आज बदहाली के आंसू रो रहा सीमांत इंजीनियरिंग कॉलेज (Engineering College)
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के सीमांत जिले पिथौरागढ़ के छात्रों को तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाने में मकसद से बनाया गया सीमांत इंजीनियरिंग निर्माण के बाद से ही विवादों में रहा है। इस बार फर्स्ट ईयर में अभी तक एडमिशन न होने के कारण यह फिर सुर्खियों में आ गया है। एडमिशन न होने की वजह इंजीनियरिंग कॉलेज का एआईसीटीई के नॉर्म्स को पूरा न किया जाना है। 2011 में शुरू हुआ सीमांत इंजीनियरिंग कॉलेज 2018 तक उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय के कैंपस के रूप में संचालित हो रहा था, लेकिन उसके बाद इस कॉलेज का अपना भवन बना लिए जाने के दावे के बाद इसे एआईसीटीई की मान्यता की जरूरत पड़ गई।कॉलेज का भवन करोड़ों की लागत से मदधुरा में बनकर तैयार भी हो गया, उसके बाद इसमें खामियां नजर आने लगीं और फिर से इंजीनियरिंग कॉलेज के अपने भवन का मामला लटक गया।
निर्माण के बाद से ही सीमांत का इंजीनियरिंग कॉलेज सफेद हाथी बनकर रह गया है, जिससे यहां पढ़ने वाले छात्रों को वो सब सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं, जो एक इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों को मिलनी चाहिए. इस बीच शासन ने मढ़धूरा गांव में करीब सात हेक्टेयर भूमि इसके नाम आवंटित कर करोड़ों की लागत से भवन का निर्माण भी करा दिया। हालांकि भवन की गुणवत्ता पर खुद प्रशासन की ओर से ही सवाल खड़े किए गए हैं। इसकी जांच भी कराई गई है। इस दौरान जांच कमेटी के सदस्यों द्वारा भवन की वर्तमान स्थिति आदि का जायजा लिया।इस दौरान जिलाधिकारी ने कमेटी के सदस्य लोनिवि के अधिशासी अभियंता को दो दिन के भीतर भवन में वर्तमान तक हुए कुल कार्य व क्षति का आंकलन कर रिपोर्ट उपलब्ध कराएं, साथ ही सदस्य भू वैज्ञानिक से भी भवन क्षेत्र का वर्तमान स्थिति के अनुसार भू सर्वेक्षण कर रिपोर्ट उपलब्ध कराने के निर्देश दिए ताकि निरीक्षण के साथ ही सम्पूर्ण जांच रिपोर्ट शासन को भेजी जा सके।
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हाईकोर्ट ने पिथौरागढ़ में इंजीनियरिंग कॉलेज का संचालन मड़धूरा में करने के मामले में स्वतः संज्ञान लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार तिवारी और न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा ने निदेशक सीमांत इंजीनियरिंग कॉलेज, निदेशक भूतत्व व खनिकर्म एवं कार्यदायी संस्था यूपी निर्माण निगम को पक्षकार बनाते हुए तीन सप्ताह में प्रति शपथपत्र दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।मामले के अनुसार मड़धूरा में इंजीनियरिंग कॉलेज के निर्माण के लिए यूपी निर्माण निगम ने 14 करोड़ रुपये से अधिक धन खर्च किया है। अब यहां पर भूस्खलन का खतरा है। इसलिए अब इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए नई जगह तलाशी जा रही है।चिका में कहा गया कि मड़धूरा में सीमांत इंजीनियरिंग कॉलेज के निर्माण के लिए स्थानीय लोगों ने अपने चारागाह, जंगल और अन्य नाप भूमि दान में दी। अब सरकार इस जगह को सुरक्षित नहीं मान रही।
