उत्तराखंड में आमड़ा (Amra) फल कई मामलों में खास  - Mukhyadhara

उत्तराखंड में आमड़ा (Amra) फल कई मामलों में खास 

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उत्तराखंड में आमड़ा (Amra) फल कई मामलों में खास 

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

आमड़ा फल कई मामलों में खास है। दिखने में भले ही यह आम जैसा लगे लेकिन यह आकार में छोटा, अंडाकार,कम गूदेदार और खट्टा होता है।इन कारणों से यह चाहे अपने भीतर कितने भी पोषक और चिकित्सीय गुण समेटे हो और चाहे यह देश के सभी हिस्सों में भी आसानी से मिल जाता हो, लेकिन बहुत कम लोगों के आहार में यह नियमित जगह बनाता है। हमारे पूर्वज हमसे ज्यादा होशियार थे और परंपरागत भोजन में यह खट्टा फल किसी न किसी रूप में शामिल कर लेते थे। पश्चिमी घाट, खासकर गोवा और कोंकण क्षेत्र में आमड़ा (हॉग प्लम) शाकाहारी
व मांसाहारी भोजन में खटाई के रूप में इस्तेमाल होता है। गोवा में मिली-जुली सब्जी खटखटे बनाने में इसका खूब इस्तेमाल होता है।

पश्चिम बंगाल में खट्टी-मीठी चटनी और केरल में अचार बनाने में भी इसका इस्तेमाल प्रचलन में है। हिंदी में यह फल आमड़ा या अंबारा, मराठी में अंबाड़ा और कोंकणी में अंबाड़े या अंबाड़ो के नाम से लोकप्रिय है। वैज्ञानिक भाषा में इसे स्पोंडियास पिनाटा कहा जाता है। स्पोंडियास, एनाकारडिएसी परिवार का सदस्य है जिसमें महंगे काजू और लोकप्रिय आम भी शामिल हैं। इस जीनस का अच्छी तरह से अध्ययन नहीं किया गया है। कुछ शोधकर्ता भारतीय किस्म स्पोंडियास पिनाटा को अलग रखते हैं, जबकि अन्य ने इसे स्पोंडियास डलसिस के भीतर एक किस्म के रूप में शामिल किया है। स्पोंडियास पिनाटा खट्टा होता है जबकि स्पोंडियास डलसिस थोड़ा मीठा, बड़ा और गूदेदार होता है। इसका पेड़ लगभग 25 मीटर की ऊंचाई तक पहुंच सकता है। यह भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि मलेशिया, इंडोनेशिया और बाली जैसे ऊष्ण- कटिबंधीय देशों में भी ये आराम से मिलता है।

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मेक्सिको के तेहुआकान घाटी में तो स्पोंडियास का 6,500 ईसा पूर्व के उपयोग का भी इतिहास है।चाहे आमड़ा कितना भी लोकप्रिय हो पर विज्ञान अब तक स्पष्ट नहीं कर पाया है कि लोग खट्टा भोजन क्यों खाते हैं। एक सिद्धांत के अनुसार, सबसे पहले मछली में एसिडिक पीएच को पहचानने के रिसेप्टर विकसित हुए। एसिडिक पीएच पानी को खट्टा सा बना देता है। प्राचीन मछलियों के पूरे शरीर में रिसेप्टर्स की संभावना है जिससे उन्हें प्रतिकूल पर्यावरण पहचानने में मदद मिलती थी। बाद के विकासक्रम में ये रिसेप्टर स्थलीय जीव में आ गए और शायद इंसानों में जीभ तक ही सीमित रह गए। हमारी स्वाद की क्षमता सेहत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

हमारा दिल मीठा भोजन खाने को शायद इसलिए करता है क्योंकि इससे हमारी कैलोरी की जरूरत पूरी होती है। नमकीन भोजन द्रव्य संतुलन बनाए रखने में मदद करता है और उमामी भोजन ऊतकों के टूटने से निपटने के लिए आवश्यक प्रोटीन की खपत सुनिश्चित करता है। इसी तरह खट्टा भोजन भी लाभ प्रदान करता है। हालांकि ज्यादा खट्टा या जहरीला फल सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है।आमड़ा पोषक तत्वों का महत्वपूर्ण स्रोत है। यह फेनोलिक यौगिकों, प्राकृतिक एंटीऑक्सिडेंट और खनिजों में समृद्ध है। इसमें एस्कॉर्बिक एसिड, मैलिक एसिड, कैल्शियम और फास्फोरस होता है जो फल की पोषण और औषधीय उपयोगिता की पुष्टि करते हैं।

