मिसाइल मैन (Missile Man) की पुण्यतिथि: विज्ञान की दुनिया से देश का प्रथम नागरिक बनना आसान नहीं - Mukhyadhara

मिसाइल मैन (Missile Man) की पुण्यतिथि: विज्ञान की दुनिया से देश का प्रथम नागरिक बनना आसान नहीं

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मिसाइल मैन (Missile Man) की पुण्यतिथि: विज्ञान की दुनिया से देश का प्रथम नागरिक बनना आसान नहीं

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

रामेश्वरम, यानि वह स्थान जिसे हिंदु धर्म के चार पवित्र धामों में से एक माना जाता है। कलाम का जन्मस्थान होनें के साथ-साथ यहां स्थापित शिवलिंग को बारह द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम देश के उन राष्ट्रपतियों में से रहे, जिन्हें जनता का सबसे ज्यादा प्यार मिला। जब वो वैज्ञानिक थे, तब भी देश सेवा में उनके योगदान के लिए जनता ने उन्हें सिर आंखों पर बिठाया। जब वो राष्ट्रपति बने तो सर्वोच्च पद पर आसीन एक सादगी पसंद शख्स की जनता कायल हो गई।

अवुल पकिर जैनुलअबिदीन अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में एक मुसलमान परिवार मैं हुआ। उनके पिता जैनुलअबिदीन एक नाविक थे और उनकी माता अशिअम्मा एक गृहणी थीं। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थे इसलिए उन्हें छोटी उम्र से ही काम करना पड़ा। अपने पिता की आर्थिक मदद के लिए बालक कलाम स्कूल के बाद समाचार पत्र वितरण का कार्य करते थे। अपने स्कूल के दिनों में कलाम पढाई-लिखाई में सामान्य थे पर नयी चीज़ सीखने के लिए हमेशा तत्पर और तैयार रहते थे। उनके अन्दर सीखने की भूख थी और वो पढाई पर घंटो ध्यान देते थे।

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उन्होंने अपनी स्कूल की पढाई रामनाथपुरम स्च्वार्त्ज़ मैट्रिकुलेशन स्कूल से पूरी की और उसके बाद तिरूचिरापल्ली के सेंट जोसेफ्स कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ से उन्होंने सन 1954 में भौतिक विज्ञान में स्नातक किया। उसके बाद वर्ष 1955  में वो मद्रास चले गए जहाँ से उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की। वर्ष 1960 में कलाम ने मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढाई पूरी की।

बचपन से ही कलाम ने ग़रीबी को बहुत नजदीक से देखा और महसूस किया, क्योंकि उनके माता-पिता की आय इतनी नहीं थी कि वह पूरे परिवार का पालन पोषण कर सकें। अपने परिवार की निर्धनता को देखते हुए, कलाम ने समाचार पत्रों के वितरण का कार्य करना प्रारम्भ किया। वह धनुष्कोडी मेल ट्रेन से बाहर गिरे हुए अखबारों को एकत्रित करके दुसरी ट्रेन में सफर कर रहे यात्रियों को बेचते थे, और उसी समय विश्वयुद्ध शुरू हो गया था। विश्वयुद्ध के दौरान भी कलाम ने अपना कार्य नहीं छोड़ा।

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कलाम सिर्फ 10 वर्ष के थे, जब द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। एक साक्षात्कार में, कलाम ने यह खुलासा किया था कि उन्होंने युद्ध की आग
को बिल्कुल समीप से महसूस किया था, क्योंकि युद्ध की आग धीरे-धीरे रामेश्वरम तक पहुंच गई थी।बचपन के बाद से उन्हें किताबें पढ़ने का शौक जागृत हुआ, जिसके चलते वह अपने भाई के मित्र से किताबें उधार लेकर पढ़ते थे 1980 में भारत सरकार ने एक आधुनिक मिसाइल प्रोग्राम अब्दुल कलाम जी डायरेक्शन से शुरू करने का सोचा इसलिए उन्होंने दोबारा डी. आर. डी. ओ में भेजा।

