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एक नजर: बड़ी बेशकीमती है यारसा गंबू (कीड़ा जड़ी), अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 15 से 20 लाख रुपये किलो है कीमत

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एक नजर: बड़ी बेशकीमती है यारसा गंबू (कीड़ा जड़ी), अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 15 से 20 लाख रुपये किलो है कीमत

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

हिमालय के ऊंचाई वाले इलाकों में मिलने वाली नायाब कीड़ाजड़ी (यारशागंबू) का यहां भले ही कोई मोल न हो लेकिन विदेशी बाजार और खास कर चीन में यह कीड़ाजड़ी ‘बेशकीमती’ है। चीन में इसका इस्तेमाल प्राकृतिक स्टीरॉयड के तौर पर किया जा रहा है। अपनी कारामाती क्षमता के कारण इस कीड़ाजड़ी का उपयोग शक्तिवर्धक के तौर पर तथा खिलाड़ियों में क्षमता बढ़ाने के लिए किया जाता है। सामान्य तौर पर समझें तो ये एक तरह का जंगली मशरूम है। इस जड़ी का वैज्ञानिक नाम कॉर्डिसेप्स साइनेसिस या फिर कॉर्डिसेप्स मिलिटरीज भी है। इसमें प्रोटीन, अमीनो एसिड, पेपटाइड्स, विटामिन बी-1, बी-2 और बी-12 जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं। ये तत्काल रूप में ताक़त देते हैं। पहाड़ी इलाकों में इसका दोहन भी हो रहा है और इसकी तस्करी भी की जाती है। फिलहाल इतना जरूर है कि एक जड़ी-बूटी से आपके स्वास्थ्य में जबरदस्त तरीके से वृद्धि हो जाती है। कहा जाता है कि कीड़ाजड़ी से बेहतर शक्तिवर्धक दवा कोई नहीं है। हिमालयी क्षेत्रों में तिब्बत और नेपाल में भी इसका कारोबार होता है। हालांकि इसके वास्तविक गुणों के बारे में कुछ एक लोग ही जानते हैं।

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हिमालयी क्षेत्रों में इसे कीड़ा-जड़ी कहा जाता है। उधर तिब्बत और चीन में इसे यार्सागुम्बा या यारसागम्बू कहा जाता है। प्राकृतिक इलाज के तौर पर इसका सबसे बेहतर इस्तेमाल किया जाता है। खास बात ये है कि इस जड़ी का कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता। आमतौर पर गंभीर रोगों के इलाज के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसका इस्तेमाल सांस और गुर्दे की बीमारी में भी किया जाता है। साथ ही इसके बारे
में कहा जाता है कि ये उम्र के असर यानी बुढ़ापे को भी बढ़ने से रोकता है। ये शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है। इसके अलावा इसका उपयोग सांस और गुर्दे की बीमारी में भी होता है। यह बुढ़ापे को भी बढ़ने से रोकता है तथा साथ ही शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति भी बढ़ाता है।

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दरअसल यार्सागुम्बा यानी कीड़ाजड़ी एक तरह का कीड़ा होता है। ये खास तरह के पौधों पर ही पैदा होता है। सर्दियों में इन पौधों से रस
निकलता है और ये पैदा होते हैं। इसका जीवन 6 महीने का ही होता है। उच्च हिमालयी क्षेत्र के बुग्यालों में पाए जाने वाली शक्तिवर्धक कीड़ाजड़ी (यारसा गंबू) का इस बार अच्छा दाम मिलने से ग्रामीणों के चेहरे खिल गए है। वर्तमान में कीड़ाजड़ी का 13 लाख रुपये प्रति किलो का दाम तय हो चुका है। अभी और दाम बढ़ने की संभावना जताई जा रही है। सरकार को कीड़ाजड़ी दोहन और खरीद के लिए कोई ठोस नीति बनानी चाहिए ताकि इसकी कालाबाजारी न हो और काश्तकारों को वाजिब दाम मिल सकें। कीड़ा-जड़ी के व्यवसाय से जुड़े 10 हजार से ज्यादा लोगों पर संकट के बादल हैं।  क्योंकि कीड़ा-जड़ी को रेड लिस्ट में शामिल किया गया है।

