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धर्मसंकट में फंसे ग्राम प्रधान। शासन का आदेश मानें या झेलें ग्रामवासियों की दुश्मनी!

admin
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प्रवासियों को घर जाने दिया तो नपेंगे प्रधान जी, न जाने दिया तो ग्रामवासियों की दुश्मनी

क्वारेंटाईन केंद्रों में रहने की बजाय घरों में रहने की जिद्द कर रहे हैं बाह्य जनपदों व राज्यों से आये लोग

कुछ लोग बड़े नेताओं से फ़ोन करवा सीधे चले जा रहे हैं अपने घर, प्रधान संगठन परेशान

क्वारेंटाइन केंद्रों में रखे लोग प्रधानों पर ही लगा रहे हैं पक्षपात का आरोप

नीरज उत्तराखंडी/देहरादून

उत्तराखंड के ग्राम प्रधान अजीब धर्मसंकट में फंस गए हैं। कारण यह है कि लॉकडाउन में प्रवासी उत्तराखंडियों की घर वापसी के बाद शासन की ओर से उन्हें ग्राम पंचायतों या निकटवर्ती स्कूलों में क्वॉरेंटाइन करने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि किसी भी ग्रामवासी को कोरोना जैसी महामारी से बचाया जा सके, लेकिन प्रवासी हैं कि प्रधानों की मानने को तैयार ही नहीं है। ऐसे में ग्राम प्रधानों के लिए प्रवासियों को क्वॉरेंटाइन करवाना गर्म दूध जैैैसा बन गया है, जिसे  न तो निगला और न ही थूका जा सकता है।

दरअसल ग्राम प्रधानों को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि बाहर से आने वाले लोगों को अनिवार्य रूप से 14 दिनों तक क्वॉरेंटाइन किया जाएगा। वह भी किसी पंचायत भवन या फिर स्कूल भवन में उनकी व्यवस्था की जाएगी और इस दौरान वे न तो अपने परिजनों से मिलेंगे और न ही अन्य ग्रामीणों से। लेकिन प्रवासी हैं कि प्रधानों की बात को नजरअंदाज करते हुए सीधे अपने घरों में पहुंच जा रहे हैं। ऐसे में किसी अनहोनी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।

उत्तराखंड में आज जिस प्रकार से 4 मरीज उधम सिंह नगर में आए हैं, वह सभी बाहरी राज्यों से आए हैं, उनमें आज कोरोना संक्रमित पाया गया है। इसके अलावा गत दिवस भी दो कोरोना संक्रमित पाए गए थे, वह भी बाहर से ही आए थे। इन उदाहरणों को देखकर जा सकता है कि बाहर से आने वाले लोगों को लेकर यदि ग्रामसभा स्तर में थोड़ी सी भी चूक हुई तो इसका खामियाजा पूरे उत्तराखंड को भुगतना पड़ सकता है। यही नहीं पहाड़ों की शांत वादियों में भी कोरोना का खलल यदि एक बार शुरू हो गया तो इससे निजात पाना इतना आसान नहीं होगा। ऐसे मेें बाहर से आने वाले लोगों की व्यापक स्क्रीनिंग के साथ ही क्वॉरेंटाइन का सख्ती से पालन करवाया जाना भी बहुत आवश्यकता है।

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सवाल यह भी है कि पहाड़ों में अधिकांश घरों में एक ही टॉयलेट और बाथरूम होता है। यदि लोग सीधे अपने घरों में चले जाएंगे तो इससे परिजनों के संपर्क में बाहर से आने वाले लोग अवश्य ही आएंगे और ऐसे में जाहिर है कि क्वॉरेंटाइन का उल्लंघन होगा।

अब उदाहरण के तौर पर उत्तरकाशी जनपद के पुरोला क्षेत्र को ही देख लीजिए। यहां के दर्जनों गांवों में बनें सामुहिक क्वारेंटाइन केंद्रों में रुके हुए लोग ग्राम प्रधानों पर ही पक्षपात का आरोप लगाने लगे हैं। जब कुछ लोग बाह्य जनपदों व राज्यों से आने के उपरांत स्पष्ट दिशा निर्देश न होने से या अपनी राजनीतिक, प्रशासनिक पँहुच होने का फायदा उठा सीधे अपने गांव जाने के बाद अपने घर में चले जा रहे हैं, जिससे ओ लोग प्रधानों पर पक्षपात का आरोप लगा रहे हैं। जो बाह्य राज्यों या जनपदों से अपने गांव पंहुचे और गांव में बने क्वारेंटाइन केंद्रों में नियमों के साथ गुजार रहे हैं। प्रधान संगठन के अध्यक्ष अरविंद पंवार, धरम लाल डोरियाल, अंकित, यशवीर, धर्म सिंह आदि ने बताया कि लोग पता नहीं कैसे किसकी शह पर गैर जिम्मेदाराना काम कर सीधे घरों में पहुंच जा रहे हैं, जिसका खामियाजा हमें अन्य लोगों की तरफ से पक्षपात का आरोप झेल भुगतना पड़ रहा है।

इस संबंध में हम लोग उपजिलाधिकारी से भी मिल कर समस्या से अवगत करवाएंगे और अपनी ओर से सबके लिए एक नियम रखने की मांग करेंगे। यही इस कोरोना महामारी संक्रमण से बचने का सही उपाय है और यदि ऐसे ही चलता रहा तो क्षेत्र के लिए यह एक बड़ा संकट पैदा कर सकता है।

यह तो मात्र एक जगह विशेष का उदाहरण मात्र है। अमूमन यही हाल पूरे प्रदेशभर की ग्राम सभाओं का है, जहां ग्राम प्रधानों को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ग्राम प्रधानों का तर्क है कि एक ओर तो  शासन की ओर से निर्देश दिए गए हैं कि क्वॉरेंटाइन करने की जिम्मेदारी उनकी है, वहीं दूसरी ओर गांव पहुंचने वाले प्रवासी उनकी बात को मानने को तैयार ही नहीं है और वह सीधे अपने घरों में चले जा रहे हैं। कई जगह प्रधानों को ग्रामीणों की दुश्मनी का सामना भी करना पड़ रहा है। ऐसे में प्रधानों के लिए इस बड़ी चुनौती से निपटने के लिए पुख्ता इंतजाम करना आसान नहीं होगा।

कुल मिलाकर राष्ट्रीय विपदा के समय प्रवासी उत्तराखंडियों को चाहिए कि वह नियमों का पालन करते हुए अपने गांव के नियत क्वारंटीन सेंटरों में स्वयं व अपने परिजनों को क्वारंटीन कर ग्राम प्रधानों के साथ ही अपने प्रदेश का सहयोग करें। उनका यह सहयोग ग्रामसभाओं के विकास में महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है। यदि बाहर से आने वाले लोगों ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन न करते हुए थोड़ी भी लापरवाही बरती तो यह धर्मसंकट कोरोना संकट बदलने में ज्यादा देर नहीं लगाएगा।

बहरहाल उत्तराखंड के प्रधान धर्मसंकट में फंसे हुए हैं। अब देखना यह होगा कि वह किस चतुराई से इस धर्मसंकट के किले को भेद पाते हैं।

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