उसके बाद एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम कलाम जी के मुख्य कार्यकारी के रूप में शुरू किया गया। अब्दुल कलाम जी के निर्देशों से ही अग्नि मिसाइल, पृथ्वी जैसे मिसाइल का बनाना सफल हुआ। डॉ. कलाम जानते थे कि किसी व्यक्ति या राष्ट्र के समर्थ भविष्य के निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका हो सकती है। उन्होंने हमेशा देश को प्रगति के पथ पर आगे ले जाने की बात कही। उनके पास भविष्य का एक स्पष्ट खाका था, जिसे उन्होंने अपनी पुस्तक ‘इंडिया2020: ए विजन फॉर द न्यू मिलिनियम’ में प्रस्तुत किया।

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इंडिया 2020 पुस्तक में उन्होंने लिखा कि भारत को वर्ष 2020 तक एक विकसित देश और नॉलेज सुपरपॉवर बनाना होगा।उनका कहना था कि देश की तरक्की में मीडिया को गंभीर भूमिका निभाने की जरूरत है। नकारात्मक खबरें किसी को कुछ नहीं दे सकती,लेकिन सकारात्मक और विकास से जुड़ी खबरें उम्मीदें जगाती हैं। डॉ. कलाम एक प्रख्यात वैज्ञानिक, प्रशासक, शिक्षाविद् और लेखक के तौर पर हमेशा याद किए जाएंगे और देश की वर्तमान एवं आने वाली कई पीढ़ियां उनके प्रेरक व्यक्तित्व एवं महान कार्यों से प्रेरणा लेती रहेंगी।कलाम जानते थे कि किसी व्यक्ति या राष्ट्र के समर्थ भविष्य के निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका हो सकती है।

उन्होंने हमेशा देश को प्रगति के पथ पर आगे ले जाने की बात कही। उनके पास भविष्य का एक स्पष्ट खाका था, जिसे उन्होंने अपनी पुस्तक ‘इंडिया2020 : ए विजन फॉर द न्यू मिलिनियम’ में प्रस्तुत किया। इंडिया 2020 पुस्तक में उन्होंने लिखा कि भारत को वर्ष  2020 तक एक विकसित देश और नॉलेज सुपरपॉवर बनाना होगा।

उनका कहना था कि देश की तरक्की में मीडिया को गंभीर भूमिका निभाने की जरूरत है। नकारात्मक खबरें किसी को कुछ नहीं दे सकती, लेकिन सकारात्मक और विकास से जुड़ी खबरें उम्मीदें जगाती हैं। डॉ. कलाम एक प्रख्यात वैज्ञानिक, प्रशासक, शिक्षाविद् और लेखक के तौर पर हमेशा याद किए जाएंगे और देश की वर्तमान एवं आने वाली कई पीढ़ियां उनके प्रेरक व्यक्तित्व एवं महान कार्यों से प्रेरणा लेती रहेंगी।देश की सामरिक शक्ति को नये हथियारों से सुसज्जित किया जाय। अनेक योजनाएँ बनी, जिनके जनक डा. कलाम थे। भारत देश इस कलाम के लिए जितना सम्मान और कृतज्ञता रखता है वह किसी भी चीज से परे है। कोई भी विज्ञान, अंतरिक्ष और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में डॉ कलाम के योगदान को कभी नहीं भूल सकता।

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उन्होंने देश के लिए जो किया, यही कारण है कि आज भारत विश्व परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और कई अन्य क्षेत्रों में अन्य देशों को कठिन टक्कर दे पा रहा है। इसरो के पश्चात मैं डीआरडीओ भारत के मिसाइल कार्यक्रम का हिस्सा बनने का अवसर मिला। वर्ष 1994 में जब अग्रि मशीन की सारी आवश्यकताएं पूरी हो गई, परमाणु ऊर्जा विभाग और डीआरडीओ की शानदार साझेदारी में 11 और 13 मई को परमाणु परीक्षण हुए। इन परीक्षणों में अपनी टीम के साथ भाग लेने की मुझे बहुत खुशी थी। हमने विश्व के समक्ष साबित कर दिया कि भारत न केवल परमाणु परीक्षण कर सकता है अपितु वह विकसित देशों की पंक्ति में भी आ गया है। इस उपलब्धि से भारतीय के रूप में अपने ऊपर बहुत गर्व हुआ।