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मड़धूरा में कॉलेज के लिए बने भवन के आसपास हो रहे भूस्खलन को रोकने के लिए सुरक्षात्मक कार्य कराने की भी मांग की है। इंजीनियरिंग कॉलेज के चारों ओर जमीन धंस रही है और पीछे से भूस्खलन होने के कारण कॉलेज के अंदर काफी मिट्टी भर गई है। पिथौरागढ़ में मड़धूरा के जंगल में सरकार ने 14.19 करोड़ रुपये खर्च कर सीमांत इंजीनियरिंग कॉलेज बनाया।इसके अलावा हॉटमिक्स सड़क का निर्माण कराया गया। भवन का 90 प्रतिशत से अधिक कार्य होने के बाद भी कक्षाओं का संचालन जीआईसी के भवन में किया जा रहा है। टीम नवनिर्मित भवन की वास्तविक स्थिति देखने के लिए पहुंची तो तस्वीरें चौकाने वाली थी। इंजीनियरिंग कॉलेज के पीछे से हुए भूस्खलन से अंदर मिट्टी भरी मिली। भवन की सुरक्षा के लिए यहां पर तीन गार्ड तैनात किए गए हैं।
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टीम इंजीनियरिंग कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए बनाई गई वर्कशाॅप में पहुंची तो यहां पर लाखों की लागत से खरीदे गए उपकरण कीचड़ में दबे पड़े थे। इसके बाद टीम निदेशक के कक्ष में पहुंची तो यहां पर निदेशक की कुर्सी और टेबल भी कीचड़ से दबे हुए थे। एक सुरक्षा कर्मी ने बताया कि यहां कोई देखने नहीं आता है। इस कारण भवन और जर्जर हो गया है। लोगों का कहना है कि इस तरह जनता के टैक्स के रुपये
बर्बाद करने की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। सीमांत इंजीनियरिंग कॉलेज लापरवाही की भेंट चढ़ता जा रहा है। लाखों की लागत से बच्चों के प्रयोग के लिए खरीदे गए उपकरण भी पड़-पड़े खराब हो रहे हैं। इंजीनियरिंग कॉलेज के चारों ओर जमीन धंस रही है और पीछे से भूस्खलन होने के कारण कॉलेज के अंदर काफी मिट्टी भर गई है। यह इंजीनियरिंग कॉलेज पूर्व कैबिनेट मंत्री स्व. प्रकाश पंत का ड्रीम प्रोजेक्ट था जिसे वर्ष 2011 में स्वीकृति मिली थी।
सरकार से कॉलेज के लिए वर्ष 2014 में 14.19 करोड़ रुपये मिले। कार्यदायी संस्था यूपी निर्माण निगम ने दो ब्लाॅक का 90 प्रतिशत कार्य पूरा कर लिया। निर्माणाधीन क्षेत्र में चारों ओर से भूस्खलन होने से और जमीन के धंसने से पूरा भवन खतरे की जद में है। इसके बाद भी इसे बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि इतने बड़े कॉलेज का निर्माण करने से पहले ये बातें क्यों नहीं सोची गयी? निर्माण एजेंसियों और प्रशासन को जब यहां निर्माण नहीं हुआ था तब यह कमियां नजर क्यों नहीं आयी? करोड़ों रुपये बर्बाद करने की आखिर जरूरत क्या थी? इन सवालों की वजह से पिथौरागढ़ का इंजीनियरिंग कॉलेज जो पहले से विवादों में रहा है इंजीनियरिंग कॉलेज भवन को भ्रष्टाचार की जिंदा मिसाल बताया है और कहा कि अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की गलत नीतियों के कारण यहां सरकारी धन का जमकर दुरुपयोग किया गया है।
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जिन ग्रामीणों ने गांव की भूमि क्षेत्र के विकास के लिए दान में दी आज वह खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। इंजीनियरिंग कॉलेज के भवन की ये स्थिति देखकर सवाल उठना तो लाजमी है ही क्योंकि पिथौरागढ़ में विकास के नाम पर किस तरह सरकारी धन का दुरूपयोग किया जाता है यह जगजाहिर हो गया है। चर्चा का विषय बना हुआ है।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )