विधायक मनोज रावत की कलम से
रुद्रप्रयाग। आज भिंगी- पल्द्वाड़ी गांव के सिलगोट तोक जो मक्कू और हुड्डू से आने वाली पहाड़ी नदियों के संगम पर बसा है , जाने का मौका मिला। पैदल दुर्गम रास्ते से बरसात में नदी के किनारे के गांव जाने तक, सभी पर दर्जन भर जोंकों का आक्रमण हो चुका था। कठिन सफर के बाद सिलगोट पहुंचते ही ऐसा लगा जैसे स्वर्ग में हों।
1952 – 1977 तक गांव के सभापति रहे पंडित भोला दत्त सेमवाल ने इस निर्जन जगह को पहाड़ के परिवार के लिए, खेती- किसानी के लिए जो सुविधायें चाहिए, उनसे सजाया-संवारा। घर, चौक, खेत, घराट हो या नहर वे बाहर से कुछ नहीं लाए, हर समान वहीं का लगाया।
मेरे साथ pmgsy सिंचाई खंड के 2 अभियंता भी गए थे, जो उनके द्वारा बनाई गई केवल पत्थरों की नहर, पानी की निकासी व्यवस्था जो 50 सालों बाद भी कोई रखरखाव नही मांगती है और जिससे थोड़ा भी पानी लीक नहीं होता है, देख कर चमत्कृत थे, जबकि सरकारी नहरों पर बनने और उसके बाद रखरखाव पर लाखों खर्च होने के बाद भी पानी नहीं चलता है।
पंडित भोला दत्त के जमाने में सिलगोट में 10-15 भैंस, उतनी ही गायें ओर बड़े सफेद बैल होते थे। हर तरह की खेती सिलगोट में होती थी, फल होते थे सब्जियां होती थी। सिलगोट में न केवल दूध-घी की नदियां बहती थी, बल्कि ये घर राजनीतिक-सामाजिक चेतना का केंद्र था। पूर्व विधायक पंडित गंगाधर मैठाणी के लिए ये दूसरा घर था।
भोला दत्त जी ने तब के दुर्गम गांव भिंगी-पल्द्वाड़ी में शिक्षा और स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना भी की।
फिर आया उनके पुत्रों का समय, जिनमें पंडित चंद्रशेखर केदारनाथ मंदिर में वेदपाठी थे और उनके 2 अनुज थे, ने आगे बढ़ कर 5 किलोवाट का घराट और mini hydyle लगाया, जो धान कूटने के साथ घर की जरूरत के लिए बिजली पैदा करता है। समय के अनुसार ओर सुविधाएं भी जोड़ी। सभी भाई नौकरी में थे, लेकिन गांव, खेती-किसानी और पशुपालन नही छोड़ा। दुर्भाग्यवश चंद्रशेखर जी 2013 की केदारनाथ जल विप्लव की भेंट चढ़ गए। पर उन्होंने और उनके भाइयों ने भी अपने पिता की परंपरा को आगे बढ़ाया।
अब नई पीढ़ी के युवाओं ने सिलगोट में मिनी ट्रैक्टर, थ्रैशर आदि मशीनें रखी हैं। उनकी बूढ़ी दादी, मां और नई बहू मिलकर न केवल इस इलाके में हर किस्म की खेती करती हैं, बल्कि आम से लेकर माल्टा तक उगाते हैं। 2 साहीवाल गउएँ भी हैं। अच्छा पढ़- लिख कर आगे बढ़ रही इस नई पीढ़ी को भी अपने पिता और दादा की तरह अपने गाँव से पूरा मोह है, इसे छोड़ना नहीं चाहते।
एक नेपाली भी 30-35 साल से इस परिवार का सदस्य है, बच्चों का चाचा है, बिना उसके इस घर की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
स्वर्गीय पंडित चंद्रशेखर की धर्मपत्नी कुसुम बताती हैं कि नमक और चीनी के अलावा वो कुछ नहीं खरीदते हैं, बल्कि लोगों को भी भरपूर देते हैं।
सिलगोट पूरी तरह से आत्मनिर्भर गांव है और सेमवाल परिवार आज भी कठिनाइयों के बावजूद भी अपने घर पर टिका है।
सिलगोट उत्तराखंड के लिए आदर्श मॉडल है। पड़े-लिखे, सम्पन्न और अपनी जड़ों से जुड़े परिवार का मॉडल।
एक ही जरूरत है इनकी सड़क से बहुत दूर हैं दुर्गम रास्ते से जान हथेली पर रख कर आना-जाना होता है।
इसी समस्या के समाधान के लिए आज मैं, ग्राम प्रधान, प्रताप सिंह रावत गुरुजी, श्री खत्री, उप प्रधान और pmgsy के अभियंता सिलगोट गए थे।
भगवान हमें इतनी शक्ति दें कि हम सेमवाल परिवार का दुख कुछ कम कर पाएं।
(लेखक केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र के विधायक हैं और उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार रहे हैं।)
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