पीने लायक नहीं रहता है।

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यमुना नदी में अमोनिया की 0.2 पीपीएम (पा‌र्ट्स पर मिलियन) तक की मात्रा को सामान्य माना जाता है। इससे ज्यादा मात्रा होने पर यह स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है. अगर इंसान एक पीपीपएम या उससे अधिक अमोनिया के स्तर वाले पानी के लंबे समय तक इस्तेमाल करता है तो उसके आंतरिक अंगों को नुकसान हो सकता है। दक्षिण एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर ऐंड पीपल के समन्वयक कहते हैं यमुना में प्रदूषण का मुद्दा तो पूरे साल का रहता है लेकिन त्योहार के मौसम में यह मुद्दा उछल जाता है। वह कहते हैं कि मानसून के समय ही नदी में पानी ज्यादा होने से प्रदूषण कम हो जाता है। सालों साल यमुना को निर्मल और स्वच्छ करने के वादे किए जाते रहे हैं लेकिन नदी में होने वाला सफेद झाग, सरकारों के सफेद झूठ को हर साल आइना दिखाता है। और यही कारण है कि यह दुनिया में सबसे प्रदूषित नदियों में से एक मानी जाती है।

नदी दिल्ली की जरूरत का आधे से अधिक पानी प्रदान करती है, जो इसके निवासियों के लिए एक गंभीर स्वास्थ्य खतरा है। और यह पिछले कुछ वर्षों में गंदा हो गया है क्योंकि प्रदूषण के खिलाफ कानूनों के बावजूद राजधानी के अधिकांश सीवेज, पड़ोसी राज्यों के कृषि कीटनाशक और औद्योगिक अपशिष्ट नदी में मिल जाते हैं। यमुना पर राजनीति भी खूब होती है। इसी का नतीजा है कि नेता बड़े-बड़े वादे करते हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने 18 नवंबर को कहा कि वह 2025 तक यमुना को साफ कर देंगे। उन्होंने कहा,’मैंने इस चुनाव में वादा किया था कि अगले चुनाव तक हम यमुना साफ कर देंगे। अगले चुनाव से पहले मैं आप सब के साथ यमुना में डुबकी लगाऊंगा।’हिंदू धर्म में नदियों का बहुत ऊंचा स्थान है लेकिन दुर्भाग्य से धर्म और धार्मिक संस्थाएं नदियों के लिए कभी नहीं खड़ी होतीं. क्या कभी निर्मल हो पाएगी यमुना नदी

( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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