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​इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर यानी आईयूसीएन ने कीड़ा-जड़ी यानी यारशागंबू यानी हिमालयन वियाग्रा को अपनी रेड लिस्ट में शामिल किया है। वैसे तो आईयूसीएन ने सबसे पहले साल 2024 में कीड़ा-जड़ी पर खतरा बताया था। लेकिन 9 जुलाई 2020 को जारी रेड लिस्ट में कीड़ा-जड़ी का नाम भी शामिल है। कीड़ा-जड़ी निकालने का काम उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चमोली और बागेश्वर के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में होता है। जिससे दस हजार से ज्यादा लोगो जुड़े हुए है। यह जड़ी दवाओं में पड़ती है। माना जाता है कि चीन इसका इस्तेमाल स्पोर्टस मेडिसिन के लिए करता है। कीड़ा-जड़ी का लाइसेंस वन विभाग के डीएफओ की अनुमति से मिलता है। जिसे भी इससे जुड़ा काम करना है वो वन विभाग की अनुमति से ही कर सकता है। धारचूला और मुनस्यारी के करीब 80,000 लोगों की आजीविका का मुख्य साधन यारसा गंबू का दोहन ही है।  जिस समय बर्फ पिघलनी थी, उस समय बर्फबारी यहां हुई और अब बरसात शुरू होते ही लोग लौटने लगे हैं।
ऐसे में इसके उत्पादन पर फर्क पड़ना लाजमी है। वहीं इसकी कीमत में भी इजाफा देखने को मिलेगा।

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जानकारों के मुताबिक एशिया में हर साल कीड़ा जड़ी का करीब 150 करोड़ रुपये का कारोबार होता है। इस साल इसके कम दोहन होने से लोगों के रोजगार पर काफी असर पड़ने वाला है। पिथौरागढ़ वन विभाग में प्रभागीय वनाधिकारी ने इस बारे में कहा कि इस साल यारसा गंबू के कम उत्पादन की वजह मौसम परिवर्तन ही है। पिछले साल तक समय से हुई बर्फबारी की वजह से इसका ठीकठाक उत्पादन हुआ था। चीन, अमरीका, ब्रिटेन, जापान, थाईलैंड और मलेशिया के अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 50 डॉलर तक हो सकती है। नेपाल सेंट्रल बैंक के एक शोध के मुताबिक जो लोग यारसागुम्बा तलाशते हैं उनकी सालाना आय का 56 फीसदी इसी से आता है। यारसागुम्बा की फसल काटने वाले सभी लोग सरकार को रॉयल्टी चुकाते हैं। जानकारों के मुताबिक, एशिया में हर साल कीड़ा जड़ी का करीब 150 करोड़ रुपये का कारोबार होता है।

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यारसा गंबू पर रिसर्च करने वाले बताते हैं कि इस बार ज्यादा उत्पादन का कारण कोरोना काल में कम हुए दोहन के कारण हुआ है। अगर इसे लिमिटेड मात्रा में ही निकाला जाए, तो यह हमेशा ऐसे ही मिलती रहेग। उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर यारशागंबू का अवैध दोहन हो रहा है। लोग इसके लिए खुदाई भी कर रहे हैं, जिससे आसपास की वनस्पति व जीवों को नुकसान पहुंच रहा है। दवाइयों में उपयोग के लिए जरूरी हो तो इसका नियंत्रित ढंग से दोहन किया जाए। यह भी चिंता का विषय है कि कीड़ाजड़ी का बड़ा बाजार विदेशों में है और विदेशों में भी यह वन संपदा अवैध ढंग से पहुंच रही है।

(लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं)

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