देवभूमि के पारंपरिक लाल चावल (red rice) को सरकार ने दिया बढ़ावा - Mukhyadhara

देवभूमि के पारंपरिक लाल चावल (red rice) को सरकार ने दिया बढ़ावा

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देवभूमि के पारंपरिक लाल चावल (red rice) को सरकार ने दिया बढ़ावा

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

सामान्यतः चावल तो विश्व प्रसिद्ध है ही तथा सम्पूर्ण विश्व में चावल की बहुत सारी प्रजातियां को व्यवसायिक रूप से उगाया जाता है। जहां तक चावल उत्पादन में भारत की बात की जाय तो लगभग एक तिहाई जनसंख्या चावल के व्यवसायिक उत्पादन अन्तर्गत है, परन्तु हिमालयी राज्यों तथा बिहार, झारखण्ड, तमिलनाडु तथा केरल में कुछ पारम्परिक प्राचीन चावल की प्रजातियां आज भी मौजूद है,जिनको स्थानीय लोग आज भी उगाते हैं व उपयोग करते हैं। इन्ही में से एक बहुमूल्य प्रजाति लाल चावल है, जिसकी राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बाजार में बृहद मांग रहती है। जहां तक रंगीन चावल की बात की जाय तो भारत के विभिन्न राज्यों में विभिन्न रंग के चावल जैसे कि हरा,बैंगनी, भूरा तथा लाल चावल आदि उत्पादन किया जाता है साथ ही उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में लाल चावल का उत्पादन किया जाता है।

उत्तराखण्ड के पुरोला में लाल चावल की पारम्परिक खेती की जाती है जिसको स्थानीय बाजार तथा कई देशो में खूब मांग रहती है। विश्व में दक्षिणी एशिया में रंगीन चावल पारम्परिक रूप से उगाया जाता है। तमिलनाडू तथा केरल में लाल चावल को उमा के नाम से जाना जाता है। आज विश्वभर में सफेद चावल की धूम मची हुई है जबकि स्वास्थ्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण लाल चावल को इतना महत्व नहीं मिला है। वर्तमान में भी भारत में स्थानीय बाजार में लाल चावल 150 रूपये/किग्रा० तथा अंतरराष्ट्रीय बाजार में जैविक लाल चावल 330/किग्रा० तक बेचा जाता है। यदि उत्तराखण्ड के सिंचित तथा असिंचित दशा में मोटे धान की जगह पर यदि लाल चावल को व्यवसायिक रूप से उत्पादित किया जाय तो यह राज्य में बेहतर अर्थिकी का स्रोत बन है।

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कुछ वर्ष पूर्व संयुक्त राज्य अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय चावल वर्ष मनाया गया। वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व में करोड़ो लोग जीवनयापन तथा मुख्य खाद्य शैली मे चावल का उपयोग करते है। विश्व में अनाज उत्पादन तथा गरीबी व भुखमरी मिटाने में चावल का मुख्य योगदान रहा है। आज विश्वभर में चावल की असंख्य मौजूद है जिसमें सफेद चावल मुख्यतः विश्वभर में खाने में प्रयुक्त होता है, जबकि कई वैज्ञानिक अध्ययनो में यह बताया गया है की चावल पौष्टिकता की दृष्टि से लाल चावल की अपेक्षा कम लाभदायक है क्योंकि कई महत्वपूर्ण पोषक तत्व Polishing प्रक्रिया के दौरान नष्ट हो जाते है। चावल से protecting Pericarp के नष्ट होने से लगभग 29 प्रतिशत प्रोटीन, 79 प्रतिशत वसा तथा 67 प्रतिशत लौह तथा 67 प्रतिशत विटामिन B3, 80 प्रतिशत विटामिन B1, 90 प्रतिशत विटामिन B6, तथा All Dietary fiber भी नष्ट हो जाते है जबकि लाल चावल में Pigmented protecting Pericarp के मौजूद होने से सभी विटामिन्स, मिनरल्स तथा पोषक तत्व पूर्णत विद्यमान रहते हैं।

