कई औषधीय गुणों का भंडार है घिंघारू (Ghingharu)
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल के पारंपरिक खानपान में जितनी विविधता एवं विशिष्टता है, उतनी ही यहां के फल-फूलों में भी। खासकर जंगली फलों का तो यहां समृद्ध संसार है। यह फल कभी मुसाफिरों और चरवाहों की क्षुधा शांत किया करते थे, लेकिन धीरे-धीरे लोगों को इनका महत्व समझ में आया तो लोक जीवन का हिस्सा बन गए। औषधीय गुणों से भरपूर जंगली फलों का लाजवाब जायका हर किसी को इनका दीवाना बना देता है। घिंघारू नाम वानस्पतिक नाम पाइरेकैन्था क्रेनुलेटा है पादप कुल रोजेसी कुल से संबंधित है। हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में समुद्रतल से 3000 से 6500 फीट की ऊंचाई पर उगने वाले फल घिंघारू जिसे “हिमालयन-फायर-थोर्न” व व्हाईट-थोर्न के नाम से भी जाना जाता है। इसके छोटे-छोटे फल बड़े ही स्वादिष्ट होते हैं, जिसे सुन्दर झाड़ियों में लगे हुए देख सकते हैं।
यह एक ओरनामेंटल झाड़ीदार लेकिन बडी उपयोगी वनस्पति है। पारंपरिक रूप से घिंघारू का फल पौष्टिक एवं औषधीय गुणो से भरपूर होता है तथा कई बिमारियों के निवारण जैसे- ह्रदय संबंधी विकार, हाइपर टेन्शन, मधुमेह, रक्तचाप तथा इसकी पत्तियां एंटीऑक्सीडेंट और
एंटीइन्फलामेट्री गुणों से भरपूर होती है जिसके कारण हर्बल चाय के रूप में भी बहुतायत प्रयुक्त होती है। घिंघारू के छोटे-छोटे फल गुच्छों में लगे होते । हालांकि अगस्त या सितंबर में पकने पर नारंगी या फिर गहरे लाल रंग के हो जाते हैं। ये फल हल्के खट्टे, कसैले और स्वाद में मीठे होते हैं। घिंघारू में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होती है। इसका पौधा मध्यम आकार का होता है और इसकी शाखाएं कांटेदार तथा पत्ते गहरे रंग के होते हैं। यह पौधा 500 से 2700 मीटर की ऊंचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
एंटी आक्सीडेंट, न्यूट्रास्यूटिकल, खनिज लवण, विटामिन, प्री- बायोटीक्स, प्रो-बायोटिक्स महत्वपूर्ण गुणों से भरपूर होता है। घिंघारू के फल में विद्यमान Flavonoids तथा Glycosides की वजह से बेहतरीन anti-inflammatory गुण पाये जाते है।इसके फलों को सुखाकर चूर्ण बनाकर दही के साथ खूनी दस्त के उपचार उपयोग किया जाता है। फलों में पर्याप्त मात्रा में शर्करा पायी जाती है जो शरीर को तत्काल ऊर्जा प्रदान करती है। इसके फलों से निकाले गए जूस में रक्तवर्धक प्रभाव पाया जाता है, जिसका लाभ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में काफी आवश्यक समझा गया है। इन्ही औषधीय गुणों के कारण रक्षा जैव ऊर्जा अनुसंधान संस्थान पिथौरागढ़ द्वारा घिंघारू के फूल के रस से ‘ह्रदय अमृत’ नामक औषधीय तैयार की गयी है। जिसका शाब्दिक अर्थ ही इसकी महत्व को जाहिर करता है कि यह हृदय के लिये अमृत के समान है।
घिंघारू की पत्तियों को गिगों के साथ सेवन किया जाय तो यह दिमाग में रक्त प्रवाह को सुचारू कर स्मरण शक्ति को बढाने में सहायक होता है। ओर्नामेंटल पौधे के रूप में साज-सज्जा के लिए बोनसाई के रूप में प्रयोग करने का प्रचलन रहा है। इस कुल की अधिकाँश वनस्पतियों के बीजों एवं पत्तों में एक जहरीला द्रव्य हाईड्रोजन सायनायड पाया जाता है जिस कारण इनका स्वाद कड़ुआ होता है एवं एक विशेष प्रकार की खुशबू पायी जाती है। अल्प मात्रा में पाए जाने के कारण यह हानि रहित होता है तथा श्वास प्रश्वास की क्रिया को उद्दीपित करने के साथ ही
पाचन क्रिया को भी ठीक करता हैं।
घिंघारू के बीजों एवं पत्तियों में पाए जानेवाले जहरीले रसायन हायड्रोजन सायनायड के कैंसररोधी प्रभाव भी देखे गए हैं। घिंघारू इतने सारे औषधीय गुणों से भरपूर होने के बावजूद भी है अधिकांश लोग अपरचित हैं। जानकारी के अभाव में स्थानीय लोग इसका समुचित लाभ नहीं उठा पाते हैं। यदा कदा इसके फलों को लोग यूं ही स्वाद के लिए खा लेते हैं, परंतु अधिकांश फल या तो पक्षी खाते हैं या फिर सूख कर जमीन पर गिर जाते हैं। जमीन पर गिरे फल और पत्त्तियां सड़कर मिट्टी की उर्वरक शक्ति को बढ़ाने में सहायक साबित होते हैं। इसकी पत्तियों से निर्मित पदार्थ स्किन को जलने से बचाता है। इसे ‘एंटी सनबर्न’ भी कहा जाता है।
इसकी पत्तियां कई एंटी ऑक्सीडेंट सौंदर्य प्रसाधन व कॉस्मेटिक्स बनाने के उपयोग में भी लाई जाती हैं। छोटी झाड़ी होने के बावजूद घिंघारू की लकड़ी की लाठियां और हॉकी स्टिक सर्वश्रेष्ठ मानी जाती हैं। इस वनस्पति का प्रयोग दातून के रूप में भी किया जाता है जिससे दांत दर्द में भी लाभ मिलता है। वनों में यदि बड़ी मात्रा में घिघारू के पेड़ लगाये जायें तथा मडुआ, झंगोरा के बीज छिड़के जाएं, तो खाने की तलाश में जंगली जानवर आबादी की ओर नहीं आयेंगे। घिंघारू के फल औषधि गुणों से भरपूर हैं। हृदय रोगियों के लिए इसका फल रामबाण है। इसके
अलावा खूनी पेचिश, मधुमेह में भी लाभदायक है। इसके तने की लकड़ी की लाठी मजबूत होती है और कृषि यंत्र बनाने में भी उपयोगी है।घिंघारू बहुत अच्छा सौयल बाइंडर है जो भूस्खलन को रोकने में मददगार है। आयुर्वेद की सूची में कई ऐसे पेड़- पौधों का जिक्र है, जिनका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर औषधि बनाने में किया जाता है।
( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )