उत्तराखंड की सल्ट क्रांति - Mukhyadhara

उत्तराखंड की सल्ट क्रांति

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उत्तराखंड की सल्ट क्रांति

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

सल्ट स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में अपने संघर्ष का शानदार अतीत संजोए हुए है। स्वतंत्रता आंदोलन में सल्ट की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकारते हुए महात्मा गांधी ने इसे कुमाऊं का बारदोली कहा था। प्रतिरोध एवं अन्याय के प्रति प्रतिकार की भावना सल्ट की मिट्टी में है। इसे यहां के लोगों ने आज भी जिंदा रखा है। दुरूह क्षेत्रों वाला यह क्षेत्र विकास की दौड़ में पहले से कहीं आगे है। विकास की बढ़ती आवश्यकताओं ने सल्ट के लोगों को आंदोलनों का पहरुवा बनाए रखा है। कुमाऊं की पर्वत श्रंखलाएं अपने आंचल में प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना छिपाए जहां पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती हैं। वहीं इन पर्वत श्रंखलाओं ने ऐसे कवियों और वीर सपूतों को जन्म दिया है। जिनकी वीर गाथाएं आज भी घर घर बड़े बुजुर्ग नई पीढ़ी को बड़े उत्साह से सुनाया करते हैं।

स्वतंत्रता आंदोलन में देश को आजाद कराने में वैसे तो पूरे कुमाऊं का विशेष योगदान रहा है। लेकिन अल्मोड़ा जनपद में स्थित सल्ट क्षेत्र की आजादी की लड़ाई में एक अलग पहचान है। आज भी सल्ट में आजादी की लड़ाई में शहीद हुए रणबांकुरों की वीर गाथाएं घर घर गाई जाती हैं। यहां के लोगों में आजादी के अपना सब कुछ समर्पित कर देने की भावना के चलते बापू ने सल्ट को कुमाऊं की बारदोली का नाम दिया था।
सल्ट क्रांति की घटना का जो ऐतिहासिक और राजनैतिक विश्लेषण अपने ‘सल्ट क्रांति- स्वाधीनता आन्दोलन का एक अविस्मरणीय अध्याय’ (म्यर पहाड़  5 मार्च, 2010) नामक लेख में किया है उससे पता चलता है कि उत्तराखंड के सल्ट क्षेत्र में आजादी की लड़ाई की शुरुआत कुली बेगार के आन्दोलन को कुचलने के लिए ब्रिटिश हुकुमत के जनविरोधी एवं दमनकारी फैसलों की प्रतिक्रिया के कारण हुई थी।

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अंग्रेज प्रशासकों ने पौड़ी गढवाल जिले की गूजडू पट्टी के साथ सल्ट की चार पट्टियों से बेगार कराने के फैसले की सूचना जब हरगोबिन्द पन्त को मिली तो वे एस.डी.एम.के पहुंचने से पहले ही सल्ट पहुंच गये। वहां विभिन्न स्थानों पर सभाएं हुई और जनता ने एक स्वर में कुली-बेगार न देने का संकल्प किया। वर्ष 1921 में कुली बेगार प्रथा आंदोलन में यहां के लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। वहीं झन दिया लोगों कुली बेगारा, अब है गई गांधी अवतारा, सल्टियां वीरों की घर घर बाता, गोरा अंग्रेजा तू छोड़ि दे राजा जैसी जनवादी कवियों की रचनाओं ने यहां के लोगों को उत्साहित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।वर्ष1930 में सल्ट की शांत वादियां सविनय अवज्ञा आंदोलन को लेकर छटपटाने लगी। सल्ट के लोगों ने गोरी सरकार के आदेशों को धत्ता बताते हुए समूचे कुमाऊं में आंदोलन का जो शंखनाद किया। उससे अंग्रेजों को इस बात का अहसास हो गया था कि अब यहां के लोग आजादी के लिए कुछ भी कर सकते हैं।