लाल चावल में सबसे महत्वपूर्ण Rice bran ही है जो पोष्टिक एवं औषधीय गुणों से भरपूर होता है।जहां तक लाल चावल तथा सफेद (Polished )चावल को पौष्टिकता की दृष्टि तुलनात्मक विष्लेशण किया जाय तो सफेद चावल में प्रोटीन 6.8 ग्राम०/100ग्राम०, लौह 1.2 मिग्रा०/100 ग्राम, जिंक 0.5 मिग्रा०/100ग्राम, फाईवर0.6  ग्राम/100ग्राम, जबकि लाल चावल में प्रोटीन 7.0 ग्राम/100 ग्राम फाईवर 2.0 ग्राम/100 ग्राम, लौह 5.5 मिग्रा०/100ग्राम तथा जिंक 3.3 मिग्रा०/100 ग्राम तक पाये जाते है।प्राचीन ग्रन्थ चरक संहिता में भी लाल चावल का उल्लेख पाया जाता है जिसमें लाल चावल को रोग प्रतिरोधक के साथ-साथ पोष्टिक बताया गया है। पोष्टिक तथा औषधीय गुणों से भरपूर होने के साथ-साथ लाल
चावल में विपरीत वातावरण में भी उत्पादन देने कि क्षमता होती है। यह कमजोर मिटटी, कम या ज्यादा पानी तथा पहाड़ी ढालूदार आसिंचित खेतो में भी उत्पादित किया जा सकता है।

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लाल चावल में मौजूद गुणों के कारण ही वर्तमान में भी उच्च गुणवत्ता युक्त प्रजातियां के विकास के लिए Breeding तथा Genetic improvement के लिए लाल चावल का प्रयोग किया जाता है। विश्वभर में हुए कुछ ही अध्ययनों में लाल चावल का वैज्ञानिक विष्लेशण होने के प्रमाण मिले है जबकि लाल चावल antioxidant, Arteriosclerosis-Preventive तथा Anticancer के निवारण के लिए अच्छी क्षमता रखता है।सर्वप्रथम सबसे प्राचीन लाल चावल जापान में लगभग 300 BC YAYOI काल में एक प्रमुख जापानी डिश, जो विशेष अवसरों पर बनाई जाती थी, में होने के प्रमाण मिले है। उत्तराखण्ड के अलावा छत्तीसगढ तथा झारखण्ड में भी लाल चावल का प्रयोग किया जाता है। जिसको स्थानीय भाषा में भामा के नाम से जाना जाता है। इन्ही राज्यों मे एक सामाजिक अध्ययन के दौरान यह पाया गया कि लाल चावल का पानी भी काफी लाभदायक होता है। इसके उपयोग से पूरे दिनभर ताजगी के साथ-साथ ऊर्जावान भी महसूस करते है तथा लम्बे समय तक कार्य करने के बावजूद भी प्यास नहीं लगती है।

लाल चावल अन्य पोष्टिक गुणों को साथ-साथ Type-2 मधुमेह के लिये भी लाभदायक पाया जाता है। लाल चावल में जो रंगीन तत्व पाया जाता है वह फल और सब्जियों में भी पाया जाता है। वह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाने के साथ-साथ Inflammation को भी कम करता है। आज भी देश के कई राज्यों जैसे हिमाचल में रक्तचाप तथा बुखार के निवारण के लाल चावल का प्रयोग किया जाता है तथा तमिलनाडु में महिलायें दूध बढाने के लिए लाल चावल लाभदायक मानती है। उच्च गुणवक्ता और अपने विशिष्ट पौष्टिक गुणों के कारण इस चावल की विदेशों में अच्छी
मांग है। यह चावल उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के विकासखंड पुरोला  का चावल दुनिया भर में विशेष प्रसिद्ध है।

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रवाई घाटी में लाल चावल उत्पादन के लिए रामा सिराई और कमल सिराई पट्टी लाल कटोरे के नाम ने प्रसिद्ध है। उत्तरकाशी के इस विशेष उत्पाद को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग दिलाने का प्रयास चल रहा हैजो कि अपने अंतिम चरण में है। त्रढ्ढ टैग मिलने के बाद यह उत्पाद इस क्षेत्र का एक ब्रांड बन जायेगा। उत्तराखंड का उत्तरकाशी लाल धान की खेती के लिए प्रसिद्ध है। यहां यमुना घाटी के पुरेला में बड़े स्तर पर लाल धान की खेती करके किसान मुनाफा कमा रहे हैं। लाल चावल के इतने स्वास्थ्यवर्धक होने का एक और कारण इसका कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स है। इसका मतलब यह है कि यह रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है, जिससे यह मधुमेह वाले लोगों या उन लोगों के लिए एक बढ़िया विकल्प बन जाता है जो स्वस्थ रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखना चाहते हैं। इसके अलावा, लाल चावल ग्लूटेन-मुक्त भी होता है, जो इसे सीलिएक रोग या ग्लूटेन असहिष्णुता वाले लोगों के लिए एक आदर्श विकल्प बनाता है।

( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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