भारत (India) ने पाक को घुटने टेकने पर किया था मजबूर
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
प्रदेश में विजय दिवस के कार्यक्रमों में देश के लिए बलिदान देने वाले वीरों को श्रद्धांजलि दी जाएगी। ठीक 53 साल पहले वर्ष 1971 के भारत-पाक में सेना ने दुश्मन के 93 हजार सैनिकों को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया था।भारत में हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1971 में आज ही के दिन भारतीय सेना ने पाकिस्तान के खिलाफ ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। 16 दिसंबर 1971 की ऐतिहासिक जीत की खुशी आज भी हर देशवासी के दिल में जोश और उत्साह भर देती है। 1971 में आज ही के दिन भारतीय सेना की बहादुरी के सामने पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया था और बांग्लादेश को आजादी मिली थी। यह युद्ध 13 दिनों तक चला।
आज पूरा देश ऐतिहासिक जीत के नायक रहे भारतीय सेना के वीर जवानों की वीरता और बलिदान को सलाम कर रहा हैदरअसल,बंटवारे के वक्त भारत के दो हिस्से पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान के नाम पर अलग हो गए थे।बंगाल का एक बड़ा भाग पूर्वी पाकिस्तान के नाम
से जाना जाता था। पश्चिमी पाकिस्तान की सरकार पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर अत्याचार करती रही। पूर्वी पाकिस्तान से लेकर पश्चिमी पाकिस्तान तक 24 साल तक जुल्म सहा। पूर्वी पाकिस्तान के स्वतंत्रता संग्राम में भारत ने उनका साथ दिया। युद्ध में भारत की जीत के साथ पूर्वी पाकिस्तान स्वतंत्र हो गया और बांग्लादेश बन गया। 1970 में पाकिस्तान में आम चुनाव हुए। इस चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान अवामी लीग के नेता शेख मुजीबुर रहमान मशहूर हो गए। जिन्होंने सरकार बनाने का दावा पेश किया था. लेकिन यहां पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेता ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो चिढ़ गए जिन्होंने पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के लोगों को एक-दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया। इस बीच तनाव इतना बढ़ गया कि अत्याचार बढ़ने लगे।
16 दिसंबर 1971 को मनाया गया विजय दिवस भारत के सैन्य इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह दिन भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान पर भारतीय सशस्त्र बलों की जीत का जश्न मनाता है। बांग्लादेश का जन्म 1971 में भारत- पाकिस्तान युद्ध से हुआ था। यह दिन सैनिकों के बलिदान का सम्मान करने और उस जीत का जश्न मनाने के लिए मनाया जाता है जिसने दक्षिण एशिया के मानचित्र को नया आकार दिया। विजय दिवस पर भारत उस महत्वपूर्ण क्षण को याद करता है जब जनरल नियाज़ी ने 93,000 सैनिकों के साथ भारतीय सेना और बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। इस आत्मसमर्पण को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे महत्वपूर्ण सैन्य आत्मसमर्पणों में से एक के रूप में चिह्नित किया गया है, जो विपरीत परिस्थितियों में भारत की जीत का प्रतीक है।विजय दिवस को भारत और बांग्लादेश दोनों में परेड और महत्वपूर्ण कार्यक्रमों द्वारा चिह्नित किया जाता है।
अपने ऐतिहासिक महत्व से परे, यह दिन दोनों देशों के बीच साझा इतिहास और सहयोग की स्थायी भावना की याद दिलाता है। जैसे ही छात्र विजय दिवस पर विचार करते हैं, उन्हें 1971 के युद्ध के दौरान भारत के प्रसिद्ध उद्भव की याद आती है। यह दिन सशस्त्र बलों के साहस, एकता और अदम्य भावना के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। विजय दिवस भारत और बांग्लादेश के नागरिकों के दिलों में समान रूप से देशभक्ति और गर्व की गहरी भावना को बढ़ावा देकर पीढ़ियों को प्रेरित करता रहता है। 16 अगस्त 1971 वो दिन था, जबकि इंदिरा गांधी ने अमेरिका की चेतावनी की परवाह किए बगैर पाकिस्तानी सेनाओं को ना केवल चारों खाने चित्त करके समर्पण के लिए मजबूर किया, बल्कि पाकिस्तान को तोड़कर नया देश बांग्लादेश बना दिया। आज के दिन पाकिस्तान के वो गहरे घाव फिर हरे हो जाते हैं.उन दिनों पाकिस्तान के
लोगों के बीच इंदिरा गांधी सबसे चर्चित शख्सियत बन गईं।
