सुर्खियों में आया था गुमनाम सिलक्यारा!
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
सिलक्यारा सुरंग में भूस्खलन की घटना को आज एक माह पूरा हो गया। तब सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों की जिंदगी बचाने को विभिन्न एजेंसियां 17 दिन तक दिन-रात एक किए रहीं। लेकिन, श्रमिकों के सुरंग से सुरक्षित बाहर आने के बाद से सिलक्यारा में सब-कुछ शांत है। बिल्कुल 12 नवंबर वाली स्थिति है सिलक्यारा सुरंग निर्माण की प्रगति की। उत्तराखंड के उत्तरकाशी की सिलक्यारा निर्माणाधीन सुरंग में बीते 12 नवंबर को हुए भूस्खलन के कारण सन्नाटा पसरा हुआ है। अभी सुरंग निर्माण कार्य शुरू होने को लेकर तस्वीर साफ नहीं है। क्योंकि इस हादसे को लेकर गठित जांच टीम की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है। हालांकि सिलक्यारा सुरंग में भूस्खलन के कारण फंसे 41 श्रमिकों को 17 दिन बाद सुरंग से सकुशल बाहर निकाल लिया गया था। दुनिया के इस सबसे बड़े रेस्क्यू आपरेशन देश-दुनिया के कई विशेषज्ञ लगे हुए थे।अभी इस निर्माणाधीन सुरंग में कार्य बंद है, यहां पर सन्नाटा पसरा हुआ है। सुरंग हादसे की जांच पड़ताल को गठित टीम ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है।
इस घटना से सुरंग के भविष्य को लेकर प्रश्न तो उठने लगे हैं। इसमें सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि सुरंग के जिस हिस्से में भूस्खलन होने से श्रमिक भीतर फंस गए थे, उसका उपचार कैसे और कब होगा? हालांकि इस बारे में केंद्रीय राज्य मंत्री पहले ही कह चुके हैं कि इस सुरंग का काम पूरा किया जाएगा। गौरतलब है कि यमुनोत्री राजमार्ग पर चारधाम आलवेदर रोड परियोजना की निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में 12 नवंबर को हुए भूस्खलन से फंसे 41 श्रमिकों को 17 दिन बाद यानी बीती 28 नवम्बर की सायं को सभी श्रमिकों को सकुशल बाहर निकाल लिया गया था। इसके बाद मेडिकल चेकअप के बाद कंपनी के सभी मजदूर छुट्टी लेकर अपने घर चले गए हैं और कंपनी में पूरी तरह से सन्नाटा का माहौल है।
इस सुरंग में हादसे के बाद उत्तराखंड सरकार ने 6 सदस्यीय विशेषज्ञ कमेटी गठित की थी, उसकी रिपोर्ट का कोई पता नहीं चल रहा है हालांकि सूत्रों का कहना है कि जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है,लेकिन इसमें क्या कुछ कारण पाए गए हैं, इसका खुलासा अभी नहीं किया गया है। फिलहाल रेस्क्यू ऑपरेशन के सफल होने के बाद से वहां पुलिस ने नो एंट्री के बोर्ड लगा रखे हैं। एनएचआइडीसीएल के परियोजना प्रबंधक ने बताया कि सिलक्यारा सुरंग की साइट में चट्टानों की क्षमता कमजोर है। इसे वीक जोन यानी कमजोर भाग भी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि सुरंग में सिलक्यारा की तरफ मुंहाने से 80 से 260 मीटर तक का भाग वीक जोन है। इसकी जानकारी पहले से थी। इसी को देखते हुए वीक जोन की री-प्रोफाइलिंग (सुरंग के कमजोर भाग के उपचार की पद्धति) की जा रही थी। 80 से 120 मीटर तक के भाग पर री-प्रोफाइलिंग कर भी ली गई थी, जबकि इससे आगे के भाग पर यह कार्य चल रहा था, तभी हादसा हो गया।
एनएचडीसीएल के अनुसार अब सुरंग में नया निर्माण तभी शुरू किया जाएगा, जब सुरक्षा के सभी बिंदुओं का समाधान कर लिया जाएगा। सुरंग के सर्वेक्षण के लिए गठित की जा रही तकनीकी समिति में सभी तरह के विशेषज्ञ शामिल किए जाएंगे। इस रेस्क्यू अभियान के दौरान
पुलिस, एनडीआरएफ, बीआर ओ,आरवीईएनएल, एसजेईएन एल, ओएनजीसी , टीएचडीसी, आईटीबीपी आदि दिन-रात जुटी रही। भारतीय वायुसेना के माल वाहन विमानों से चिन्यालीसौड़ हवाई पट्टी पर भारी मशीनों को उतारा गया। इसके अलावा वीवीआईपी मूवमेंट भी लगातार बना रहा, जिसमें करोड़ों की धनराशि खर्च होने का अनुमान है। इस अभियान में कुल कितनी धनराशि खर्च हुई, अभी इसका हिसाब नहीं
हो पाया है। एनएचआइडीसीएल ने नवयुगा कंपनी को इंजीनियरिंग प्रिक्योरमेंट एंड कंस्ट्रक्शन (ईपीसी) मोड में दिया है। इसकी लागत 853.79 करोड़ रुपये है। इस काम को पूरा करने की अंतिम तिथि आठ जुलाई 2022 को थी, जिसे आगे के लिए बढ़ाया गया था यानी इसे फरवरी 2024 तक का समय दिया गया है। इस सुरंग की 4.5 किमी लंबाई है।
अनुबंध के शर्तों के अनुसार निर्माण कंपनी को डिजाइन से लेकर सभी कार्य स्वयं करने होते हैं और तमाम कार्यों में किसी भी तरह की खामी के लिए निर्माण कंपनी सीधे तौर पर जिम्मेदार होती है। सुरंग निर्माण का कार्य सिलक्यारा और बड़कोट, दोनों ओर से बंद पड़ा है। सिलक्यारा
की ओर से सुरंग के पास पुलिस का पहरा है, लेकिन सन्नाटा तो तभी टूटेगा, जब चारधाम परियोजना की इस सुरंग पर दोबारा कार्य शुरू होगा। हालांकि, सुरंग में खुली कैविटी का उपचार कब से शुरू होगा, इसमें कितना समय लगेगा, कौन-सी एजेंसी उपचार करेगी और कैविटी उपचार के लिए बजट का प्रविधान क्या होगा, इन सवालों के जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं हैं। बार-बार ढहनेवाली सिलक्यारा की सुरंग को लेकर सूत्रों का कहना है कि एक रिपोर्ट कहती है कि क्षेत्र के चुनौतीपूर्ण भूविज्ञान और महत्वपूर्ण चट्टान विरूपण के कारण सुरंग कई बार ढह चुकी है।
इस महत्वपूर्ण परियोजना के लिए कोई ‘पर्यावरण आकलन प्रभाव’ अध्ययन न किया जाना, पहले से ही मौजूद चिंताओं में शामिल होने की
संभावना है।रिपोर्ट में बताया गया है कि सुरंग निर्माण कर रही नवयुग इंजीनियरिंग को डिजाइन सेवाएं प्रदान करने वाली यूरोपीय कंपनी बर्नार्ड ग्रुपे ने पहले ही कहा था कि (सुरंग स्थल पर) भूवैज्ञानिक स्थितियां निविदा दस्तावेजों में अनुमान से अधिक चुनौतीपूर्ण साबित हुई हैं। ये लेखक के अपने विचार हैं।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )
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