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राजस्थान में शपथ ग्रहण : भाजपा का नया सियासी प्रयोग, “जूनियर के अंडर में सीनियर”, छत्तीसगढ़-एमपी के बाद राजस्थान में भी यही हुआ, सीएम भजनलाल से कई वरिष्ठ नेता बने मंत्री

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राजस्थान में शपथ ग्रहण : भाजपा का नया सियासी प्रयोग, “जूनियर के अंडर में सीनियर”, छत्तीसगढ़-एमपी के बाद राजस्थान में भी यही हुआ, सीएम भजनलाल से कई वरिष्ठ नेता बने मंत्री

शम्भू नाथ गौतम

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा ने तीन राज्यों राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई। लेकिन इन राज्यों में भाजपा ने नया सियासी प्रयोग करते हुए जूनियर को मुख्यमंत्री बनाया और सीनियर कई नेताओं को मंत्री बनाया। राजस्थान में भी भजनलाल सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार हुआ और इसमें भी कई दिग्गज नेता मंत्री बनाए गए हैं। हालांकि भाजपा का यह नया सियासी ट्रेंड उत्तराखंड से शुरू हुआ था। पुष्कर सिंह धामी कभी मंत्री भी नहीं बने थे कि पार्टी आलाकमान ने सभी को चौंकाते हुए उन्हें उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बना दिया था। ‌उस समय राज्य में कई वरिष्ठ नेता थे जो मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। लेकिन पार्टी के फैसले के आगे सभी चुप रहे। सबसे बड़ी बात यह है कि हाल के वर्षों में भाजपा देश को यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि पार्टी में छोटा सा छोटा कार्यकर्ता भी बड़े पद पर पहुंच सकता है। इसी महीने दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी यही प्रयोग करते हुए जूनियर नेताओं को मुख्यमंत्री पद की कमान दे दी और सीनियरों को मंत्री बनाया गया। रमन सिंह, वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान सीएम की रेस से बाहर हो गए।

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मध्य प्रदेश में कई ऐसे दिग्गज नेता थे जो मुख्यमंत्री बनने की तैयारी कर रहे थे लेकिन भाजपा ने एक बार फिर सभी को चौंकाते हुए जूनियर नेता को मुख्यमंत्री पद की कमान दे दी। कई सीनियर नेताओं को जूनियर मुख्यमंत्री के अंडर में मंत्री बनाया गया। मध्य प्रदेश में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया गया। कैलाश विजयवर्गीय, प्रह्लाद पटेल, गोविन्द सिंह राजपूत, राकेश सिंह मंत्री बनाया गया है। इन मंत्रियों में कैलाश विजयवर्गीय, प्रह्लाद पटेल और राकेश सिंह मुख्यमंत्री बनने की रेस में थे। वह‌ीं नौ बार के विधायक गोपाल भार्गव शिवराज सरकार के उन 10 मंत्रियों में शामिल हैं जिन्हें नई सरकार में जगह नहीं मिली है। मंत्रियों के नाम दिल्ली में तय हुए हैं। कैबिनेट के मार्फत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का संकेत साफ है- भाजपा अब ट्रेडिशनल पॉलिटिक्स से आगे की ओर बढ़ रही है। सिर्फ सीनियॉरिटी से काम नहीं चलेगा और न ही जूनियर को छोटा समझा जाएगा। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने चुनाव प्रचार में यह कहकर अपनी ‘भावनाएं’ बता दी थीं। पद और कद के हिसाब से वे मुख्यमंत्री के पद के स्वाभाविक दावेदार थे।

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डॉ. मोहन यादव के मुख्यमंत्री और जगदीश देवड़ा व राजेंद्र शुक्ल के उप मुख्यमंत्री बनने के बाद सबसे ज्यादा चर्चा विजयवर्गीय की नई जिम्मेदारी को लेकर ही हो रही थी, क्योंकि यह भी सवाल उठ रहा था क्या वे राजनीति में अपने से जूनियर मोहन यादव की टीम में काम करेंगे? पार्टी ने उन्हें मंत्री बनाकर मैसेज दिया कि कद की बजाय पार्टी की जरूरत के मुताबिक ही काम दिया जाएगा। केंद्रीय मंत्री रहे और अब मोहन सरकार में मंत्री प्रह्लाद पटेल के साथ भी यही हुआ। ऐसे ही छत्तीसगढ में भी कई दावेदार थे जिनमें खुद रमन सिंह के अलावा अरुण साव,ओपी चौधरी और रेणुका सिंह के नाम शामिल था। लेकिन भाजपा हाईकमान ने आखिरकार विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया गया है।

वहीं राजस्थान विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री कौन बनेगा अटकलें शुरू हो गई थी। वसुंधरा राजे, दीया कुमारी, गजेंद्र शेखावत और बाबा बालक नाथ सहित कई नेताओं का नाम सबसे आगे चल रहा था वहीं अर्जुनराम मेघवाल, सीपी जोशी, अश्वनी वैष्णव के नामों की भी चर्चा थी । सबसे ज्यादा चौंकाने वाला का नाम राजस्थान में भजन लाल शर्मा का रहा। बदलना शर्मा पहली बार जयपुर के सांगानेर से विधायक बने हैं। पार्टी ने राजस्थान की कमान भजनलाल शर्मा को सौंप दी । छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की तर्ज पर भाजपा ने राजस्थान में भी चौंकाते हुए नए नवेले विधायक भजन लाल को राजस्‍थान का मुख्‍यमंत्री घोषित कर दिया। दूर-दूर तक किसी को इस नाम का कोई अंदाजा नहीं था। भाजपा की पूर्व सांसद दीया कुमारी के साथ प्रेमचंद बैरवा को उपमुख्यमंत्री बनाया है।