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अंदाज इससे लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान में जब 80के दशक में सैनिक तख्तापलट के बाद प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दी जाने वाली थी तो पाकिस्तान में ये कहा जा रहा था कि अगर इंदिरा सत्ता में होतीं तो कमांडो भेजकर भुट्टो को छुड़वा लेतीं।बेशक इंदिरा ऐसा नहीं करतीं लेकिन उनके बारे में पाकिस्तानी कम से कम ऐसा ही सोचते थे। जिस तरह इंदिरा गांधी ने अमेरिका की आंखों में आंखें डालकर पाकिस्तान के दो टुकड़े किए और नया देश बनवाया, वो शायद ही कोई प्रधानमंत्री कर सकता था या ऐसा करने की उसकी हिम्मत होती पाकिस्तान के खिलाफ वर्ष 1971 के युद्ध के दौरान उन्होंने तब दुनिया की दो महाशक्तियों को जिस तरह आमने सामने खड़ा करके सैन्य कार्रवाई की। बांग्लादेश को नया देश बनाया, वैसा करना शायद किसी दूसरे प्रधानमंत्री के वश में नहीं होता।
3 दिसंबर को पाकिस्तान ने 11 भारतीय हवाई अड्डों पर हमला किया। जिसके जवाब में भारत ने पाकिस्तान के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों पर हमला कर दिया। इसके बाद भारत सरकार ने ‘पूर्वी पाकिस्तान’ के लोगों को बचाने के लिए भारतीय सेना को पाकिस्तान के खिलाफ लड़ने का आदेश दिया। इस युद्ध का नेतृत्व भारत की ओर से फील्ड मार्शल मानेकशॉ ने किया था। पाकिस्तान के साथ हुए इस युद्ध में भारत के 1400 से ज्यादा सैनिक शहीद हुए थे। भारतीय जवानों ने पूरी बहादुरी के साथ यह युद्ध लड़ा और पाकिस्तानी सैनिकों की एक भी हरकत नहीं होने दी। इस युद्ध में पाकिस्तान को भारी क्षति हुई। जिसके बाद ये युद्ध महज 13 दिन में ही ख़त्म हो गया। इसके बाद 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल ए.ए. खान नियाज़ी ने लगभग 93,000 सैनिकों के साथ भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इसी वजह से हर साल 16 दिसंबर को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है और हर साल भारत के प्रधानमंत्री समेत पूरा देश भारत के उन वीर जवानों को श्रद्धांजलि देता है जिन्होंने इस युद्ध राष्ट्र के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया।इस युद्ध में दोनों महाशक्तियाँ अमेरिका और सोवियत संघ अप्रत्यक्ष रूप से शामिल थे।
ये सब देखते हुए 14 दिसंबर को भारतीय सेना ने ढाका में पाकिस्तान के गवर्नर के घर पर हमला कर दिया. उस वक्त पाकिस्तान के तमाम वरिष्ठ अधिकारी एक बैठक के लिए जुटे थे। इस हमले से पाकिस्तान हिल गया और जनरल नियाज़ी ने युद्धविराम का प्रस्ताव भेज दिया। परिणामस्वरूप, 16 दिसंबर, 1971 को दोपहर लगभग 2:30 बजे आत्मसमर्पण की प्रक्रिया शुरू हुई और उस समय तक लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया था। इंदिरा गांधी ने कहा, ‘पिछले साल मार्च से हम पूरी दुनिया से इस मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान की अपील कर रहे हैं। हमारी मांग उन लोगों को अधिकार देने की है जो लोकतंत्र में सिर्फ अपनी मौजूदगी चाहते हैं। उनका एकमात्र अपराध यह है कि उन्होंने लोकतांत्रिक तरीके से मतदान किया।’इस मौके पर इंदिरा गांधी ने साफ कहा, आज बांग्लादेश में चल रहा युद्ध भारत का युद्ध बन गया है। यह युद्ध मुझ पर, मेरी सरकार पर और देश की जनता पर थोपा गया है।’ हमारे पास देश को युद्ध की ओर ले जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
हमारे बहादुर अधिकारी और जवान चौकियों पर हैं और देश की रक्षा के लिए आगे बढ़ रहे हैं। पूरे देश में आपातकाल की स्थिति घोषित कर दी गई है। हर जरूरी कदम उठाया जा रहा है और हम किसी भी चीज के लिए तैयार हैं।’इस मौके पर उन्होंने देशवासियों से अपील भी की।इंदिरा गांधी ने कहा,’हमें लंबे संघर्ष और बलिदान के लिए तैयार रहना होगा। हम शांतिप्रिय लोग हैं, लेकिन हम जानते हैं कि जब तक आप अपनी स्वतंत्रता, लोकतंत्र और जीवन की रक्षा नहीं करेंगे, शांति नहीं हो सकती। इसलिए आज हमें न केवल अपनी अखंडता के लिए बल्कि अपने देश के मूलभूत आदर्शों को मजबूत करने के लिए भी लड़ना है।’ देश की रक्षा के लिए हमारे वीर सैनिक हमेशा तत्परता के साथ अपना योगदान देते हैं। देश की सीमाओं की रक्षा के लिए वीर सैनिकों द्वारा किए गए सर्वोच्च बलिदान को हमेशा याद रखा जायेगा। उन्होंने कहा कि हमें अपने सैनिकों की वीरता पर नाज है और पूरा देश उनकी बहादुरी को नमन करता है।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )