भारत है दुनिया का दूसरा बेर उत्पादक (plum growers) देश
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
बेर का वैज्ञानिक नाम ज़िज़िफस मौरिशियाना है जो कुछ हद तक खजूर के समान दिखता है और इसलिए दुनिया भर में रेड डेट लाल खजूर, चाइनीज़ डेट, चीनी खजूर, कोरियन डेट, कोरियाई खजूर आदि के रूप में भी जाना जाता है। इस फल का पेड़ छोटा तथा सदाबहार झाड़ी के रूप में होता है, बेर में बहुत कम मात्रा में कैलोरी होती है लेकिन ये ऊर्जा का एक बहुत अच्छा स्त्रोत है। इसमें कई प्रकार के पोषक तत्व, विटामिन और लवण पाए जाते हैं। समुद्र तल से लगभग 740-1400 मी० तक की ऊॅचाई वाले शुष्क क्षेत्र में उगने वाले इस फल की विश्वभर में लगभग 135 से 170 प्रजातियां पाई गयी है, जिसमें से प्रमुख 17 प्रजातियॉ तथा 90 उप प्रजातियां केवल भारत में पाई जाती है। बेर की उत्पत्ति सामान्यतः एशिया के इण्डो मलेशियन क्षेत्र से मानी जाती है इसके अलावा यह भारत चीन, आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, अफ्रिका, अफगानिस्तान, ईरान, सीरिया, बर्मा, आस्ट्रेलिया, फ्रांस, रूस में भी पाया जाता है।
भारत में महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, कर्नाटक, आध्र प्रदेश, तमिलनाडू, पं० बंगाल तथा असम आदि जगहो पर बेर का उत्पादन किया जाता है। प्रदेश में बेर का उत्पादन सामान्यतः बहुत कम किया जाता है। मगर बेर की आर्थिक महत्ता के लिए इसे जंगलों से एकत्रित किया जाता है। भारत दुनिया का दूसरा बेर उत्पादक देश है तथा कुल १ लाख भूमि में बेर का उत्पादन करता है। पंजाब में प्रति वर्ष लगभग 25000 है० भूमि पर 42847 मैट्रिक टन बेर का उत्पादन किया जाता है, जबकि चीन ने वर्ष 2009 में 30,000 है० क्षेत्र से लगभग 6 लाख मैट्रिक टन बेर का उत्पादन किया था। विदेशों में बेर की विभिन्न प्रॅजातियों का वृहद मात्रा में व्यवसायिक उत्पादन भी किया जाता है।
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बेर में विभिन्न औषधीय रसायनों की प्रचूरता पायी जाती है, जिस कारण यह डाइरिया, अतिसार, लीवर, अस्थमा, रक्तचाप, त्वचा तथा मानसिक रोगों के इलाज में उपयुक्त पाया गया है। इसमें टेनिन्स, एल्केलॉइड्स, फ्लेलोनोइडस, फीनोल्स, सेपोनिन्स आदि पाये जाते है। औषधीय महत्व के साथ बेर पौषक गुणों से भी भरपूर है, इसमें प्रौटीन- 0.8 ग्रा०, फाइबर-0.6 ग्रा०, आयरन-1.8 मि०ग्रा०, केरोटीन-0.021 मि०ग्रा०, नियासीन- 0.9 मिग्रा०, सिट्रिक एसिड- 1.1 मि०ग्रा०, एस्कोर्बिक एसिड-76.0 मि०ग्रा०, फ्लोराइड- 0.1-0.2 पी०पी०एम० प्रति 100 ग्राम तक पाया जाता है। फल के अलावा बेर की पत्तियों का औषधीय उपयोग तथा पशुचारे के लिए भी प्रयोग किया जाता है। इसकी लकडी की कठोरता को देखते हुए यह नाव बनाने, खम्भे बनाने तथा अन्य उपकरणों को बनाने में प्रयुक्त किया जाता है। बेर की छाल, जड,, बीज आदि को भी विभिन्न औषधीय के रूप में प्रयोग में लाया जाता है।
बेर की पौष्टिकता को देखते हुए व्यवसायिक रूप से कच्चे फल के अलावा अचार, जैम, पेय पदार्थों, बेर मक्खन तथा क्रीम बनाने में भी किया जाता है। ऑन लाइन बाजार में बेर की कीमत रू० 80 प्रति किलो से रू०300 प्रति किलो तक है। बरे की औषधीय, पौष्टिकता तथा व्यवसायिक महत्व को देखते हुए राज्य में भी बेर के व्यवसायिक उत्पादन की आवश्यकता है।फल हमारे दैनिक आहार का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इनमें पाये जाने वाले पोषक तत्व हमारे शरीर का विकास करते हैं तथा हमारे स्वास्थ्य को उत्तम बनाये रखते हैं। मौसम चाहे कोई भी हो, फलों की आवश्यकता हमारे शरीर को हरदम होती है। बेर भी इन्हीं फलों में से एक है। प्रदेश में उच्च गुणवत्तायुक्त का उत्पादन कर देश-दुनिया में स्थान बनाने के साथ राज्य की आर्थिकी तथा पहाड़ी क्षेत्रों में पलायान को रोकने का अच्छा विकल्प बनाया जा सकता है। किसान इन फसलों से अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर सकते हैं।
लेखक द्वारा उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर का अनुभव प्राप्त हैं, वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।