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यह शोध जर्नल फूड रिसर्च इंटरनेशनल में अगस्त 2021 में प्रकाशित हुआ था। इस फल में औषधीय गुण भी हैं। यह पाचन में सहायता करता
है। हाल के अध्ययनों ने यह भी संकेत दिया है कि यह कैंसर के इलाज में मदद कर सकता है। फलों के अर्क का उपयोग हेमेटाइट नैनोकणों को प्रभावी तरीके से तैयार करने के लिए किया गया था। भारत और वियतनाम के शोधकर्ताओं के अनुसार, ये प्रयोगशाला में कैंसर कोशिकाओं को नियंत्रित करने में काफी सफल पाए गए। अध्ययन के नतीजे एनवायरमेंट रिसर्च जर्नल में नवंबर 2022में प्रकाशित होने वाले हैं।आमड़ा की उपयोगिता फलों तक सीमित नहीं है। इसके बीजों में ऐसे यौगिक होते हैं जो मस्तिष्क मलेरिया का कारण बनने वाले प्लास्मोडियम बरघी जैसे परजीवियों को दबाने में मदद करते हैं।

थाइलैंड के शोधकर्ताओं ने 16 मार्च 2022को बीएमसी कॉम्प्लीमेंट्री मेडिसन एंड थेरेपीज जर्नल में कहा है कि इसके सक्रिय तत्वों को पहचानने और समझने के लिए अध्ययन की आवश्यकता है। इसके पत्तों में मधुमेह रोधी गुण होते हैं।बाली देश में पत्तियों का उपयोग मधुमेह के उपचार में किया जाता है। यहां पत्तियों की हाइपोग्लाइसेमिक गतिविधि का चूहों पर मूल्यांकन किया गया था और पाया गया कि पत्ती का अर्क मधुमेह की दवा मेटफॉर्मिन जितना प्रभावी था। यह अध्ययन नेपाल और ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया था और साइंटिफिक वर्ल्ड जर्नल में प्रकाशित हुआ था। इंसानों में खट्टा खाने की मिली- जुली प्रतिक्रिया होती है। कई लोग सेवन से बचते हैं तो कुछ लोग खट्टे भोजन का सेवन इसलिए नहीं करते क्योंकि यह सूजन पैदा कर सकता है। पर यहीं यह भी पाया गया है कि आमड़ा के पेड़ की छाल का अर्क म्यूकोसाइटिस के
विकास के दौरान होने वाले ऑक्सीडेटिव और ज्वलनशील परिवर्तनों से बचाता है जिसमें मुंह और आंत में सूजन हो जाती है।

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कीमोथेरेपी प्राप्त करने वाले लोगों में म्यूकोसाइटिस आम है और कर्नाटक के शोधकर्ताओं ने जुलाई 2021 में वेटरनरी वर्ल्ड पत्रिका में बताया कि कीमोथेरेपी के दौरान बीमारी के बोझ को कम करने के लिए अर्क का उपयोग किया जा सकता है। ऐसी तमाम खूबियों के बावजूद लोग आमड़ा को ज्यादा नहीं खाते। लोगों को तो वही खाना है जिसका स्वाद उनकी जीभ पर चढ़ा है। उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल के पारंपरिक खानपान में जितनी विविधता एवं विशिष्टता है, उतनी ही यहां के फल-फूलों में भी। खासकर जंगली फलों का तो यहां समृद्ध संसार है।

यह फल कभी मुसाफिरों और चरवाहों की क्षुधा शांत किया करते थे, लेकिन धीरे-धीरे लोगों को इनका महत्व समझ में आया तो लोक जीवन का हिस्सा बन गए। औषधीय गुणों से भरपूर जंगली फलों का लाजवाब जायका हर किसी को इनका दीवाना बना देता है। जंगली फलों की क्वालिटी विकसित कर इनकी खेती की जाए और इसके लिए मिशन मोड में कार्ययोजना तैयार करने की जरूरत है। वह जंगली फलों को क्रॉप का दर्जा देने की पैरवी भी करते हैं। उपेक्षा का दंश झेल रहे जंगली फलों को महत्व है। सरकार को लोगों को आसानी से विपणन उपलब्ध कराने की व्यवस्था बनानी होगी।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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