जानिए 150 साल पुराने ऐतिहासिक 'लोहे के पुल' की कहानी (historical 'iron bridge') - Mukhyadhara

जानिए 150 साल पुराने ऐतिहासिक ‘लोहे के पुल’ की कहानी (historical ‘iron bridge’)

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150 साल पुराना ऐतिहासिक ‘लोहे का पुल’ (historical ‘iron bridge’)

Harishchandra Andola

  • डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

रेल ने भारत को आधुनिकता प्रदान की तथा इसके विस्तृत नेटवर्क ने इस उपमहाद्वीप के एक कोने से दूसरे कोने को आपस में मिलाया और पहले की अपेक्षा परिवहन, संचार एवं व्यापार को भी सुगम किया। यहाँ तक कि भारत को एक राष्ट्र का रूप देने में रेल की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। इसने यहाँ के विषम क्षेत्रों एवं लोगों को ऐतिहासिक और भौगोलिक रूप से न केवल जोड़ा, बल्कि भारतीयों के जीवन एवं विचार को भी बदला, जिससे एक राष्ट्रीय पहचान बननी संभव हो सकी।

दिल्ली के 150 साल पुराने ऐतिहासिक यमुना ब्रिज को 1866 में पहली बार कलकत्ता और दिल्ली को रेल नेटवर्क से जोड़ने के लिए खोला गया था। इस पुल को इंजीनियरिंग की असाधारण उपलब्धि माना गया था। ‘लोहे के पुल’ के नाम से मशहूर यह पुल डेढ़ सदी से अधिक समय में इतनी बार बाढ़ का गवाह बना है। इसे यमुना नदी में पानी के खतरे के स्मर को मापने का संदर्भ बिंदु भी माना जाने लगा है।

यह नदी पिछले सप्ताह से उफान पर है और बुधवार को इसका जलस्तर 1978 में बने 207.49 मीटर के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 207.71 मीटर के स्तर पर पहुंच गया था, जिससे दिल्ली के कई अहम हिस्सों में बाढ़ आ गई थी यमुना का जलस्तर बढ़ने के कारण भारतीय रेल की जीवनरेखा माने जाने वाले इस ऐतिहासिक पुल को यातायात के लिए अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया था।

रेलवे के पुलों, इमारतों और नेटवर्क विस्तार पर व्यापक अनुसंधान करने वाले भारतीय रेलवे के अधिकारियों और विशेषज्ञों ने पुराने यमुना ब्रिज को भारत की अमूल्य धरोहर बताया है।

भारतीय रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी पी के मिश्रा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “यह लोहे का एक पुराना घोड़ा है, जो 1860 से यमुना नदी पर सरपट दौड़ रहा है। इसने भांप से चलने वाली ट्रेन के युग, डीजल युग और बिजली से चलने वाली ट्रेन के युग को देखा है।

दक्षिण-पश्चिमी रेलवे के पूर्व अतिरिक्त महाप्रबंधक और आसनसोल मंडल के पूर्व मंडलीय रेलवे प्रबंधक मिश्रा रेलवे की विरासत पर लंबे समय से अनुसंधान कर रहे हैं।

उन्होंने भारत में रेलवे की यात्रा के ऐतिहासिक पड़ावों पर कई लेख भी लिखे हैं। भारत में रेल सेवा की शुरुआत 16 अप्रैल 1853 को बंबई से ठाणे के बीच हुई थी। ‘ब्रिजेस, बिल्डिंग्स एंड ब्लैक ब्यूटीज ऑफ नॉर्दर्न रेलवे किताब के अनुसार, “ब्रिटिश काल की सबसे सफल रेल कंपनियों में से एक ” तत्कालीन पूर्वी भारतीय रेलवे ने दिल्ली-हावड़ा लाइन का निर्माण किया था।

उत्तरी रेलवे के पूर्व महाप्रबंधक विनू एन माथुर द्वारा लिखी इस पुस्तक में अविभाजित भारत में निर्मित विभिन्न रेलवे पुलों का इतिहास बयां किया गया है, जिनमें दिल्ली और प्रयागराज में यमुना पर बने “प्रसिद्ध पुल” भी शामिल हैं।

रेलवे की शब्दावली में ‘ब्रिज नंबर 249’ के नाम से पहचाना जाने वाला पुराना यमुना ब्रिज दिल्ली-गाजियाबाद खंड पर स्थित है। शुरुआत में इसे 16, 16,335 पाउंड की लागत से एकल लाइन के रूप में बनाया गया था।

माथुर की 450 पृष्ठों किताब के मुताबिक, 1913 में इस पुल को दोहरी लाइन में बदला गया और बाद में 1930 में इसके नीचे बने सड़क मार्ग को चौड़ा किया गया। उत्तर-पश्चिमी रेलवे ने 1925 में इस पुल के रखरखाव का जिम्मा अपने हाथ में ले लिया। मौजूदा समय में इस पुल के रखरखाव का दायित्व उत्तरी रेलवे पर है।

जी हडलस्टन द्वारा लिखी किताब ‘हिस्ट्री ऑफ द ईस्ट इंडियन रेलवे के अनुसार, दिल्ली में यमुना ब्रिज को यातायात के लिए 1866 में खोला गया। उस वक्त पहली बार हावड़ा और दिल्ली को एक रेल नेटवर्क से जोड़ा गया। आज भी कुछ यात्री इस पुल से गुजरते वक्त नदी में सिक्के डालते हैं। यात्रियों को लगता है कि ऐसा करने से उन्हें कामयाबी मिलेगी और उनकी यात्रा सुखद रहेगी।

दिल्ली में 2004 से भले ही पुराने पुल के समानांतर नये यमुना ब्रिज का निर्माण किया जा रहा है, लेकिन ‘लोहे के पुल’ से जुड़ी पुरानी यादें और औपनिवेशिक काल का आकर्षण हमेशा बरकरार रहेगा।

भारत में रेल नेटवर्क किस प्रकार हुआ और किस प्रकार यह ऐसी जीवन रेखा बनी, जो संपूर्ण राष्ट्र को आज भी एक धागे में पिरोती है। अब भी समय है, जब राजनीतिक दलों को इस विषय में गंभीरता से सोचना चाहिए। विडम्बना यह है इस ओर हमारे दायित्व के प्रति हम सबने आंखें मूंद रखी हैं।

(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।)

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