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इस आंदोलन में हरगोविंद पंत, पुरुषोत्तम उपाध्याय व लक्ष्मण सिंह अधिकारी जहां तीन महीनों तक मुरादाबाद में जेल की सलाखों के पीछे पड़े रहे। वहीं फिरंगी सरकार से देश को आजाद कराने के लिए खुमाड़ निवासी पुरुषोत्तम उपाध्याय, पोखरी के कृष्ण सिंह ने रानीखेत में धारा 144 तोड़ी। पांच सितंबर 1942 का दिन कुमाऊं के लोग कैसे भूल सकते हैं। जब खुमाड़ में आयोजित क्रांतिकारियों की सभा में एसडीएम जानसन ने अंधाधुंध गोलीबारी कर अपनी हैवानियत का परिचय दिया। जिसमें क्रांतिकारी दो सगे भाई गंगा राम और खीमानंद मौके पर शहीद हो गए।जबकि गोलीबारी में घायल चूड़ामणी और बहादुर सिंह ने भी कुछ दिनों बाद दम तोड़ दिया। आजादी के बाद पांच सितंबर उन्नीस सौ चौरासी में खुमाड़ में इन शहीदों की याद में एक शहीद स्मारक का निर्माण कराया गया। जिसके बाद से हर साल पांच सितंबर यहां शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।

राजनीतिक दलों के नुमाइंदों के अलावा प्रशासनिक अधिकारियों और स्थानीय लोगों का जमावड़ा यहां लगता है और शहीदों को उनकी बरसी पर याद किया जाता है। वर्त्तमान में 5 सितंबर को जो शिक्षक दिवस मनाया जाता है,उस सन्दर्भ में भी यह उल्लेखनीय है कि व्यवसाय से शिक्षक रहे खुमाड़ के पुरुषोत्तम उपाध्याय तथा लक्ष्मण सिंह अधिकारी के योगदान की चर्चा करना इसलिए भी आज जरूरी है, ताकि लोग जान सकें कि देश की आजादी की लड़ाई में खासकर सल्ट क्रांति के आन्दोलन को व्यवस्थित रूप से संचालित करने में उत्तराखंड के इन देशभक्त शिक्षकों की कितनी अहम भूमिका रही थी? सल्टवासियों की इसी देशभक्तिपूर्ण शहादत के कारण गांधीजी ने इस क्षेत्र को ‘कुमाऊं की बारदोली’ कहा था।

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गौरतलब है कि कुमाऊं का अभिप्राय उस समय टिहरी रियासत को छोड़कर सम्पूर्ण उत्तराखण्ड से था। जहां सल्ट के खुमाड़ नामक स्थान पर ये क्रांतिकारी लोग शहीद हुए थे, वहां इनकी याद में शहीद स्मारक बना है। प्रतिवर्ष 5 सितंबर को यहां इन क्रांतिकारी वीर शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है और इनके योगदान को लक्ष्य करके कवि सम्मेलन का भी आयोजन किया जाता है। सल्ट के असहयोग आन्दोलन में स्थानीय कुमाउनी कवियों ने भी ग्रामीणों के हृदय में देशप्रेम व देशभक्ति का जोश भरने का महत्त्वपूर्ण काम किया।

“हिटो हो उठो ददा भुलियो,आज कसम खौंला
हम अपणि जान तक देशो लिजि द्यौंला.”
“झन दिया मैसो कुली बेगारा,
पाप बगै है छो गंगा की धारा.
झन दिया मैसो कुली बेगारा,
आब है गयी गांधी अवतारा.
सल्टिया वीरों की घर-घर बाता,
गोरा अंग्रेजा तू छोड़ि दे राजा..”

वास्तव में सल्ट के इन महान् क्रांतिकारियों ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में उत्तराखण्ड का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवा दिया है। तथा 5 सितंबर को ‘शिक्षक दिवस’ के अवसर पर खुमाड़ के पुरुषोत्तम उपाध्याय, लक्ष्मण सिंह अधिकारी जैसे राष्ट्रभक्त शिक्षकों को शत शत नमन !! प्रत्येक वर्ष खुमाड़ सल्ट में शहीदों की स्मृति में मेला लगता है और सल्ट क्षेत्र का नाम आजादी की लड़ाई में बड़े गर्व से लिया जाता है। उल्लेखनीय है कि महात्मा गांधी ने खुमाड़ को कुमाऊं की वारदोली कहा था। जिसमें हमारे समाज के लोगों ने शहादतें दी और सल्ट का ये पूरा क्षेत्र 1947 में आज़ादी मिलने तक प्रतिरोध का एक मुख्य केन्द्र बना रहा। आज शिक्षक दिवस के साथ-साथ हम लगभग भूल चुके अपने उन हीरोज को भी याद करने का दिन है जिन्होंने आज़ादी के आन्दोलन में अपनी शहादतें दी हैं। सल्ट क्रांति के इन सभी क्रांतिवीरों को कोटि कोटि नमन। ये लेखक के अपने विचार हैं।

( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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