एवरेस्ट विजेता स्व० सविता कंसवाल (Savita Kanswal) - Mukhyadhara

एवरेस्ट विजेता स्व० सविता कंसवाल (Savita Kanswal)

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एवरेस्ट विजेता स्व० सविता कंसवाल (Savita Kanswal)

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

हौसला अगर पहाड़ से भी ऊंचा तो विपरीत परिस्थितियां भी आखिरकार घुटने टेक ही देती है। इसी हौसले की मिसाल हैं उत्तरकाशी जिले के लौंथरू गांव निवासी सविता कंसवाल। सविता का चयन इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन (आइएमएफ) के माउंट एवरेस्ट मैसिव एक्सपिडीशन के लिए हो चुका है।उत्तराखंड के लिए आज जहां एक और गर्व का पल था तो वहीं हर आंख नम थी।आज राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिल्ली में पर्वतारोही स्वर्गीय सविता कंसवाल को मरणोपरांत “तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहस पुरस्कार-2022” से सम्मानित किया।

बता दें कि एवरेस्ट विजेता सविता कंसवाल द्रौपदी का डांडा (डीकेडी) हिमस्खलन त्रासदी में जान गंवाने वाली बेटियों के लिए हमेशा प्रेरणा बनी रहेंगी। विपरीत परिस्थितियों के बीच सविता ने कड़े संघर्ष से अपनी पहचान बनाई और 12 मई 2022 को माउंट एवरेस्ट व इसके ठीक 16 दिन बाद माउंट मकालू पर्वत (8463मीटर) पर सफल आरोहण किया। इस राष्ट्रीय रिकॉर्ड को बनाने वाली सविता पहली भारतीय महिला थी। लेकिन वह इतनी जल्दी दुनिया को अलविदा कह गई। सविता को मरणोपरांत तेनजिंग नॉरजे पुरस्कार मिलने पर क्षेत्र के लोगों ने खुशी जताई है। उनका कहना है कि छोटे से गांव की सविता कंसवाल ने उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि देश दुनिया में भारत का नाम ऊंचा किया है। सविता का बचपन कठिनाइयों में गुजरा। सविता के पिता घर का गुजारा करने के लिए पंडिताई का काम करते हैं। सविता चार बेटियों में सबसे छोटी थी, अन्य तीन बहनों की शादी हो चुकी हैं।

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गेस्ट प्रशिक्षक के पद पर नियुक्ति मिलने के बाद उनकी परिवार की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आया। उन्होंने बहन की शादी के लिए 70 वर्षीय पिता की आर्थिक मदद की। साथ ही मिट्टी के पुराने घर की मरम्मत कर शौचालय भी बनवाया। सविता कहती हैं, महिलाएं किसी भी मामले में पुरुषों से कमजोर नहीं हैं। मैंने हमेशा अपने कार्यक्षेत्र में मेहनत के बल पर मुकाम हासिल किया है। बचपन में आर्थिक तंगी भी देखी है और भाई न होने के कारण पुरुष प्रधान समाज का दंश भी ङोला है। ऐसे में मैं अपने माता-पिता को महसूस नहीं होने देती कि उनके कोई बेटा नहीं है। किसी तरह पैसे जुटाकर सविता ने साल 2013 में नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग यानी निम उत्तरकाशी से माउंटेनियरिंग में बेसिक और फिर एडवांस कोर्स किया। इसके लिए उसने देहरादून में नौकरी भी की। एडवेंचर खेलों में उत्तराखंड का नाम रोशन करने वाली उत्तरकाशी की बेटी सविता कंसवाल को मरणोपरांत तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार 2022 दिया गया।

