देहरादून/मुख्यधारा
कार्बेट टाइगर रिजर्व के अंतर्गत टाइगर कंजर्वेशन फाउंडेशन में हुए लाखों रुपए गड़बड़झाला (Corruption) मामले में अब दोषी वनाधिकारियों पर मुकदमा दर्ज करने की तैयारी कर दी गई है। इसके लिए वन विभाग के मुखिया ने निर्देश जारी कर दिए हैं।
बताते चलें कि वन विभाग में कार्बेट टाइगर रिजर्व तब मीडिया की सुर्खियों में आ गया था, जब टाइगर कंजर्वेशन फाउंडेशन के 75 लाख 45 हजार रुपए का गड़बड़झाला (Corruption) सामने आया। विभाग की किरकिरी हुई तो इस संबंध में पीसीसीएफ (हॉफ) विनोद कुमार सिंघल के निर्देश पर चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन ने कार्बेट के निदेशक को दोषी वनाधिकारियों के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने के निर्देश दे दिए हैं। अब ऐसे दोषी अधिकारियों व कर्मचारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जाएगी।
कार्बेट निदेशक को जो पत्र भेजा गया है, उसमें लिखा गया है कि पाखरौ टाइगर सफारी में टाइगर बाड़े के साथ ही कई अन्य कार्यों के लिए बीते वर्ष 2021 के नवंबर में 75 लाख 45 हजार रुपए का भुगतान कर दिया गया है। यह भुगतान डायरेक्ट टाइगर कंजर्वेशन फाउंडेशन फॉर सीटीआर के खाते में कर दिया गया, किंतु इसका भुगतान तो प्रभागीय वनाधिकारी (डीएफओ) के खाते में करते हुए वहां से भुगतान होना था। यह भी कहा गया है कि इस कार्य के लिए कोई वित्तीय स्वीकृति लेने की भी जरूरत महसूस नहीं की गई। इसके अलावा संबंधित कार्य के लिए कोई बिल या बाउचर भी पास नहीं करवाए गए हैं।
बताते चलें कि पाखरो टाइगर सफारी और ढेला रेस्क्यू सेंटर में भी कई अनियमितताएं (Corruption) पाई गई हैं। इनमें अवैध कटान से लेकर अवैध निर्माण कार्य भी शामिल हैं।
इसके अलावा गंभीर बात यह भी सामने आई है कि शासन की बगैर परमिशन के ही कार्य करवा दिए गए। अब ऐसे वनाधिकारियों पर शिकंजा कसने की तैयारी कर दी गई है, जिन पर एफआईआर दर्ज करने के साथ ही विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जाएगी। ऐसे में अब ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
बताते चलें कि इन दिनों उत्तराखंड वन विभाग में हड़कंप जैसी स्थिति बनी हुई है। कालागढ टाइगर रिजर्व वन प्रभाग और लैंसडौन वन प्रभाग में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग), उत्तराखंड ने विशेष ऑडिट शुरू किया है। ये दोनों प्रभाग कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के हिस्से हैं। याद रहे कि वर्ष 2021 में कालागढ टाइगर रिजर्व व लैंसडौन वन प्रभाग में अवैध निर्माण और गैर कानूनी पेड़ कटान के आरोपों के बाद दोनों वन प्रभाग चर्चा में बने हुए हैं।
दरअसल इस प्रकरण में हाल ही में पता चला है कि वन विभाग के अधिकारियों ने कालागढ़ टाइगर रिजर्व वन प्रभाग में वित्तीय वर्ष 2020-21 और 2021-22 में बिना प्रशासनिक और वित्तीय अनुमति के कैम्पा और कॉर्बेट टाइगर कंजर्वेशन फाउंडेशन फंड से लगभग पांच करोड़ की धनराशि पाखरो ब्लॉक में टाइगर सफारी के लिए दो बाड़े, सर्विस मार्ग के अलावा कंडी मार्ग पर 1.2 किमी में कल्वर्ट व पुलिया एवं मोरघट्टी, पाखरो व कुगड्डा में भवनों के निर्माण जैसे कार्यों में खर्च कर डाली है।
पता चला है कि इनमें कई कार्यों के लिए कैम्पा मद के उपयोग का प्रावधान ही नहीं है। इसके साथ ही लैंसडौन वन प्रभाग में वर्ष 2020-21 एवं 2021-22 में कैम्पा फंड में उपलब्ध 30.88 लाख की राशि को स्वीकृत गतिविधि से इतर खर्च किया गया। मनमानी की हद ये है कि टाइगर सफारी के अंतिम मास्टर ले-आउट प्लान को न तो केंद्रीय चिडिय़ाघर प्राधिकरण (सेन्ट्रल जू अथॉरिटी) से अनुमोदित कराया गया और न वहां बनाए जाने वाले बाघ बाड़ों के विशेष डिजाइन की अनुमति ही ली गई।
केंद्रीय चिडिय़ाघर प्राधिकरण ने इस संबंध में शासन को पत्र भेजकर जवाब मांगा है। कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के तत्कालीन निदेशक राहुल के साथ ही टाइगर सफारी से जुड़े रहे डीएफओ किशन चंद व अन्य संबंधित अधिकारियों को नोटिस भेजे गए।
चौंका देने वाले इन तथ्यों के सामने आने के बाद वन विभाग के मुखिया, प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ) विनोद कुमार सिंघल ने दोनों प्रभागों में हुए विवादास्पद कार्यों का कैग से विशेष ऑडिट कराने के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा था। शासन के अनुरोध के बाद कैग ने विशेष ऑडिट का काम अपने हाथ में लिया है।
विभागीय सूत्रों का कहना है कि कैग द्वारा मामले से संबंधित सभी दस्तावेज विभाग से मांगे जाने के बाद से ही कई अधिकारियों की नींद उड़ी हुई है।