भारत के मिसाइल मैन कहे जाने वाले डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम की आज पुण्यतिथी है। इकलौते गैर राजनीतिक राष्ट्रपति थे। शायद इसलिए उन्हें जनता का भरपूर प्यार मिला। उनकी सादगी के किस्से काफी चर्चित रहे। वो डॉ राजेन्द्र प्रसाद के बाद दूसरे लोकप्रिय राष्ट्रपति माने जाने लगे। राष्ट्रपति बने रहने के दौरान भी उन्होंने सादगी और ईमानदारी को अपने जीवन का मूल मंत्र बनाए रखा। राष्ट्रपति भवन में जब उनके रिश्तेदार मिलने आते तो उनके रहने का किराया वो अपनी जेब से चुकाते। राष्ट्रपति बनने के पहले ही साल उन्होंने रमजान के पाक महीने में होने वाली इफ्तार की दावत को बंद कर दिया। तय हुआ कि बजट की रकम को अनाथ बच्चों की चैरिटी में लगा दिया जाए।

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साल 2002-2007 तक भारत के राष्ट्रपति रहे, कलाम अपनी उपलब्धियों के लिए आज भी याद किए जाते हैं। डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम
27 जुलाई 2015 को इस दुनिया को अलविदा कह गए। विज्ञान और अंतरिक्ष के क्षेत्र में उन्होंने अतुलनीय योगदान दिया है, जिसकी वजह से उन्हें सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उन्होंने अपने जीवन के लगभग चालीस साल रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के लिए काम करते हुए बिताए। लेकिन यह 27 जुलाई, 2015 का दुर्भाग्यपूर्ण दिन था जब शिलांग में भाषण देते हुए उनकी हृदय गति रुक गई और उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। वैज्ञानिक से लेकर राष्ट्रपति तक का सफर तय करने के बाद भी कलाम ने एक भी संपत्ति अपने नाम पर नहीं जोड़ी। जो था वो सब दान कर दिया। जिंदगी भर कलाम साहब ने जहां भी नौकरी की, वहीं के गेस्ट हाउस या फिर सरकारी आवासों में जीवन व्यतीत किया।

उत्तराखंड के प्राकृतिक सौंदर्य के कायल, संगीत की दुनिया के प्रेमी, शायद यही कारण था कि देश के राष्ट्रपति रहे डाण् अब्दुल कलाम उत्तराखंड आकर भी नृत्य सम्राट उदय शंकर के योगदान की सराहना करना नहीं चूके। हालांकि मौका उदय शंकर अकादमी के शिलान्यास का था, लेकिन इस मौके पर भी वह अपना उत्तराखंड प्रेम और संगीत के प्रति अपनी रुचि को चाहकर भी नहीं छिपा पाए। देश के राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक डॉण् अब्दुल कलाम आज नहीं हैं, लेकिन उत्तराखंड से उनका लगाव कभी भुलाया नहीं जा सकता। अल्मोड़ा में प्रसिद्ध नृत्य कार उदय शंकर नाट्य अकादमी के शिलान्यास के मौके पर वर्ष  2002 में कलाम अल्मोड़ा पहुंचे थे। कलाम के संबोधन में उत्तराखंड के प्रति अपार प्रेम उनके बोलते ही छलकता था।

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अल्मोड़ा दौरे के दौरान कलाम ने कहा कि उत्तराखंड में नृत्य और संगीत को प्रोत्साहित करने के लिए कदम आगे बढ़ाने होंगे। उत्तराखंड के लोगों की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा था कि यहां के लोग श्रेष्ठ होते हैं। उनकी श्रेष्ठता संगीत और नृत्य के क्षेत्र में भी साबित होनी चाहिए।कलाम उत्तराखंड की गरीबी को लेकर भी काफी चिंतित रहे। कलाम चाहते थे कि उत्तराखंड में गरीबी को हटाने के लिए तथा यहां के निवासियों को रोग मुक्त बनाने के लिए कार्य करना होगा।

राज्य में जल विद्युत की अपार संभावनाओं को देखते हुए उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश के रूप में विकसित करना उनका लक्ष्य था।पूरी जिंदगी शिक्षा और देश के नाम करने वाले कलाम साहब को बच्चों से बहुत प्रेम था और ये संयोग ही था कि जब उन्होंने अंतिम सांस ली तो उससे पहले भी वो बच्चों को ही ज्ञान का पाठ पढ़ा रहे थे। 83साल के अपने जीवन में कलाम साहब ने कई अहम योगदान दिए। देशवासियों के दिल उनकी यादें हमेशा बसी रहेंगी।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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