उत्तराखंड के दावेदारों को नहीं मिलेगा वीरता पुरस्कार (bravery awards) - Mukhyadhara

उत्तराखंड के दावेदारों को नहीं मिलेगा वीरता पुरस्कार (bravery awards)

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उत्तराखंड के दावेदारों को नहीं मिलेगा वीरता पुरस्कार (bravery awards)

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

हौसला किसी उम्र का मोहताज नहीं होता है। ये बात हमारे इन नन्हे वीरों पर बिल्कुल सटीक बैठती है। इन्होंने ये साबित कर दिया कि अगर आपके दिल में बहादुरी और साहस हो, तो इस दुनिया की कोई भी मुसीबत आपको हरा नहीं सकती।’वीरता पुरस्कार’ बहादुर बच्चों को उचित पहचान देने के लिए शुरू किया था। 1957 में दो बच्चों को भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनकी साहस के लिए पुरस्कृत किया गया था। इसके बाद से ICCW हर साल बहादुरी का प्रदर्शन करने वाले बच्चों को राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करता है। बाल अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन ICCW ने 17 राज्यों के 56 बहादुर बच्चों को वीरता पुरस्कार से नवाजा। 1957 में दो बच्चों को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उनकी साहस के लिए पुरस्कृत किया गया था।

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उत्तराखंड में एक नहीं कई ऐसे बहादुर बच्चें हैं जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर दूसरों की जान बचाई है। लेकिन इनमें से एक भी बच्चे को इस बार राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार नहीं मिलेगा।बागेश्वर जिले के जीआईसी अमस्यारी के छात्र भाष्कर परिहार का नाम राज्य बाल कल्याण परिषद को वीरता पुरस्कार के लिए भेजा गया था। उसने 24 अगस्त 2023 को एक छात्रा की गुलदार से जान बचाई थी। बताया गया कि इस आवेदन को जांच के लिए सीईओ को भेजा गया, लेकिन अब तक उसकी जांच रिपोर्ट ही नहीं मिली।

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भगवानपुर तहसील के मानक मजरा गांव में 17 मई 2023 को छोटे भाई के साथ नदी किनारे घास काट रहा था। इसी दौरान गुलदार ने छोटे भाई पर हमला बोल दिया। इस पर नवाब ने गुलदार को पीछे से पकड़कर पलटी दे मारी। इस पर गुलदार उसकी ओर झपटा और बांह व हाथों में पंजे व दांत गड़ा दिए। दोनों भाइयों के शोर मचाने पर गुलदार भाग गया। दोनों घायल भाइयों को पहले सिविल अस्पताल और फिर एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराया गया था। 25 सितंबर को आराधना (10) छोटे भाई प्रिंस (7) संग बरामदे में पढ़ रही थी। तभी गुलदार प्रिंस पर हमला कर देता है। इससे आराधना नहीं, बल्कि भाई को बचाने के लिए गुलदार से भिड़ गई। उसने मेज गुलदार की ओर फेंककर भाई को अंदर धकेल दिया और जोर-जोर से चिल्लाने लगी। इससे गुलदार प्रिंस को छोड़कर भाग गया था। केवल बागेश्वर से जिस बच्चे का आवेदन आया, सीईओ ने उसकी जांच ही नहीं की। इसलिए 26 जनवरी को उत्तराखंड से कोई भी बच्चा राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार नहीं मिलेगा।

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उत्तराखंड के बहादुर बच्चों ने अपनी जान पर खेलकर दूसरों की जान बचाई है।इस बार इनमें से किसी भी बच्चे को राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार नहीं मिलेगा। इसका कारण यह है कि ऐसे बच्चों के आवेदन अंतिम तिथि तक नहीं भेजे गए थे।राज्य बाल कल्याण परिषद ने कहा कि उत्तराखंड के वीर बच्चों को गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार भी मिल सकता है. इसके लिए राज्य के एसएसपी, डीएम, सीईओ और शिक्षा विभाग के निदेशक को कई पत्र भेजे गए हैं।एक जुलाई 2022 से 30 सितंबर 2023 के बीच वीरता का प्रदर्शन करने वाले छह से 18 वर्ष के बच्चों के नाम परिषद को भेजे गए। बहादुर बच्चों के आवेदन, परिषद की महासचिव के अनुसार, 31 अक्तूबर 2023 तक किसी भी जिले से नहीं भेजे गए।

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बागेश्वर जिले के जीआईसी अमस्यारी के छात्र भाष्कर परिहार का नाम राज्य बाल कल्याण परिषद को वीरता पुरस्कार के लिए भेजा गया था, लेकिन कोई जांच नहीं हुई। 24 अगस्त 2023 को, उसने एक छात्रा को एक गुलदार से बचाया था। बताया गया कि इस आवेदन को सीईओ को
जांच के लिए भेजा गया था, लेकिन अभी तक कोई जांच रिपोर्ट नहीं मिली है। उत्तराखंड में एक नहीं कई ऐसे बहादुर बच्चें हैं अपनी जान की चिंता न किए बिना दूसरों की जान बचाई है। लेकिन इनमें से एक भी बच्चे को इस बार National Bravery Award नहीं मिलेगा और वह भी ऐसा इसलिए क्योंकि अंतिम तिथि तक ऐसे बच्चों के आवेदन ही नहीं भेजे गए। ऐसा इसलिए क्योंकि अंतिम तिथि तक ऐसे बच्चों के आवेदन ही नहीं भेजे गए।

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राज्य बाल कल्याण परिषद के मुताबिक उत्तराखंड के बहादुर बच्चों को भी गणतंत्र दिवस के दिन राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार मिल सके, इसके लिए जिलों के एसएसपी, डीएम, सीईओ, शिक्षा विभाग के निदेशक को कई बार पत्र भेजे।कहा गया कि छह से 18 वर्ष के उन बहादुर बच्चों के नाम परिषद को भेजें, जिन्होंने एक जुलाई 2022 से 30 सितंबर 2023 के बीच वीरता का प्रदर्शन किया हो। परिषद की महासचिव बताती हैं कि बावजूद इसके बागेश्वर को छोड़कर अन्य किसी जिले से अंतिम तिथि 31 अक्तूबर 2023 तक बहादुर बच्चों के आवेदन नहीं भेजे गए।

( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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