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राजस्थान में इन विधायकों ने ली मंत्री पद की शपथ, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे नहीं पहुंचीं–

शनिवार को राजस्थान में भजनलाल सरकार का पहला मंत्रिमंडल विस्तार हुआ। जयपुर के राज भवन में आज दोपहर बाद 3:20 पर राज्यपाल का कलराज मिश्र ने सभी मंत्रियों को शपथ दिलाई। भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ और किरोड़ी लाल मीणा को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। हालांकि शपथ ग्रहण समारोह में पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी की वरिष्ठ नेता वसुंधरा राजे सिंधिया शामिल नहीं हुईं। झाड़ोल विधायक बाबूलाल खराड़ी, फिर रामगंज मंडी से विधायक मदन दिलावर ने शपथ ली। छठे मंत्री के रूप में जोधपुर जिले की लूणी से विधायक जोगाराम पटेल ने शपथ ली। पटेल के बाद पुष्कर से विधायक सुरेश सिंह रावत ने शपथ ग्रहण की। जैतारण से विधायक अविनाश गहलोत, सुमेरपुर से विधायक जोराराम कुमावत ने भी शपथ ली है। प्रतापगढ़ से विधायक हेमंत मीणा ने भी मंत्री पद और गोपनीयता की शपथ ग्रहण की है। मालपुरा से विधायक कन्हैयालाल चौधरी भी मंत्री बने। चौधरी के बाद बीकानेर की लूणकरणसर सीट से विधायक सुमित गोदारा ने मंत्री पद की शपथ ली है। अलवर से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे संजय शर्मा ने राज्यमंत्री के रूप में शपथ ली। बड़ी सादड़ी से विधायक गौतम कुमार ने दूसरे राज्यमंत्री के रूप में शपथ ली है। सीकर के श्रीमाधोपुर से विधायक झाबर सिंह खर्रा ने तीसरे राज्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की है। चौथे राज्यमंत्री के रूप में सुरेंद्रपाल सिंह टीटी को शपथ दिलाई गई है।

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पांचवें राज्यमंत्री के रूप में कोटा के सांगोद से बीजेपी विधायक हीरालाल नागर ने शपथ ली। सिरोही से चुनाव जीतकर आए विधायक ओटाराम देवासी को राज्यमंत्री बनाया गया है। देवासी के बाद डॉ. मंजू बाघमार ने राज्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। तीसरे राज्यमंत्री के रूप में विजय सिंह चौधरी ने शपथ ग्रहण की। चौधरी नांवा से विधायक हैं। चौथे राज्यमंत्री के रूप में बाड़मेर की गुड़ामालानी सीट से जीतकर आए केके बिश्नोई ने शपथ ली। पांचवें राज्यमंत्री के रूप में जवाहर सिंह बेढ़म ने शपथ ली। बेढ़म भरतपुर की नगर सीट से विधायक हैं। भाजपा के इस सियासी दांव को समझने के लिए आपको छत्‍तीसगढ़, मध्‍यप्रदेश और राजस्‍थान तीनों राज्‍यों पर ध्‍यान देना होगा। इन तीनों राज्‍यों में अलग-अलग जाति के सीएम का चुनाव करके बीजेपी ने जातिगत समीकरण साधने का पूरा प्रयास किया है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी और एमपी में ओबासी को सीएम बनाने के बाद ब्राह्मण चेहरे को सीएम बनाकर एक सर्किल को पूरा करने का प्रयास किया गया है। तीनों राज्यों में पार्टी को ऐसे चेहरे की तलाश थी, जो कुछ नया सोच सके।

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छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय, मध्य प्रदेश में मोहन यादव और राजस्थान में भजनलाल शर्मा की छवि निर्विवाद पदाधिकारी की है कि जो हमेशा हर परिस्थित में पार्टी के लिए मोर्च पर डटे रहे हैं। इसके अलावा यह तीनों मुख्यमंत्री छात्र जीवन से ही एबीवीपी से जुड़े रहे हैं और उसके बाद आरएसएस में सक्रिय रहे हैं। फिर पार्टी में भी पद पर रहे हैं। ऐसे तीनों राज्यों में यह मुख्यमंत्री पार्टी और संघ की पसंद बने। खैर, फिलहाल लोकसभा चुनाव से पहले देश में राम मंदिर की धूम मची है। पूरे देश को राम मय करने की योजना है। करना ही चाहिए। साढ़े चार सौ साल के संघर्ष के बाद अब मंदिर का सपना साकार होने जा रहा है। देश अपने राम के वापस अयोध्या लौटने और मंदिर में विराजने की प्रतीक्षा में है। 22 जनवरी को रामलला अपने भव्य मंदिर में विराजेंगे। यह निश्चित ही एक ऐतिहासिक पल होगा।

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