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सविता के पिताजी राधेश्याम कंसवाल ने ये पुरस्कार ग्रहण किया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जिस वक्त सविता के पिताजी को सम्मानित कर रही थी ,तभी वहां मौजूद लोगों की आंखें भर आई। अशोक हॉल में अवार्ड ग्रहण करने के लिए सविता की मां कमलेश्वरी देवी भी पहुंची थीं। भावुकता और गर्व के अहसास के साथ सविता के पिताजी ने राष्ट्रपति से यह पुरस्कार ग्रहण किया। पुरस्कार पाते ही मां कमलेश्वरी देवी की आंखें छलक उठी उनके साथ बैठे अन्य लोग भी भावुक हो उठे। उत्तरकाशी, भटवाड़ी तहसील के लौंथरू गांव की सविता कंसवाल ने 12 मई 2022 को माउंट एवरेस्ट (8,848.86 मीटर) फतह किया था। इसके 16 दिन बाद 28 मई को माउंट मकालू पर्वत (8,463) मीटर पर सफल आरोहण किया था। 16 दिन के अंतराल में माउंट एवरेस्ट और माउंट मकालू का आरोहण करने वाली सविता देश की पहली महिला थीं। इससे पहले सविता ने 2 जून 2021 में विश्व की चौथी सबसे ऊंची चोटी माउंट ल्होत्से (8,516 मीटर) भी फतह किया था।

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पहाड़ की डेयरडेविल बेटी के लिए 4 अक्टूबर 2022 का दिन काल साबित हुआ, जब उत्तरकाशी में द्रौपदी का डांडा चोटी के आरोहण के दौरान 21 सदस्यीय पर्वतारोही का दल एवलांच की चपेट में आ गया था। जिसमें सविता कंसवाल की भी बर्फ में दबकर मौत हो गई थी। यह एवलांच पर्वतारोहण के इतिहास में काला दिन माना जाता है के रूप में काम कर रही थीं। 25 साल की कंसवाल उत्तरकाशी के लोंथरू गांव 4  किलोमीटर की चढ़ाई करती थीं। उन्होंने अपने स्कूल में एक साहसिक पाठ्यक्रम लिया जिसने उनके लिए पर्वतारोहण की दुनिया खोल दी। कंसवाल हमारे उन बच्चों को प्रेरित करते रहते हैं जो अपने असीमित सपनों की ऊंचाइयों को छूना चाहते हैं।

अपराजित आकांक्षाओं और साहस की याद के रूप में, हम कंसवाल के प्रेरक जीवन को दुनिया के देखने के लिए एक वृत्तचित्र में संरक्षित करना चाहते हैं। चार अक्तूबर 2022 को उत्तरकाशी में द्रौपदी का डांडा चोटी के आरोहण के दौरान 29 सदस्यीय पर्वतारोही दल हिमस्खलन की चपेट में आ गया था। इसमें सविता की भी बर्फ में दबकर हमेशा के लिए अपनों से दूर हो गई थी। दिन का हृदयस्पर्शी क्षण, यह अत्यंत भावनात्मक और गर्व से भरा क्षण है जब राधे श्याम कंसवाल ने अपनी दिवंगत बेटी सविता कंसवाल की ओर से लैंड एडवेंचर में तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार 2022 स्वीकार किया। सविता 16 दिनों की अवधि में माउंट एवरेस्ट और माउंट मकालू पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बनीं।

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पर्वतारोहण में एक दशक लंबे करियर के साथ, उन्होंने कर्तव्य की पंक्ति में अदम्य साहस, दृढ़ संकल्प और सहनशक्ति का प्रदर्शन किया और वीरता प्रदर्शित की। मैं उनके अमूल्य योगदान को सलाम करता हूं।&ह्नह्वशह्ल; स्थानीय जनों की मांग पर मुख्यमंत्री ने सविता के नाम पर मनेरी इंटर कॉलेज का नामकरण करने की घोषणा की। इस पर शिक्षा विभाग कार्यवाही कर रहा है। विदित हो कि डीकेडी हिमस्खलन हादसे में निम ने अपने 29 युवा पर्वतारोहियों को खो दिया था।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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